Hindi Newsविदेश न्यूज़Why Alex Pandolfo scheduled his death so he can enjoy living
इस शख्स ने शेड्यूल कर दी अपनी ही मौत, अब खुलकर जी रहा जिंदगी; भावुक करने वाली है कहानी

इस शख्स ने शेड्यूल कर दी अपनी ही मौत, अब खुलकर जी रहा जिंदगी; भावुक करने वाली है कहानी

संक्षेप: उनके माता-पिता दोनों को भी डिमेंशिया हुआ था- पिता विंसेंट को 1999 में तथा मां मारी को 2017 में। विंसेंट के तेज पतन और अंतिम दिनों की स्मृतियां पांडोल्फो के लिए सहायक मृत्यु के समर्थन के प्रमुख कारण बने।

Wed, 24 Sep 2025 08:08 AMAmit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, लंदन
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अल्जाइमर रोग से जूझ रहे 71 वर्षीय एलेक्स पांडोल्फो का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी बन गया है। वे कहते हैं, “मैं जीवन से प्यार करता हूँ।” लेकिन वे अपनी गिरती सेहत को देखते हुए सहायता प्राप्त मृत्यु का विकल्प चुन चुके हैं, ताकि वे बाकी दिनों को खुशी से जी सकें। पांडोल्फो की यह कहानी न केवल उनकी व्यक्तिगत लड़ाई को दर्शाती है, बल्कि मृत्यु के अधिकार और जीवन की गुणवत्ता पर वैश्विक बहस को भी नई दिशा दे रही है।

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2015 में 61 वर्ष की उम्र में अल्जाइमर डिमेंशिया का पता चलने के बाद डॉक्टरों ने पांडोल्फो को केवल तीन-चार साल का समय दिया था। कुछ अध्ययनों के अनुसार, इस बीमारी से प्रभावित व्यक्ति औसतन पांच से आठ वर्ष जीवित रहते हैं, हालांकि कुछ मामलों में यह 20 वर्ष तक भी हो सकता है। लेकिन पांडोल्फो ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी अपेक्षित आयु को पार कर लिया है और अब दैनिक जीवन को संभालने के लिए दिन में करीब 10 अलार्म सेट करते हैं- जैसे कि दवा लेना, मीटिंग याद रखना या समुद्र तट पर टहलना।

पांडोल्फो बताते हैं कि वे नई नामों और चेहरों को याद करने में दिक्कत महसूस करते हैं, इसलिए रोजमर्रा के कामों और मिलने वालों के लिए वे कई अलार्म और नोट्स सेट करते हैं। वे कहते हैं, “हर दिन कीमती है।” सुबह उठकर Morticia Addams की एक पेंटिंग और बहन के दिए हंबग सॉफ्ट-टॉय को देखकर उनका दिन शुरू होता है।

मां-बाप को भी यही दिक्कत

उनके माता-पिता दोनों को भी डिमेंशिया हुआ था- पिता विंसेंट को 1999 में तथा मां मारी को 2017 में। विंसेंट के तेज पतन और अंतिम दिनों की स्मृतियां पांडोल्फो के लिए सहायक मृत्यु के समर्थन के प्रमुख कारण बने। विंसेंट ने अंतिम वर्षों में बार-बार कहा था कि यदि वे “ऐसे” हो जाएं तो वे चाहेंगे कि उन्हें दर्द से मुक्त कर दिया जाए। इन अनुभवों ने पांडोल्फो को स्विट्जरलैंड में सहायक मृत्यु के रास्ते की खोज करने पर मजबूर किया।

स्विट्जरलैंड की मंज़री और उसकी अहमियत

बीमारी पता चलने के कुछ समय बाद पांडोल्फो ने स्विट्जरलैंड की एक सहायक मृत्यु संस्था से संपर्क किया। चिकित्सीय प्रमाणों, पारिवारिक व जीवनीगत दस्तावेजों और व्यक्तिगत बयान के साथ उनकी फाइल जमा करने पर छह हफ्ते में आवेदन मंजूर कर दिया गया। पांडोल्फो कहते हैं: “मुझे लगा कि दुनिया से बोझ हट गया- मेरी जिंदगी फिर से शुरू हुई।” उन्होंने स्पष्ट किया कि वे जीवन को प्यार करते हैं, पर आत्मनिर्णय लेने की शक्ति खो जाने की स्थिति में जीने की गुणवत्ता न रहने से डरते हैं।

स्विट्जरलैंड में सहायक मृत्यु कानूनी है- जहां इच्छुक व्यक्ति को स्वयं की मौत का साधन दिया जाता है बशर्ते यह कोई स्वार्थी मकसद न हो और अनुरोधकर्ता की निर्णय-क्षमता हो। यूके में यह अवैध होने के कारण, पांडोल्फो जैसे कई लोग स्विट्जरलैंड तक की यात्रा करते हैं; अनुमानतः हर सप्ताह औसतन एक व्यक्ति यूके से स्विट्जरलैंड जाकर मरता है। इसकी लागत लगभग 15,000 पाउंड (लगभग $20,500) आती है, जो पांडोल्फो के मुताबिक “हर किसी की पहुंच में नहीं है” और यही एक सामाजिक-न्याय से जुड़ी चिंता है।

