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रूस से युद्ध में यूक्रेन की बड़ी मदद कर रहा यूपी का यह शख्स, सेना से मिला अवॉर्ड

यूक्रेन में युद्ध के दौरान यूपी के रहने वाले बृजेंद्र राणा सेना की बड़ी मदद कर रहे हैं। वह मेडसिन सप्लाई करते हैं। इसके लिए यूक्रेनी सेना ने उन्हें प्रतिष्ठित पुरस्कार दिया है।

रूस से युद्ध में यूक्रेन की बड़ी मदद कर रहा यूपी का यह शख्स, सेना से मिला अवॉर्ड
Ankit Ojhaएजेंसियां,कीवTue, 07 Feb 2023 10:50 AM

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रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को एक साल पूरा होने वाला है। 26 फरवरी को रूस ने पहली बार यूक्रेन पर हमला किया था। हमले के वक्त लगता था कि कुछ ही दिनों में रूस यूक्रेन को घुटने टेकने पर मजबूर कर देगा। हालांकि ऐसा हुआ नहीं। अब रिपोर्ट्स ये भी आती हैं कि यूक्रेन की तरफ से भी रूसी इलाके में हमला होता है। वहीं कई शहरों से रूस की सेना को खदेड़ भी दिया गया है। इन सारे कामों में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की की बड़ी भूमिका है। वह लगातार अपनी सेना का मनोबल बढ़ाते रहे और नागरिकों से भी मदद की अपील करते रहे। 

रूस के खिलाफ युद्ध में मदद करने के लिए मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले शख्स को भी यूक्रेन ने सम्मानित किया है। बृजेंद्र राणा उत्तर प्रदेश के बागपत के रहने वाले हैं। वह दवाई सप्लाई करने के काम में माहिर हैं। जेलेंस्की की अपील के बाद उन्होंने युद्ध के दौरान सैनिकों को दवाई सप्लाई करने का काम शुरू किया। उनके इस काम की वजह से यूक्रेनी सेना के कमांडर इन चीफ ने उन्हें 'बैज ऑफ ऑनर' दिया। यह यूक्रेन में एक बहुत ही प्रतिष्ठित सम्मान है जिसे किसी विशेष अवसर पर केवल सेना प्रमुख ही देते हैं। 

इस मेडल में कीव में बनी मदरलैंड स्टेच्यू की तस्वीर होती है। यह कलाकृति यूक्रने के इतिहास में मायने रखती है। दूसरे विश्वयुद्ध की याद में इसे बनवाया गया था। यह अवॉर्ड ऐसे ही व्यक्ति को दिया जाता है जो कि सेना की मदद करता है। इसके अलावा सेना के नियमों को ध्यान में रखते हुए युद्ध जैसी परिस्थिति में अपना योगदान देता है। यूक्रेन के जनरल ने कहा, हालांकि बृजेंद्र का जन्म भारत में हुआ लेकिन वह यूक्रेन को अपना देश मानते हैं और मेडिकल सप्लाई के लिए अथक परिश्रम करते हैं।

बृजेंद्र राणा 90 के दशक में ही यूक्रेन पढ़ाई करने के लिए गए थे। इसके बाद यूक्रेन में ही उन्होंने शादी कर ली। यूक्रेन में जब युद्ध शुरू हुआ तो उनके पास भी वहां से भागकर भारत आने का विकल्प था। हालांकि उन्होंने युद्ध प्रभावित यूक्रेन में ही रुकने का फैसला किया। संकट के दौरान वह सैनिकों और आम लोगों को फ्री में दवाएं पहुंचा रहे हैं।

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