Hindi Newsविदेश न्यूज़US State Department employees say Donald Trump is harming America diplomacy
अमेरिकी कूटनीति का अंत... घर में ही घिरे डोनाल्ड ट्रंप; विदेश नीति पर एक्सपर्ट्स ने उठाए सवाल

अमेरिकी कूटनीति का अंत... घर में ही घिरे डोनाल्ड ट्रंप; विदेश नीति पर एक्सपर्ट्स ने उठाए सवाल

संक्षेप: पोलिटिको ने विदेश विभाग के दर्जन भर अधिकारियों, पूर्व राजनयिकों और अन्य अमेरिकी अधिकारियों से बात की, जो विभाग की गोपनीय सूचनाओं से परिचित हैं। नाम न बताने की शर्त पर उन्होंने खुलासा किया कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के आठ महीने बीत चुके हैं, फिर भी आधे से ज्यादा अमेरिकी राजदूत पद खाली हैं।

Mon, 22 Sep 2025 04:55 PMDevendra Kasyap लाइव हिन्दुस्तान, वाशिंगटन
share Share
Follow Us on

अमेरिकी विदेश विभाग (स्टेट डिपार्टमेंट) के अधिकारियों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका दावा है कि उनका प्रशासन न केवल अमेरिकी कूटनीति को कमजोर कर रहा है, बल्कि सुधारों के नाम पर इसे पूरी तरह नष्ट करने पर तुला हुआ है। रिपोर्ट्स के अनुसार, 60 से अधिक राजदूत पद अभी भी खाली हैं, जिससे कूटनीतिक प्रयास बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कूटनीतिज्ञों को निर्देश दिया जा रहा है कि वे ट्रंप की पक्षपाती नीतियों के विरुद्ध कोई मत न दें, यही कारण है कि अमेरिकी विदेश नीति में पारदर्शिता का स्तर लगातार गिर रहा है।

वाशिंगटन की वैश्विक प्रतिष्ठा पर बट्टा

ट्रंप प्रशासन ने दक्षता बढ़ाने के बहाने स्टेट डिपार्टमेंट में व्यापक कटौती की है, लेकिन आलोचकों का मानना है कि इससे वाशिंगटन की अंतरराष्ट्रीय साख धूमिल हो रही है। विभाग के कर्मचारी चिंतित हैं कि ये नीतियां अमेरिकी हितों को गंभीर क्षति पहुंचा रही हैं। पूर्व अधिकारियों ने इसे 'अमेरिकी कूटनीति का अंत' तक करार दिया है। ट्रंप प्रशासन से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। वास्तव में ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के आठ महीने पूरे हो चुके हैं। सत्ता ग्रहण करने से पूर्व उन्होंने अमेरिकियों से भारी-भरकम वादे किए थे, जिनमें कूटनीति में सुधार भी शामिल था। लेकिन पोलिटिको की रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्रों का कहना है कि वे उलटे इसे ध्वस्त कर रहे हैं, इतनी बुरी तरह कि अमेरिका का वैश्विक प्रभाव ही कम हो रहा है।

कर्मचारियों में डर का माहौल

पोलिटिको ने विदेश विभाग के दर्जन भर अधिकारियों, पूर्व राजनयिकों और अन्य अमेरिकी अधिकारियों से बात की। नाम न बताने की शर्त पर उन्होंने खुलासा किया कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के आठ महीने बीत चुके हैं, फिर भी आधे से ज्यादा अमेरिकी राजदूत पद खाली हैं। विभाग के अधिकांश शीर्ष पदों पर अस्थायी अधिकारियों को रखा गया है, जो अक्सर कम अनुभवी और अन्य पृष्ठभूमि के हैं। कई अमेरिकी राजनयिकों को लगभग हाशिए पर धकेल दिया गया है, क्योंकि वे प्रशासन के उन आदेशों को लागू करने में असमर्थ हैं जो उन्हें भ्रामक लगते हैं। कई तो अपनी राय जाहिर करने से डरते हैं, क्योंकि नए 'निष्ठा' परीक्षण नियमों के तहत उन्हें नौकरी से निकाला जा सकता है या प्रमोशन से वंचित किया जा सकता है। वे पहले ही अपने हजारों साथियों को नौकरी से जाते और कई कार्यालयों के बंद होते देख चुके हैं।

