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यूक्रेन को घेरने पर अमेरिका और रूस में बातचीत

यू्क्रेन की करीब 1,900 किलोमीटर लंबी सीमा रूस के साथ मिलती है और फिलहाल उस सीमा पर तीनों दिशाओं में भारी संख्या में रूसी सैनिक तैनात हैं. पश्चिमी देशों को डर है कि रूस यूक्रेन पर हमला कर सकता...

यूक्रेन को घेरने पर अमेरिका और रूस में बातचीत
डॉयचे वेले,दिल्लीMon, 10 Jan 2022 05:30 PM
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यू्क्रेन की करीब 1,900 किलोमीटर लंबी सीमा रूस के साथ मिलती है और फिलहाल उस सीमा पर तीनों दिशाओं में भारी संख्या में रूसी सैनिक तैनात हैं. पश्चिमी देशों को डर है कि रूस यूक्रेन पर हमला कर सकता है.यूक्रेन मसले को लेकर रूस और नाटो सदस्यों के बीच जिनेवा में वार्ता हो रही है. इस वार्ता का मकसद यूक्रेन सीमा के पास रूस द्वारा की गई सैन्य तैनाती से उपजे तनाव को घटाना है. अमेरिकी विदेश विभाग ने बताया कि उप विदेश मंत्री वेंडी शैरमन और उनके रूसी समकक्ष सेर्गई रिबकोफ के बीच बातचीत शुरू हो चुकी है. इस मसले पर इसी हफ्ते रूसी राजनयिकों की नाटो प्रतिनिधियों से भी मुलाकात होनी है. साथ ही, रूस की ऑर्गनाइजेशन फॉर सिक्यॉरिटी ऐंड को-ऑपरेशन इन यूरोप (ओएससीई) के प्रतिनिधिमंडल से भी मुलाकात प्रस्तावित है. क्या कह रहे हैं दोनों पक्ष? वार्ता शुरू होने से पहले ही दोनों पक्ष कह चुके हैं कि उन्हें बातचीत के किसी सार्थक नतीजे पर पहुंचने की बहुत संभावना नहीं दिख रही है. इस बाबत 9 जनवरी को रूस के उप विदेश मंत्री सेर्गई रिबकोफ का बयान आया. इंटरफैक्स न्यूज एजेंसी के साथ बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस प्रस्तावित वार्ता से तनाव सुलझने की उम्मीद करना अभी बचकाना होगा. उन्होंने यह भी कहा कि वह वॉशिंगटन की ओर से दिए जा रहे हालिया संकेतों से निराश हैं. दूसरी तरफ अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने भी वार्ता से बहुत ज्यादा उम्मीद न होने की बात कही. उन्होंने सीएनएन से कहा कि उन्हें इस मामले में हाल-फिलहाल किसी समझौते पर पहुंचने की संभावना नहीं दिख रही है. नाटो के सेक्रेटरी जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने भी कहा है कि इन वार्ताओं से फिलहाल तनाव घटने की उम्मीद नहीं दिख रही है. रूस का आरोप है कि मौजूदा तनाव के लिए पश्चिमी देश जिम्मेदार हैं.

उसने नाटो से अपनी कथित विस्तारवादी नीति रोकने की गारंटी मांगी है. साथ ही, यह आश्वासन भी मांगा है कि यूक्रेन और जॉर्जिया को नाटो सदस्यता देने का प्रस्ताव भी रद्द कर दिया जाएगा. वहीं पश्चिमी देशों का आरोप है कि रूस यूक्रेन पर हमले की धमकी दे रहा है इसीलिए उसने यूक्रेनी सीमा के पास अपनी सेना और हथियार तैनात किए हैं. नाटो सदस्य चाहते हैं कि रूस बिना किसी शर्त के पहले यूक्रेनी सीमा के पास से अपनी सेना हटाए. रूस इन आरोपों से इनकार करता है. उसका दावा है कि उसकी सैन्य गतिविधियां आत्मरक्षा के लिए हैं. युद्ध से बेहाल यूक्रेन में जहरीला होता पानी यूरोपियन यूनियन की चिंताएं रूस और अमेरिका के बीच वार्ता असफल रहने पर यूरोपियन संघ को बड़ा नुकसान हो सकता है. यूरोप के रूस के साथ अहम व्यापारिक रिश्ते हैं. अगर वार्ता असफल रही और यूक्रेन तनाव कम नहीं हुआ, तो अमेरिका फिर से रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है. दिसंबर 2021 में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन इस बाबत चेतावनी दे चुके हैं. बाइडेन ने कहा था कि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं है. ना ही उसकी सुरक्षा के लिए अमेरिका की कोई सैन्य प्रतिबद्धता है. इसलिए अगर रूस ने यूक्रेन पर अपनी आक्रामकता नहीं घटाई, तो अमेरिका वहां अपनी सेना नहीं भेजेगा. मगर वह इतना जरूर सुनिश्चित करेगा कि इस आक्रामकता के चलते रूस को बेहद गंभीर आर्थिक परिणाम भुगतने पड़ें. रूस पर प्रतिबंध लगाए जाने की स्थिति में यूरोप के व्यापारिक हितों को बड़ा नुकसान पहुंच सकता है.

