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प्रधानमंत्री के साथ बैठक का न्योता मिलने के बाद कश्मीर की पार्टियों में मंथन का दौर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 24 जून को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक का न्योता मिलने के बाद जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) और पीडीपी  सहित मुख्यधारा की क्षेत्रीय पार्टियों में...

प्रधानमंत्री के साथ बैठक का न्योता मिलने के बाद कश्मीर की पार्टियों में मंथन का दौर
भाषा,श्रीनगरMon, 21 Jun 2021 06:13 AM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 24 जून को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक का न्योता मिलने के बाद जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) और पीडीपी  सहित मुख्यधारा की क्षेत्रीय पार्टियों में रविवार को गहन विचार-विमर्श का दौर चला जबकि कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा तत्काल बहाल करने की मांग की। पार्टियों ने विचार-विमर्श केंद्र के न्योते पर रुख तय करने के लिए पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन (पीएजीडी) की मंगलवार को होने वाली संयुक्त बैठक से पहले किया। इस गठबंधन में नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, माकपा, अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस, भाकपा और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट शामिल हैं।

दिन की शुरुआत होने के साथ ही महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी में राजनीतिक मामलों की समिति की करीब दो घंटे तक बैठक हुई। पीडीपी के मुख्य प्रवक्ता सैयद सुहैल बुखारी ने बैठक के बाद महबूबा के आवास के बाहर पत्रकारों से कहा, ''पीएसी ने सर्वसम्मति से मामले पर अंतिम फैसला लेने का अधिकार पार्टी अध्यक्ष को दिया है।

बुखारी ने कहा कि गुपकर गठबंधन की बैठक मंगलवार को होगी, जहां सदस्य दल मुद्दे पर चर्चा करेंगे और फिर इस पर अंतिम फैसला लेंगे कि प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई बैठक में भाग लेना है या नहीं। उन्होंने कहा, 'दो दिनों के बाद पीएजीडी की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की जाएगी। गठबंधन के सदस्य अपने सुझाव देंगे और उसके बाद बैठक में शामिल होने पर फैसला लिया जाएगा।'

हालांकि, महबूबा के रिश्तेदार सरताज मदानी को एहतियाती हिरासत से छह महीने बाद रिहा करने को महबूबा की बैठक में उपस्थिति सुनिश्चित करने के कदम के तौर पर देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री की जम्मू-कश्मीर की सभी राजनीतिक पार्टियों के साथ बैठक को केंद्र द्वारा राजनीतिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाए जाने के तौर पर देखा जा रहा है, जिसमें केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव कराया जाना भी शामिल है।

नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर की मुख्य धारा की राजनीतिक पार्टियों को केंद्र की ओर से मिले वार्ता के निमंत्रण को लेकर रविवार को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ परामर्श की प्रक्रिया शुरू कर दी, जिनमें पार्टी महासचिव अली मोहम्मद सागर और कश्मीर के प्रांतीय अध्यक्ष नसीर असलम वानी शामिल हैं। चौधरी मोहम्मद रमजान, शेख मुस्तफा कमाल, मियां अल्ताफ, मुबारक गुल, सकीना इटू, खालिद नजीब सुहरावर्दी और दो सांसदों- मोहम्मद अकबर लोन एवं हसनैन मसूदी ने भी बैठक में हिस्सा लिया।

बैठक के बाद प्रांतीय अध्यक्ष वानी ने कहा, 'पार्टी अध्यक्ष ने वरिष्ठ नेताओं के साथ परामर्श प्रक्रिया शुरू की है और ये बैठकें कल भी जारी रहेंगी। आज कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ चर्चा की गयी, वह शाम में और कल सुबह कुछ और नेताओं के साथ बैठक करेंगे। मैं समझता हूं कि हम कल तक आपको स्पष्ट तस्वीर बता पाएंगे।'

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में होने वाली बैठक के लिए जम्मू-कश्मीर के चार मुख्यमंत्रियों सहित 14 नेताओं को न्योता दिया गया है जिसमें उम्मीद की जा रही कि केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव की रूपरेखा पर चर्चा होगी। केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने इन नेताओं को बैठक में आमंत्रित करने के लिए आठ पार्टियों- नेकां, पीडीपी, भाजपा, कांग्रेस, जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी, माकपा, पीपुल्स पार्टी और पैंथर्स पार्टी - से फोन पर संपर्क किया। यह बैठक राष्ट्रीय राजधानी में बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री आवास पर अपराह्न तीन बजे होगी।

पांच अगस्त 2019 को केंद्र द्वारा जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद प्रधानमंत्री का जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों से यह पहला सीधा संवाद होगा। हालांकि, वर्ष 2018 से ही राज्य में केंद्रीय शासन है। 

दिल्ली में कांग्रेस ने कहा कि केन्द्र को संविधान और लोकतंत्र के हित में, जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग स्वीकार करनी चाहिये।
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने हालांकि यह नहीं बताया कि पार्टी 24 जून को होने वाली बैठक में हिस्सा लेगी या नहीं। सुरजेवाला ने 6 अगस्त 2019 को हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक की ओर ध्यान दिलाया, जिसमें पार्टी ने स्पष्ट रूप से जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की थी। उन्होंने कहा, 'हमारा मानना है कि ऐसा नहीं करना लोकतंत्र और संवैधानिक सिद्धांतों पर सीधा हमला है।

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