कभी हिजबुल का गढ़ थी कश्मीर की ये विधानसभा, बुरहान वानी ने यहीं से फैलाया आतंक; अब फल-फूल रहा लोकतंत्र
- जम्मू और कश्मीर का त्राल विधानसभा क्षेत्र एक ऐसा नाम है जो दशकों से सुर्खियों में रहा है। यह क्षेत्र न केवल अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है, बल्कि इसकी पहचान आतंकवाद के गढ़ के रूप में भी रही है।
Jammu and Kashmir Assembly Election Tral: जम्मू और कश्मीर में एक दशक के बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। आखिरी बार 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे और तब से अब तक काफी कुछ बदल चुका है। धरती पर स्वर्ग कहा जाने वाला बेहद खूबसूरत जम्मू कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है और लद्दाख इससे अलग होकर एक अन्य केंद्र शासित प्रदेश है। 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए तीन चरणों में चुनाव होगा। पहले चरण के चुनाव के दौरान एक बेहद अहम सीट पर वोट डाले जाएंगे। हम बात कर रहे हैं त्राल विधानसभा (Tral assembly constituency) सीट की।
जम्मू और कश्मीर का त्राल विधानसभा क्षेत्र एक ऐसा नाम है जो दशकों से सुर्खियों में रहा है। यह क्षेत्र न केवल अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है, बल्कि इसकी पहचान आतंकवाद के गढ़ के रूप में भी रही है। यहां की राजनीति, समाज और सुरक्षा परिदृश्य में त्राल का नाम बार-बार उभरता है। त्राल की इस जटिलता और इसके राजनीतिक सफर को समझने के लिए हमें इसके ऐतिहासिक और वर्तमान पहलुओं पर नजर डालनी होगी।
पुलवामा जिले में स्थित खूबसूरत त्राल
त्राल दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में स्थित है और यह क्षेत्र अपनी पहाड़ियों, घने जंगलों और ऊंची-नीची घाटियों के लिए प्रसिद्ध है। यहां की आबादी ज्यादातर मुस्लिम है, और लोग खेती-बाड़ी पर निर्भर रहते हैं। क्षेत्र का मुख्य उद्योग बागवानी है, विशेष रूप से सेब की खेती। हालांकि, 1990 के दशक से यहां का माहौल आतंकवाद की वजह से तनावपूर्ण रहा है।
त्राल का इतिहास केवल राजनीतिक नहीं है, बल्कि इसमें समाजिक और सांस्कृतिक धारा भी शामिल हैं। इस क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी विभिन्न आंदोलनों का प्रभाव देखा गया था। हालांकि, 1980 और 1990 के दशक में यहां के हालात बदलने लगे। त्राल धीरे-धीरे आतंकवाद का केंद्र बन गया और यह क्षेत्र हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों का गढ़ बन गया। 1990 के दशक के बाद से ही त्राल ने आतंकवाद और सशस्त्र संघर्ष का एक लंबा दौर देखा।
बुरहान वानी ने यहीं से फैलाया आतंक
बुरहान वानी का नाम सुनते ही जम्मू-कश्मीर के त्राल क्षेत्र का नाम जुबां पर आता है। वह एक ऐसा चेहरा था जिसने 2010 के दशक में कश्मीर घाटी, विशेषकर त्राल में आतंकवाद को नई दिशा दी। उसकी गतिविधियों ने न केवल इस क्षेत्र को बल्कि पूरे जम्मू-कश्मीर को हिला कर रख दिया। बुरहान वानी ने अपनी ऑनलाइन उपस्थिति और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके युवाओं को आतंकवाद की ओर खींचा।
त्राल में आतंक की शुरुआत
बुरहान वानी त्राल के एक संपन्न परिवार से था। उसका परिवार शिक्षित और समाज में प्रतिष्ठित था। लेकिन किशोरावस्था में ही वह हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन में शामिल हो गया। उसने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हो गया। बुरहान वानी का आतंक फैलाने का तरीका अन्य आतंकवादियों से अलग था। उसने सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए वीडियो और फोटो पोस्ट किए, जिसमें वह हथियारों के साथ दिखता था। यह पहली बार था जब कश्मीर में कोई आतंकी इस तरह से सामने आया। उसकी इस नई स्टाइल ने कश्मीर के युवाओं को आकर्षित किया, और बहुत से युवाओं ने उसके प्रभाव में आकर आतंकवाद का रास्ता अपनाया। बुरहान वानी ने स्थानीय लोगों के बीच अपनी पहचान बनाई और धीरे-धीरे उसे 'पोस्टर ब्वॉय' के नाम से जाना जाने लगा। उसने न केवल त्राल बल्कि पूरे कश्मीर में आतंक का माहौल बनाया। उसकी गतिविधियों के कारण सुरक्षा बलों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
