मनोकामना पूर्ति के लिए बाबा वैद्यनाथ मंदिर में धरना देते हैं श्रद्धालु
मनोकामना पूर्ति के लिए बाबा वैद्यनाथ मंदिर में धरना देते हैं श्रद्धालु मनोकामना पूर्ति के लिए बाबा वैद्यनाथ मंदिर में धरना देते हैं श्रद्धालु - स्वप्न
राकेश कर्म्हे देवघर वैसे तो कामनालिंग बाबा वैद्यनाथ की पूजा करने मात्र से ही प्राणीमात्र की सभी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं, परंतु कुछ भक्तों की पूजा बाबा वैद्यनाथ द्वारा स्वीकार्य नहीं किये जाने से उनकी मनोकामनाएं पूर्ण नहीं हो पाती हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सबसे अधिक जाग्रत लिंग के रूप में पूजे जाने वाले बाबा वैद्यनाथ के दरबार में ऐसे भक्तों के लिए भी व्यवस्था है। लगातार पूजा के बावजूद जिन भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण नहीं हो पाती हैं, उनके लिए बाबा दरबार में प्राचीन व्यवस्था है कि वह बाबा वैद्यनाथ मंदिर के बाहरी चबूतरे पर धरना पर बैठते हैं। दिनभर निराहार रहकर बाबा वैद्यनाथ की आराधना करने वाले यह भक्त बाबा दरबार में रहने के बावजूद स्वयं बाबा पर जलार्पण नहीं करते हैं। नित्य इन भक्तों की ओर से बाबा वैद्यनाथ की पूजा होती है, परंतु वह किसी पुरोहित के माध्यम से ही कराते हैं। संध्याकाल में स्नान-ध्यान करने के उपरांत संध्याकालीन शृंगार दर्शन के लिए सभी धरना देने वाले भक्त बाबा वैद्यनाथ मंदिर के गर्भगृह पहुंचते हैं तथा बाबा के समक्ष अपनी गुहार लगाते हैं। संध्याकालीन शृंगार दर्शन करने के उपरांत सभी भक्त फलाहार कर पुन: धरनास्थल पर पहुंच जाते हैं। यह प्रक्रिया निरंतर तब तक चलती रहती है जब तक भक्त की कामना बाबा वैद्यनाथ पूर्ण नहीं कर देते हैं। प्राचीनकाल से चली आ रही इस परंपरा को लेकर मान्यता है कि स्वयं बाबा बैद्यनाथ भक्त को स्वप्न के माध्यम से आदेश देते हैं। धरनास्थल की एक खासियत यह भी है कि भक्त मनोकामना के लिए बाबा वैद्यनाथ मंदिर के बाहरी हिस्से में अपने पंजे का निशान छोड़ते हैं। बाबा की कृपा से कामनापूर्ति के उपरांत भक्त समर्पण भाव में पंजे का निशान छोड़ जाते हैं। तीर्थपुरोहित डॉ. मोतीलाल मिश्रा की माने तो यह परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है। प्राचीन काल में धरनाधारी भक्तों की सुरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मी की भी प्रतिनियुक्ति करायी जाती थी तथा धरनाधारियों द्वारा उस एवज में एक पैसे का भुगतान भी किया जाता था।
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