रूस और यूरोप के बीच अहम व्यापारिक रिश्ते हैं. एक बड़ी चिंता रूस से आने वाली गैस आपूर्ति से भी जुड़ी है. जी-7 ने दी रूस और ईरान को गंभीर नतीजों की चेतावनी रूसी गैस पर निर्भरता रूस यूरोप को सालाना करीब 30 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस देता है. रूसी गैस सस्ती पड़ती है. हमेशा उपलब्ध रहती है. यह एक बड़ी वजह है कि यूरोपियन संघ की गैस की जरूरतों का लगभग 35 फीसदी हिस्सा रूस से आता है. रूसी सप्लाई लाइन के प्रभावित होने से यूरोप में गंभीर ऊर्जा संकट पैदा हो जाएगा. पहले भी कुछ मौकों पर ऐसा हो चुका है. संघ की इस निर्भरता का इस्तेमाल कर रूस कई बार दवाब भी बनाता रहा है. मसलन, 2006 और 2009 में रूस ने गैस सप्लाई काट दी थी. इसके चलते जनवरी की ठंड के बीच पूर्वी यूरोप में गैस की किल्लत हो गई. यूरोपियन संघ ने कहा भी था कि वह ऊर्जा से जुड़ी जरूरतों में वह रूस से अपनी निर्भरता घटाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस पर बढ़ती निर्भरता को लेकर यूरोपियन संघ के बीच भी असहमति है. इन असहमतियों के केंद्र में है, नॉर्ड स्ट्रीम 2.

यह तकरीबन 1,200 किलोमीटर लंबी एक गैस पाइपलाइन परियोजना है. करीब 9.5 अरब यूरो की लागत वाली ये पाइपलाइन बाल्टिक सागर होते हुए पूर्वी यूरोप को बायपास करके रूस से सीधे जर्मनी आती है. पाइपलाइन पर अमेरिका का रुख अमेरिका और पूर्वी यूरोप के कुछ देश इस पाइपलाइन का विरोध कर रहे थे. अमेरिका ने पाइपलाइन के निर्माण को लटकाने के लिए प्रतिबंध भी लगाए थे. मगर फिर लंबी वार्ता के बाद जुलाई 2021 में अमेरिका और जर्मनी के बीच एक समझौता हुआ. इसमें अमेरिका ने पाइपलाइन का निर्माण पूरा होने पर अपनी सहमति दी. बदले में जर्मनी ने आश्वासन दिया कि अगर मॉस्को ने अपने राजनैतिक हितों के लिए एनर्जी सेक्टर का बेजा इस्तेमाल किया, तो वह रूस पर सख्त रवैया अपनाएगा. यूक्रेन मसले पर बढ़े तनाव के बीच हालिया दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के बीच टेलिफोन पर दो बार बातचीत हो चुकी है. 30 दिसंबर, 2021 को हुई आखिरी बातचीत में भी बाइडेन ने आर्थिक प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी थी. इस पर रूस ने कहा कि ऐसा हुआ, तो दोनों देशों के संबंध पूरी तरह से टूट जाएंगे. एक दूसरे को चेतावनियां देने के अलावा इस बातचीत में एक सकारात्मक चीज यह हुई कि दोनों देश जिनेवा में मिलकर विस्तृत वार्ता करने पर सहमत हुए. कई जानकारों की राय है कि यूरोपियन संघ को भी इस वार्ता में सीधे तौर पर शामिल किया जाना चाहिए था, क्योंकि यह मसला सीधे-सीधे यूरोप की शांति-सुरक्षा और आर्थिक हितों से भी जुड़ा है. स्वाति मिश्रा (एपी, एएफपी).

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