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सात लाख की आबादी वाले देश से चीन की डील से उड़ी ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और न्यूजीलैंड की नींद

चीन ने प्रशांत महासागर के छोटे से द्वीप सोलोमन के साथ विवादास्‍पद सुरक्षा समझौते पर साइन किया है। चीन के इस समझौते के बाद से ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अमेरिका जैसे देशों की नींद उड़ गई है।

सात लाख की आबादी वाले देश से चीन की डील से उड़ी ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और न्यूजीलैंड की नींद
लाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीWed, 20 Apr 2022 06:29 PM

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चीन ने प्रशांत महासागर के छोटे से द्वीप सोलोमन के साथ विवादास्‍पद सुरक्षा समझौते पर साइन किया है। चीन के इस समझौते के बाद से ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अमेरिका जैसे देशों की नींद उड़ गई है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि चीन इस द्वीप पर अपना मिलिट्री बेस बना सकता है।

चीन का गेम चेंजर कदम?

सोलोमन द्वीप के प्रधान मंत्री ने सुरक्षा समझौते को लेकर कहा है कि यह समझौता हमारे क्षेत्र की शांति और सद्भाव को प्रतिकूल रूप से प्रभावित या कमजोर नहीं करेगा। हालंकि एक्सपर्ट्स इस बात को मानने से इनकार कर रहे हैं। मामले को नजदीक से देख रहे विशेषज्ञों का कहना है कि चीन का यह कदम पूरे क्षेत्र में गेम चेंजर हो सकता है।

नाकाम रही ऑस्ट्रेलिया की कोशिशें

रिपोर्ट्स बताती हैं कि सोलोमन द्वीप को हर वक्त और हर संभव मदद करने वाला ऑस्ट्रेलिया ने चीन के साथ समझौते को रोकने की पूरी कोशिश की थी लेकिन सोलोमन द्वीप ने मना कर दिया। सोलोमन द्वीप ने कहा है कि इस समझौते से क्षेत्र की शांति को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। उन्होंने इस समझौते को देश के हित में लिया गया फैसला बताया है।

नौसैनिक अड्डा बनाएगा चीन?

रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस समझौते के बाद चीन अपने युद्धक जहाजों को सोलोमन द्वीप के पोर्ट्स पर रख सकता है। इसके साथ ही सोलोमन द्वीप में शांति और सामजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए चीनी सुरक्षा बल को भी भेज सकता है। चूंकि सोलोमन एक द्वीपीय देश है ऐसे में एक्सपर्ट्स मानते हैं कि चीन किसी भी कम आबादी वाले द्वीप पर आसानी से अपना नौसैनिक अड्डा बना सकता है। एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि चीन जिबूती में ऐसा कर चुका है। ऐसे में चीन को सोलोमन में सैन्य अड्डा बनाने में बहुत दिक्कत नहीं होने वाला।

परेशान अमेरिका ने 29 साल बाद खोला दूतावास

मामले को लेकर अमेरिका ने कहा है कि यह समझौता इस क्षेत्र को अस्थिर कर सकता है। मामले की गंभीरता को अमेरिका के इस कदम से समझा जा सकता है कि अमेरिका ने 29 सालों के बाद सोलोमन आइलैंड्स में फिर से अपने दूतावास को खोल दिया है। अमेरिका को डर है कि इस कदम के जरिए चीन प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति और बढ़ा देगा जैसा कि बीजिंग कुछ सालों से करता आ रहा है।

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