5000 साल पुरानी पहचान और 50 साल से तकरार, खैबर पख्तूनख्वा में कैसे फंसा पाकिस्तान
तालिबान समेत कई ऐसे आतंकी संगठन सक्रिय रहे हैं, जिन्हें भले ही कभी पाक सरकार ने बनाया था, लेकिन अब उसके लिए ही संकट बन गए हैं। अब पाकिस्तान सरकार के लिए इनसे निपटना मुश्किल होता जा रहा है।

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पाकिस्तान के पेशावर में आतंकी हमले ने एक बार फिर से खैबर पख्तूनख्वा में संकट को उजागर किया है। इस सूबे में पाकिस्तान सरकार हमेशा ही बैकफुट पर दिखी है। एक तरफ पश्तून राष्ट्रवाद यहां हमेशा से रहा है तो दूसरी तरफ इस्लाम के नाम पर भी तालिबान समेत कई ऐसे आतंकी संगठन सक्रिय रहे हैं, जिन्हें भले ही कभी पाक सरकार ने बनाया था, लेकिन अब उसके लिए ही संकट बन गए हैं। इसकी वजह यह है कि पश्तून खुद को पाकिस्तान के उस राष्ट्रवाद से अलग देखते रहे हैं, जिसमें पंजाब में हावी रहा है। इसके अलावा अफगानियों से उनकी एकता रही है, जो पाकिस्तान को नागवार गुजरती रही है।
कहा जाता है कि 2007 में तालिबान के गठन के पीछे इसी पश्तून राष्ट्रवाद को दबाना भी एक मकसद था ताकि इस्लाम की आड़ में नस्लीय पहचान को दबाया जा सके। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच रिश्ते ज्यादातर खराब ही रहे हैं, लेकिन पश्तून राष्ट्रवाद ने 1970 में जब उभार लिया तो यह खाई और बढ़ गई। इसे दबाने के लिए पाक ने इस्लाम का सहारा लिया और आतंकी संगठनों का साथ दिया। इनमें से ही एक तालिबान था, जो बना तो अमेरिका की शह पर था, लेकिन पाकिस्तान ने भी इसे खूब खादपानी दिया। फिर 2007 में पाक तालिबान नाम से एक नया ही दहशतगर्द संगठन बन गया। अब यही उसके लिए नासूर बन गया है।
पश्तून मानते हैं अपनी 5000 साल पुरानी पहचान
खैबर पख्तूनख्वा में भले ही अब पश्तून राष्ट्रवाद पहले जैसा नहीं रहा है, लेकिन उसकी काट के लिए कट्टर इस्लामिक संगठन जो बने थे, वही पाकिस्तान को परेशान कर रहे हैं। फिर पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट नाम के संगठन से पश्तून राष्ट्रवाद भी सिर उठा ही रहा है। ऐसे में पाकिस्तान के सामने दोहरी चुनौती है और कई बार भू-राजनीतिक विश्लेषक तो इस संकट के चलते देश टूटने के कयास भी लगाते हैं। पश्तूनों के बीच कहा जाता रहा है कि हमारी पहचान 5000 साल पुरानी है, जबकि इस्लाम 1400 साल पुराना है और पाकिस्तान का तो जन्म ही 70 साल पहले हुआ है।
पश्तूनों से क्यों घबराता है पंजाबी प्रभुत्व वाला पाक
बलूचों की तरह पश्तून सत्ता से पूरी तरह बेदखल नहीं हैं। उनकी सत्ता, प्रशासन में अच्छी खासी भागीदारी है। यही वजह है कि पंजाबियों के प्रभुत्व वाले पाकिस्तान सत्ता प्रतिष्ठान पश्तून आंदोलन से असहज रहे हैं। कोढ़ में खाज तालिबान बन गया है। लंबे समय तक पाकिस्तान के शासक तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का इस्तेमाल करते रहे हैं, लेकिन अब वह भस्मासुर बनकर सामने खड़ा है। पेशावर के आतंकी हमले ने इस सच को सामने रखा है। यही वजह है कि पाकिस्तान के एक नेता खुद ही कबूल कर लिया कि हमने मुजाहिदीन तैयार किए थे, जो अब हमारे लिए ही काल बन गए हैं।