सऊदी अरब ने पुराने दोस्त अमेरिका को दिया दूसरा झटका, खाड़ी देशों के सम्मेलन में शी जिनपिंग को न्योता
दिसंबर में शी जिनपिंग सऊदी अरब जा रहे हैं। इसी दौरान खाड़ी देश एक सम्मेलन में शामिल होंगे जिसमें शी जिनपिंग भी शिरकत करेंगे। यह अमेरिका के लिए झटके की तरह है।
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अमेरिका और सऊदी अरब लंबे समय से दोस्त रहे हैं लेकिन यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद दोनों देशों में तनाव पैदा हो गया है। तेल के उत्पादन को कम करने के बाद अब सऊदी अरब अमेरिका को दूसरा झटका देने जा रहा है। सऊदी अरब में होने वाले अरब देशों के सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आमंत्रित किया गया है। बीते सात साल में पहली बार वह इस सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। तेल के उत्पादन में सऊदी और रूस के नेतृत्व वाले ओपेक प्लस संगठन ने कटौती का फैसला किया है, जिस पर अमेरिका को ऐतराज था। लेकिन सऊदी अरब ने रूस का ही साथ दिया। लंबे समय से अमेरिका और सऊदी अरब दोस्त रहे हैं। ऐसे में सऊदी अरब का यह स्टैंड उसकी चिंता बढ़ाने वाला है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पिछले दिनों यह भी कहा था कि हम सऊदी अरब से अपने रिश्तों की समीक्षा करेंगे।
मध्य एशिया में चीन की पैठ?
सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन ने शी जिनपिंग को आमंत्रित किया है। शी के दौरे के समय ही अरब देशों के साथ सम्मेलन होगा। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक सऊदी अरब ने मध्य एशिया के देशों को भी आमंत्रण भेज दिया है। इसके अलावा उत्तरी अमेरिका के कई देशों को भी न्योता भेजा गया है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग 7 दिसंबर को सऊदी अरब पहुंचने वाले हैं। शी के दौरे के दौरान कई समझौतों पर हस्ताक्षर हो सकते हैं।
बता दें कि सऊदी अरब की अगुआई वाले ओपेक प्लस ने कच्चे तेल की वैश्विक सप्लाई में दो फीसदी की कटौती करने का फैसला किया है। यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस के विरोध में अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने रूस से तेल आयात पर प्रतिबंध लगाया है। इसके बाद ओपेक के फैसले से अमेरिका को झटका लगा है। बाइडेन प्रशासन ने सऊती अरब पर रूस का पक्ष लेने का आरोप लगाया था। हालांकि सऊदी अरब ने फॉसिल फ्यूल में सुपर इन्वेस्टमेंट का हवाला देते हुए इसे सही ठहराया था।
बता दें कि जुलाई में बाइडन रियाद गए थे और उन्होंने क्राउन प्रिंस से मुलाकात की थी। हालांकि अब हाल यह है कि बाइडन ने सऊदी अरब के साथ रिश्तों पर पुनर्विचार करने की बात कही है। बाइडन प्रशासन ने ओपेक प्लस से अनुरोध किया था कि तेल की सप्लाई में कटौती ना की जाए। हालांकि सऊदी अरब ने अमेरिका को दो टूक जवाब दे दिया। इसके बाद रियाद ने बीजिंग के साथ बैठक की। रूस भी ओपेक प्लस का हिस्सा है। इसलिए अमेरिका सऊदी अरब से ज्यादा नाराज है।
चीन और अमेरिका के बीच क्यों बढ़ा तनाव
चीन और अमेरिका के बीच तनाव कोई नया नहीं है। लंबे समय तक दोनों देश व्यापार को लेकर भिड़े रहे। इसके बाद ताइवान और हॉन्गकॉन्ग के मुद्दे पर अमेरिका और चीन के बीच ठन गई। नैन्सी पेलोसी के दौरे के बाद चीन अमेरिका से बुरी तरह चिढ़ गया और दोनों खुलकर आमने-सामने आ गए। वहीं यूक्रेन युद्ध में भी चीन रूस के साथ दिखाई देता है। ऐसे में अमेरिका और चीन के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है।