बाबा वैद्यनाथ मंदिर : भव्यता में चार चांद लगाता है स्वर्ण कलश
देवघर/राकेश कर्म्हेद्वादश ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ कामनालिंग बाबा मंदिर के शिखर पर विराजमान स्वर्णकलश व उसमें लगे पंचशूल का दर्शन कर श्रद्धालु
देवघर/राकेश कर्म्हे द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ कामनालिंग बाबा मंदिर के शिखर पर विराजमान स्वर्णकलश व उसमें लगे पंचशूल का दर्शन कर श्रद्धालु, कांवरिया यात्री भाव-विभोर हो जा रहे हैं। एक मन के स्वर्ण कलश से बाबा वैद्यनाथ मंदिर की भव्यता साफ झलक रही है। स्वर्ण कलश गिद्धौर के राजा चन्द्रमौलेश्वर सिंह ने प्रदान किया है। स्थानीय पुरोहितों से मिली जानकारी के अनुसार बाबा वैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश से पूर्व ताम्र कलश स्थापित था। बताया जाता है कि बाबा वैद्यनाथ मंदिर के तत्कालीन मठाधीश सदुपाध्याय राम दत्त ओझा के कार्यकाल में बागियों की फौज बाबा मंदिर से होकर गुजर रही थी तथा उन्हीं में किसी एक फौजी के ताम्रकलश पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर गोली का निशाना बना दिया था। कहा जाता है कि कलश में छिद्र होने के पश्चात उससे असंख्य मात्रा में काला भौंरे बाहर निकल आये एवं भौरों ने बागी फौजी को अपना शिकार बना लिया। कहा जाता है कि उस घटना से बाबा बैद्यनाथ की असीम शक्ति का साक्षात प्रमाण मिलने के बाद से ही देवघर से गुजरने वाली फौजें या अन्य हिन्दू सिपाही बाबा बैद्यनाथ की पूजा अवश्य करते थे। वहीं प्रसिद्ध दंत कथा यह भी है कि छिद्रयुक्त ताम्र कलश के स्थान पर नया कलश स्थापित करने के लिए बाबा वैद्यनाथ ने तत्कालीन गिद्धौर राजघराने की राजमाता को स्वप्न दिया था। उसी अनुसार राजमाता ने तत्कालीन राजा चंद्रमौलेश्वर सिंह को बाबा वैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर नया स्वर्ण कलश स्थापित करने का आदेश दिया था। जानकारी के अनुसार आज से करीबन 80 वर्ष पूर्व श्रावण मास शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को राजा चंद्रमौलेश्वर सिंह ने पूरे विधि-विधान के साथ एक मन वजन से निर्मित स्वर्ण कलश को बाबा वैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर स्थापित करने के लिए समर्पित किया था। उसके प्रत्यक्षदर्शीगण अभी के समय में भी मौजूद हैं। कहा जाता है कि छिद्रयुक्त ताम्र कलश नये स्वर्ण कलश के अंदर वर्तमान समय में भी मौजूद हैं। करीबन दो दशक पूर्व बाबा मंदिर के शिखर पर लगे स्वर्णकलश से पंचमुखी नाग निकले जाने की भी बात कही जाती है। उसका दर्शन स्थानीय लोगों समेत आगंतुक तीर्थयात्रियों ने भी किया था।
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