केतुंगा में चलता रहा प्रशिक्षण, अछूती रही खड़िया बस्ती
आदिम जनजातियों के हुनर को तरासने तथा स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए नीमडीह के केतुंगा में कई वर्षों तक प्रशिक्षण के नाम पर लाखों रुपये पानी की तरह बहाये गये, लेकिन, चंद किमी दूर खडि़या बस्ती के सबर...
आदिम जनजातियों के हुनर को तरासने तथा स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए नीमडीह के केतुंगा में कई वर्षों तक प्रशिक्षण के नाम पर लाखों रुपये पानी की तरह बहाये गये, लेकिन, चंद किमी दूर खडि़या बस्ती के सबर परिवार अछूता रहे।
वनोत्पाद से बनी सामग्री से चलता है घर : आज यहां की सबर महिलाएं बांस उत्पाद से टोकरियां, खिलौने एवं अन्य सामग्री बनाकर अपना परिवार चला रही हैं। बांस उत्पाद इन सामग्री को बाजार में बेचकर किसी तरह अपना पेट पाल रही हैं। लेकिन, सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं मिलने के कारण अब ये दूसरों के खेतों में मजदूरी करने को विवश हैं।
हमे नहीं दिया गया किसी तरह का प्रशिक्षण : पार्वती सबर का कहना है कि उन्हें किसी तरह का कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया। जबकि वे लोग वर्षों से बांस व अन्य वनोत्पाद से सामग्री बनाने का हुनर रखती हैं।
जर्जर आवास में रहने को विवश हैं सबर परिवार : सरकारें बदलीं, वक्त बदला, नहीं बदली तो खडि़या बस्ती की तस्वीर। वर्ष 2000 में खडि़या बस्ती में आदिम जनजाति सबर परिवारों के लिए 32 बिरसा आवास बनाये गये थे। इन 18 वर्षों में कई सरकारें बदलीं परंतु खडि़या बस्ती में रहने वाले सबर परिवारों की दशा नहीं बदली।
उनके आवास आज जर्जर हालत में हैं, जिससे वे कभी भी हादसे का शिकार हो सकते हैं। आज भी उनका जीवन वनोत्पाद पर निर्भर है। बेहतर स्वास्थ्य सेवा के अभाव में इनके बच्चे कुपोषित होते जा रहे हैं।