हमास, हिजबुल्लाह के बाद इजरायल की नई टेंशन बने हूती विद्रोही, आखिर कौन हैं ये
- गाजा में हमास और लेबनान में हिजबुल्लाह के खिलाफ जंग लड़ रहे इजरायल के लिए अब हुती विद्रोही नई सिरदर्दी बनते जा रहे हैं। हुती विद्रोहियों को ईरान का समर्थन है और इजरायल के खिलाफ ताजा हमले के बाद हालात और बिगड़ने के आसार हैं।
यमन के हुती विद्रोहियों ने रविवार को इजरायल के तेल अवीव के पास बैलिस्टिक मिसाइल दागी है। हुती प्रमुख अब्दुल मलिक अल-हुती ने हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि मिसाइल ने इजरायल की सुरक्षा डोम को भी भेद दिया। हालांकि इस हमले में कोई हताहत नहीं हुआ लेकिन इस हमले के बाद पहले से ही नाजुक क्षेत्रीय तनाव और बढ़ गया है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए चेतावनी दी है कि ईरान समर्थित हुती विद्रोहियों को इस हमले की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। हालांकि इस मिसाइल से केवल मामूली नुकसान पहुंचा है लेकिन हमले के संदेश को कम नहीं आंका जा सकता। यह हुती विद्रोहियों से जुड़ा ताजा हमला है जो सामूहिक रूप से ईरान समर्थित मिलिशिया के नेटवर्क के हिस्से के रूप में गाजा संघर्ष में तेजी से शामिल हो रहे हैं। इस हमले ने यह सवाल खड़े कर दिए हैं कि युद्धग्रस्त यमन की एक मिलिशिया ने इस तरह की लंबी दूरी का मिसाइल हमले करने की क्षमता कैसे हासिल कर ली।
कौन हैं हुती
आधिकारिक तौर पर ‘अंसार अल्लाह’ के रूप में जाना जाने वाला यह समूह 1990 के दशक में एक धार्मिक आंदोलन से शुरू होकर बाद में शक्तिशाली मिलिशिया बन गया। हुती यमन के उत्तर-पश्चिमी सादा प्रांत से निकला एक बड़ा कबीला है। वे शिया धर्म के ज़ायदी रूप का पालन करते हैं। यमन की आबादी में ज़ायदी लगभग 35 प्रतिशत हैं। 1962 में शासन से हटने से पहले एक ज़ायदी इमामत ने 1,000 सालों तक यमन पर शासन किया। तब से ज़ायदी अपनी राजनीतिक शक्ति से वंचित हैं और यमन में अपने अधिकार और प्रभाव को बहाल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 1980 के दशक में हुती कबीले ने ज़ायदी परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए एक आंदोलन शुरू किया। हालांकि सभी ज़ायदी हूती आंदोलन के साथ नहीं जुड़े हैं।
यमन का गृह युद्ध और हुती
हुती विद्रोही एक दशक से भी ज्यादा से यमन की सरकार से भिड़ रहे हैं। 2011 से हुती आंदोलन अपनी ज़ायदी जड़ों से आगे बढ़ गया है और केंद्र सरकार के विरोध में एक व्यापक आंदोलन बन गया है। विद्रोहियों ने खुद को अंसार अल्लाह या ईश्वर की पार्टी के नाम से बुलाना शुरू कर दिया है। यमन की राजनीतिक अस्थिरता 2011 के अरब स्प्रिंग विद्रोह के बाद शुरू हुई जिसने राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह को सत्ता से हटा दिया जो 1990 से सत्ता में थे। तत्कालीन उपराष्ट्रपति अब्दराबुह मंसूर हादी दो साल के कार्यकाल के लिए यमन के अंतरिम राष्ट्रपति बने। इसके बाद 2014 में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और ईंधन की बढ़ती कीमतों से यमन में अशांति पैदा हो गई जिसमें एक आजाद दक्षिणी यमन की मांग भी शामिल थी। मौके का फायदा उठाते हुए हुती विद्रोहियों ने पूर्व राष्ट्रपति सालेह की मदद से सना में प्रवेश किया और हादी को घर में नजरबंद कर दिया।
सऊदी अरब और अमेरिका की भूमिका
2015 में हादी को सत्ता में वापस लाने के घोषित लक्ष्य के साथ, सऊदी अरब ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ मिलकर नौ अरब देशों का गठबंधन बनाया। इस गठबंधन को अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम (यूके), फ्रांस और कनाडा का समर्थन प्राप्त था। सऊदी अरब ने संघर्ष को सांप्रदायिक रूप में पेश किया और इस बात पर जोर दिया कि ईरान हुती विद्रोहियों का समर्थन कर रहा है। मार्च 2015 में सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन ने यमन के खिलाफ हवाई हमले करना और नौसैनिक नाकाबंदी करना शुरू कर दिया जिसमें नागरिकों को अंधाधुंध तरीके से निशाना बनाया गया।
यमन में युद्ध छेड़ने के लिए सऊदी अरब की प्रेरणा क्या थी?
सऊदी नेताओं ने कई कारणों से हादी का समर्थन किया। वे सऊदी अरब की दक्षिणी सीमा पर हुती विद्रोहियों के वर्चस्व से चिंतित थे। यमन के तट से दूर बाब अल-मंदाब एक महत्वपूर्ण तेल शिपिंग मार्ग है जो लाल सागर और अदन की खाड़ी को जोड़ता है और सउदी यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि वे इस पर नियंत्रण रखें। यह समुद्री मार्ग सऊदी अरब के लिए प्रतिदिन लाखों बैरल तेल की आवाजाही की सुविधा प्रदान करता है और दुनिया की तेल आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण है। यमन युद्ध ने तत्कालीन सऊदी रक्षा मंत्री और अब क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा किया जिन्होंने इस संघर्ष का इस्तेमाल सत्ता को मजबूत करने के लिए किया।
हुती विद्रोहियों और ईरान का रिश्ता
हुती ईरान समर्थित मिलिशिया और राजनीतिक गुटों के बढ़ते नेटवर्क का हिस्सा हैं जिसमें लेबनान में हिज़्बुल्लाह और इराक में दूसरे शिया मिलिशिया शामिल हैं। तेहरान के लिए हुती एक कम लागत वाली प्रॉक्सी शक्ति हैं। हुती अरेबियन पेनिनसुला को अस्थिर करने और लाल सागर में ईरानी शक्ति को दिखाने में सक्षम है। बाब-अल-मंदाब, दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण समुद्री चोकपॉइंट्स में से एक है। हुती विद्रोहियों का समर्थन करके ईरान इस महत्वपूर्ण गलियारे पर कब्जा करना चाहता है। यह हुती विद्रोहियों को ईरान की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाता है जिसका उद्देश्य क्षेत्र में अमेरिका और सऊदी प्रभुत्व को चुनौती देना है। यमनी गृहयुद्ध की शुरुआत से ही हुती विद्रोही ईरानी मदद पर निर्भर हैं। इन मददों में मिसाइल से लेकर असेंबली और लॉन्च तकनीकों में प्रशिक्षण तक सब कुछ शामिल है। हालांकि ईरान ने कभी भी उनके समर्थन को खुले तौर पर स्वीकार नहीं किया है लेकिन अमेरिका और बाकी देशों ने कई बार यमन के रास्ते में ईरानी मिसाइल शिपमेंट को रोका है।
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