Student sentenced to death in Pakistan for blasphemy over making derogatory video on Prophet Muhammad Whatsapp - International news in Hindi पाकिस्तान में ईशनिंदा पर छात्र को सजा-ए मौत, दूसरे को उम्रकैद; पैगंबर मुहम्मद पर बनाया था अपमानजनक वीडियो  , International Hindi News - Hindustan
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पाकिस्तान में ईशनिंदा पर छात्र को सजा-ए मौत, दूसरे को उम्रकैद; पैगंबर मुहम्मद पर बनाया था अपमानजनक वीडियो  

Pakistan News: ईशनिंदे के मामले में दोषी दोनों छात्रों पर कथित तौर पर पैगंबर मुहम्मद और उनकी पत्नियों के बारे में कथित अपमानजनक शब्द कहने, फोटो और वीडियो बनाने और उसे साझा करने के आरोप हैं।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, लाहौरSat, 9 March 2024 07:17 AM
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पाकिस्तान में ईशनिंदा पर छात्र को सजा-ए मौत, दूसरे को उम्रकैद; पैगंबर मुहम्मद पर बनाया था अपमानजनक वीडियो  

पड़ोसी देश पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में ईशनिंदा के मामले में एक अदालत ने 22 साल के एक छात्र को मौत की सजा सुनाई है, जबकि दूसरे को उम्रकैद दी है। दोषियों पर कथित तौर पर पैगंबर मुहम्मद और उनकी पत्नियों के बारे में कथित अपमानजनक शब्द कहने, फोटो और वीडियो बनाने के आरोप हैं। जिस छात्र को मौत की सजा सुनाई गई है, उसकी उम्र 22 साल है, जबकि उम्रकैद पाने वाली की उम्र 17 साल है। यानि वह किशोर है।

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अपने फैसले में अदालत ने कहा कि छात्रों ने 'मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से'सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्हाटसएप पर ईशनिंदा सामग्री साझा की है। दोनों छात्रों ने अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार किया है। उनके वकीलों ने कहा है कि उन्हें गलत तरीके से मामले में फंसाया गया है।

इस मामले की एफआईआर 2022 में दर्ज की गई थी। दोनों छात्रों के खिलाफ लाहौर में पाकिस्तान की संघीय जांच एजेंसी (FIA) की साइबर क्राइम यूनिट ने केस दर्ज किया था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसे तीन अलग-अलग मोबाइल फोन नंबरों से ईशनिंदा सामग्री वाले वीडियो और तस्वीरें मिलीं हैं। जांच एजेंसी ने शिकायतकर्ता के फोन की जांच करने के बाद पाया कि आरोपियों के फोन से "अश्लील सामग्री" भेजी गई थी।

22 वर्षीय छात्र के पिता निचली अदालत से बेटे को मिली फांसी की सजा के खिलाफ लाहौर हाई कोर्ट में अपील दायर करने की तैयारी कर रहे हैं। बता दें कि पाकिस्तान में ईशनिंदा की सजा मौत है। ईशनिंदा के खिलाफ सबसे पहले अविभाजित भारत में ब्रिटिश काल में लागू किया गया था। बाद में 1980 के दशक में पाकिस्तान की सैन्य सरकार के तहत इसका विस्तार किया गया था।

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