सुरक्षा बलों द्वारा मुठभेड़ और अंत
8 जुलाई 2016 को, बुरहान वानी की गतिविधियों की खुफिया जानकारी मिलने पर सुरक्षा बलों ने दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के कोकरनाग इलाके में एक ऑपरेशन शुरू किया। बुरहान और उसके दो सहयोगी इस इलाके में एक घर में छिपे हुए थे। सुरक्षा बलों ने इलाके को घेर लिया और मुठभेड़ शुरू हो गई। यह मुठभेड़ कुछ घंटों तक चली। अंततः बुरहान वानी और उसके दोनों सहयोगियों को मार गिराया गया। इस मुठभेड़ में सुरक्षा बलों को बड़ी सफलता मिली, क्योंकि बुरहान वानी की मौत आतंकवादियों के लिए एक बड़ा झटका साबित हुई।
मुठभेड़ के बाद का प्रभाव
बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर घाटी में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और हिंसा हुई। यह प्रदर्शनों की लहर पूरे कश्मीर में फैल गई, और कई महीनों तक सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव जारी रहा। इस हिंसा में सैकड़ों लोग घायल हुए और कई लोगों की जान चली गई। बुरहान वानी की मौत ने कश्मीर में आतंकवाद की समस्या को और भी जटिल बना दिया। उसके प्रभाव में आए युवा अब भी आतंकवाद का रास्ता अपना रहे थे, और कश्मीर घाटी में अस्थिरता बढ़ गई। हालांकि, सुरक्षा बलों ने इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए और धीरे-धीरे शांति बहाल की गई। बुरहान वानी ने त्राल में आतंकवाद की एक नई धारा की शुरुआत की, जिसने कश्मीर के युवाओं को गुमराह किया। उसकी मौत के बाद भी उसका प्रभाव कश्मीर घाटी में महसूस किया गया, लेकिन समय के साथ, सुरक्षा बलों और सरकार के प्रयासों से इस प्रभाव को कम किया गया। अब त्राल में लोकतंत्र फल-फूल रहा है।
त्राल में राजनीतिक प्रभाव
राजनीतिक दृष्टिकोण से त्राल हमेशा एक संवेदनशील क्षेत्र रहा है। यहां की राजनीति पर अलगाववादी विचारधारा का प्रभाव गहरा रहा है। हालांकि, राज्य और केंद्र की मुख्यधारा की पार्टियों ने भी त्राल में अपनी जगह बनाने की कोशिश की है। त्राल में जम्मू-कश्मीर की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों—नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP), और कांग्रेस—ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में, पीडीपी ने इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत बनाई है। इस पार्टी की सहानुभूतिपूर्ण और कश्मीर केंद्रित नीति ने यहां के मतदाताओं को आकर्षित किया है। पीडीपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने भी त्राल क्षेत्र में काफी काम किया, जिससे पार्टी को स्थानीय समर्थन मिला।
कौन जीता पिछले विधानसभा चुनाव?
अगर 1987 के विवादित चुनावों को छोड़ दें तो यहां से लगभग हर बार नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) के ही उम्मीदवार जीतते आ रहे हैं। 1987 के जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के गुलाम नबी नाइक जीते थे। वहीं पिछले तीन विधानसभा चुनावों (2008-2014) में पीडीपी के मुश्ताक अहमद शाह जीतते आ रहे हैं। पीडीपी ने फिर से मुश्ताक अहमद शाह को ही उतारा है।
कुल मिलाकर हाल के वर्षों में, त्राल में सुरक्षा बलों की कार्रवाई और आतंकवाद विरोधी अभियानों में कमी आई है। बुरहान वानी की मौत के बाद हुए प्रदर्शनों के बावजूद, धीरे-धीरे यहां शांति लौटी। लोगों में अब यह विश्वास बढ़ रहा है कि एक स्थिर और शांतिपूर्ण जीवन संभव है। वे मानने लगे हैं कि लोकतंत्र एकमात्र रास्ता है जिसके जरिए वे अपनी आवाज बुलंद कर सकते हैं। स्थानीय लोग अब एक बेहतर भविष्य की उम्मीद कर रहे हैं। त्राल में अब कई युवा मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हो रहे हैं और विकास के मुद्दों को प्राथमिकता दे रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर सरकार यहां बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे पर ध्यान दे, तो त्राल भी विकास की मुख्यधारा में आ सकता है।
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