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अफगानिस्तान में तालिबान ने पसारे पांव तो क्यों ताश के पत्तों की तरह बिखर गई अफगान सेना?

अमेरिकी सेना की वापसी और तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफगानिस्तान अराजकता में डूब गया है। ऐसे में देश के बाहर रहने वाले अफगानी लोग बुरे हालात में साथ छोड़ देने के लिए विश्व समुदाय से नाराज हैं।...

अफगानिस्तान में तालिबान ने पसारे पांव तो क्यों ताश के पत्तों की तरह बिखर गई अफगान सेना?
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीTue, 17 Aug 2021 11:58 AM

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अमेरिकी सेना की वापसी और तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफगानिस्तान अराजकता में डूब गया है। ऐसे में देश के बाहर रहने वाले अफगानी लोग बुरे हालात में साथ छोड़ देने के लिए विश्व समुदाय से नाराज हैं। इन लोगों में सबसे अधिक गुस्सा अमेरिका के लिए है।

अफगानिस्तान में पूर्व अमेरिकी राजदूत रोनाल्ड न्यूमैन जैसे कई लोगों ने जो बाइडन प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इनका कहना है कि अमेरिका ने बुरे वक्त में साथ छोड़कर अफगान सेना के मनोबल को "गहरा झटका" दिया है। अफगानी सेना पर तालिबान की आसान जीत के बाद लोगों को देश छोड़कर भागते देखा गया।

अमेरिका और नाटो ने सेना बनाने की कोशिश में दो दशक लगा दिए थे, लेकिन इसके बावजूद सब कुछ ताश के पत्तों की तरह बिखर गया। यहां हम आपको बता रहे हैं कि असल में क्या कमी रह गई जिसके चलते अफगानिस्तान इस बदतर स्थिति में पहुंच गया। 

आधुनिक सेना बनाने में पानी की तरह बहाया पैसा

वाशिंगटन ने आधुनिक सेना बनाने के लिए 83 अरब डॉलर खर्च किए। इसका मतलब हाई-टेक संचार पर भारी निर्भरता है जबकि यहां केवल 30% आबादी ही विश्वसनीय बिजली आपूर्ति पर भरोसा कर सकती है। बता दें कि अफ़गान में बड़ी संख्या में लोग अनपढ़ हैं और अत्याधुनिक सैन्य उपकरणों का समर्थन करने के लिए बुनियादी ढांचे की कमी है। ऐसे में वहां बड़ी संख्या में दुश्मन का मुकाबला मुश्किल था।

बेहद कम थी अफगान सेना की वास्तविक संख्या

अमेरिकी सेना के अफगान छोड़ने से पहले आखिरी के महीनों में पेंटागन ने कहा था कि अफगान बलों को हमसे संख्यात्मक लाभ था। माना जाता है कि तालिबान के 70,000 लड़ाकों की तुलना में सेना और पुलिस में 300,000 जवान थे। लेकिन ये संख्या अमेरिकी सेना के चलते अधिक दिखाई पड़ रही थी। जुलाई 2020 तक, तीन लाख में 1,85,000 सैनिक या स्पेशल फ़ोर्स के जवान शामिल थे, जबकि अन्य पुलिस और सुरक्षाकर्मी थे। वहीं इनमें बामुश्किल 60 फ़ीसदी ही ट्रेंड फाइटर्स थे।

सेना की तनख्वाह और फूड सप्लाई में देरी 

सालों तक अफगान सेना के वेतन का भुगतान पेंटागन द्वारा किया जाता था। लेकिन जब से अमेरिकी सेना ने अपनी वापसी की घोषणा की, भुगतान की जिम्मेदारी काबुल सरकार पर आ गई। अफगान सैनिकों ने शिकायत थी की उन्हें न केवल महीनों तक वेतन नहीं मिला बल्कि खाना और गोला-बारूद भी ठीक से नहीं मिल रहा था।

अमेरिका के झूठे वादे

अमेरिकी अधिकारियों ने वादा किया था कि वे 31 अगस्त को देश से वापसी के बाद भी अफगान राष्ट्रीय सेना का समर्थन करेंगे। लेकिन कैसे ये उन्होंने कभी यह बताया। मई में, अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने कहा कि "ओवर द हॉरिजन" लॉजिस्टिक के माध्यम से दूर से सहायता प्रदान की जाएगी। इस अस्पष्ट कॉन्सेप्ट ने ज़ूम प्लेटफॉर्म पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के साथ वर्चुअल ट्रेनिंग सेशल के उपयोग को निहित किया। ये दृष्टिकोण बिल्कुल बेवकूफ बनाने वाला मालूम पड़ता है।

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