एलेक्स कहते हैं, “मैं मरना नहीं चाहता। लेकिन जब वह समय आए, तो मैं लंबी पीड़ा नहीं झेलना चाहता।” वे सहायता प्राप्त मृत्यु के सक्रिय समर्थक हैं और वे मानते हैं कि मृत्यु का भय अब उनसे दूर हो गया है। वे कहते हैं, “मैं कभी मौत से नहीं डरा। अब जब मैं जानता हूं कि मुझे दर्दनाक अंत नहीं झेलना पड़ेगा, तो मैं निडर हूं।”अल्जाइमर एक ऐसी बीमारी है जो स्मृति हानि, भाषा कौशल में गिरावट, मूड और व्यवहार में बदलाव लाती है। इसका कोई इलाज नहीं है। वे कहते हैं, “जीवन और मृत्यु दो अलग चीजें हैं। मैं जीवन का हर पल जी रहा हूं, क्योंकि अब मुझे पता है कि अंत में मुझे नियंत्रण रहेगा।” पांडोल्फो का परिवार उनका मजबूत सहारा है। वे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ समय बिताते हैं, पुरानी यादें ताजा करते हैं। वे भावुक होकर कहते हैं, “मैं भाग्यशाली हूं कि जीवन भर मैंने हर चीज में खुशी पाई- यहां तक कि खिड़की से बाहर देखने में भी।”

ब्रिटेन में कानून-परिवर्तन की बहस

जून में हाउस ऑफ कॉमन्स ने टर्मिनली इल्ल एडल्ट्स बिल को बहुत कम बहुमत (314 बनाम 291) से पारित किया; अब यह हाउस ऑफ लॉर्ड्स में विचार के लिए गया है। बिल के समर्थक, जिनमें Dignity in Dying जैसे अभियान भी शामिल हैं, इसे सहानुभूतिपूर्ण और व्यक्ति की स्वायत्तता का समर्थन कह रहे हैं। विपक्ष में धर्मिक समूह, विकलांगता के अधिकारों की आवाज़ें और रॉयल कॉलेज ऑफ सायकायट्रिस्ट्स जैसे चिकित्सा निकाय शामिल हैं, जो सुरक्षा-प्रावधानों, दबाव और चिकित्सा कर्मियों पर नैतिक बोझ जैसे खतरों की ओर इशारा करते हैं।

यदि यह बिल पारित हो जाता है तो वह 18 वर्ष से ऊपर के इंग्लैंड और वेल्स के निवासियों को- जो 12 महीने से जीपी में पंजीकृत हों, मानसिक रूप से काबिल हों और “ऐसा माना जाए कि वह छह महीनों के भीतर मरने वाला” है- तो उनको मृत्यु के लिए आवेदन करने का अधिकार देगा। पांडोल्फो जैसे उस वर्ग के लिए, जिनकी बीमारियां न्यूरोडीजेनेरेटिव हैं और धीमी-चलने वाली हैं, यह छह-महीने की सीमा समस्या पैदा करती है। वे कहते हैं, “यदि मैं छह महीने में मरने वाला होता, तो मेरी मानसिक क्षमता भी शायद खत्म हो चुकी होगी।”

सार्वजनिक और व्यक्तिगत आयाम

लोकमत-सर्वेक्षणों की मानें तो मई में एक YouGov सर्वे ने दिखाया कि 75% ब्रिटेनवासी सहायक मृत्यु के पक्ष में हैं- पर जनस्वीकृति के बावजूद नैतिक, कानूनी और सामाजिक जटिलताएं बरकरार हैं। पांडोल्फो अपनी कहानी के जरिए उस व्यापक बहस का मानवीय चेहरा प्रस्तुत करते हैं: कैसे बीमारी ने उनकी पहचान, स्वतंत्रता और सम्मान को प्रभावित किया; और कैसे विकल्प का होना उन्हें दिल से जीने की आज़ादी देता है।

Amit Kumar

लेखक के बारे में

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अमित कुमार एक अनुभवी पत्रकार हैं, जिन्हें मीडिया इंडस्ट्री में नौ वर्षों से अधिक का अनुभव है। वर्तमान में वह लाइव हिन्दुस्तान में डिप्टी चीफ कंटेंट प्रोड्यूसर के रूप में कार्यरत हैं। हिन्दुस्तान डिजिटल के साथ जुड़ने से पहले अमित ने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम किया है। अमित ने अपने करियर की शुरुआत अमर उजाला (डिजिटल) से की। इसके अलावा उन्होंने वन इंडिया, इंडिया टीवी और जी न्यूज जैसे मीडिया हाउस में काम किया है, जहां उन्होंने न्यूज रिपोर्टिंग व कंटेंट क्रिएशन में अपनी स्किल्स को निखारा। अमित ने भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से हिंदी जर्नलिज्म में पीजी डिप्लोमा और गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी, हिसार से मास कम्युनिकेशन में मास्टर (MA) किया है। अपने पूरे करियर के दौरान, अमित ने डिजिटल मीडिया में विभिन्न बीट्स पर काम किया है। अमित की एक्सपर्टीज पॉलिटिक्स, इंटरनेशनल, स्पोर्ट्स जर्नलिज्म, इंटरनेट रिपोर्टिंग और मल्टीमीडिया स्टोरीटेलिंग सहित विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई है। अमित नई मीडिया तकनीकों और पत्रकारिता पर उनके प्रभाव को लेकर काफी जुनूनी हैं। और पढ़ें

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