राजनयिकों में असहायता की भावना

कई राजनयिकों ने माना कि वे न केवल असहाय महसूस कर रहे हैं, बल्कि परिस्थितियों के आगे हार मान चुके हैं। उनका कहना है कि यदि ट्रंप द्वारा नियुक्त राजनीतिक अधिकारी उनकी सलाह न लें, तो कोई समस्या नहीं। लेकिन जो भी योजना लागू करने का आदेश वे देंगे, उसके कानूनी और तार्किक परिणामों से तो उन्हें ही निपटना पड़ेगा। अधिकारियों और राजनयिकों के अनुसार, ट्रंप प्रशासन विदेश सेवा को अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक मामूली, दुर्बल शक्ति में बदल रहा है, जहां राजनयिक नीतिगत विचारों के स्रोत के बजाय केवल कार्यान्वयनकर्ता बनकर रह गए हैं। यह सब तब हो रहा है जब विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने विदेश नीति निर्माण में अपने विभाग को अधिक केंद्रीय भूमिका देने की घोषणा की है।

प्राथमिकताओं में बड़ा बदलाव

दूसरी ओर, विभाग के प्रवक्ता टॉमी पिगॉट ने रुबियो के सुधारों का समर्थन करते हुए कहा कि विदेश मंत्री ने पूरे स्टेट डिपार्टमेंट का पुनर्गठन किया है, ताकि क्षेत्रीय ब्यूरो और दूतावासों में तैनात लोग नीतियों को प्रभावित करने की स्थिति में रहें। हालांकि, उन्होंने सख्त लहजे में चेतावनी दी कि हम किसी भी पद का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं करेंगे जो विधिवत चुने गए राष्ट्रपति के उद्देश्यों को कमजोर करे। उन्होंने कहा कि विभाग अभी भी सक्रिय है, हालांकि इसकी प्राथमिकताएं बदल चुकी हैं। इनमें आव्रजन पर कड़ाई, मानवाधिकार, मानवीय सहायता और लोकतंत्र को बढ़ावा देने पर कम ध्यान; तथा अमेरिकी व्यवसायों के प्रचार पर अधिक जोर शामिल है।

राजनयिकों में मतभेद, लेकिन चिंता बरकरार

अमेरिकी राजनयिकों की इन प्राथमिकताओं पर भिन्न-भिन्न राय है, लेकिन कई को आशंका है कि प्रशासन की रणनीति से अमेरिकी सहयोगी अलग-थलग पड़ रहे हैं। अफगानिस्तान में अमेरिका के पूर्व राजदूत रोनाल्ड न्यूमैन ने कहा कि निर्णयों के प्रति निष्ठा हमेशा अमेरिकी विदेश सेवा का मूल सिद्धांत रही है, लेकिन यदि आंतरिक ईमानदारी को दबाया गया तो प्रशासन उन खतरों में फंस जाएगा जिनसे आसानी से बचा जा सकता था।

Devendra Kasyap

लेखक के बारे में

Devendra Kasyap
देवेन्द्र कश्यप, लाइव हिंदुस्तान में चीफ कंटेंट प्रोड्यूसर। पटना से पत्रकारिता की शुरुआत। महुआ न्यूज, जी न्यूज, ईनाडु इंडिया, राजस्थान पत्रिका, ईटीवी भारत और नवभारत टाइम्स ऑनलाइन जैसे बड़े संस्थानों में काम किया। करीब 11 साल से डिजिटल मीडिया में कार्यरत। MCU भोपाल से पत्रकारिता की पढ़ाई। पटना व‍िश्‍वविद्यालय से पॉलिटिकल साइंस से ग्रेजुएशन। फिलहाल लाइव हिन्दुस्तान में नेशनल, इंटरनेशनल डेस्क पर सेवा दे रहे हैं। और पढ़ें

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।