जब एक सेकंड की देरी ने बचाई थी परवेज मुशर्रफ की जान, राष्ट्रपति रहते कार के उड़ गए थे परखच्चे
Pervez Musharraf Death: मुशर्रफ ने लिखा है कि जब 17 अगस्त 1988 को जियाउल हक का विमान C-130 क्रैश हुआ था, तब भी किस्मत से वह बच गए थे क्योंकि लास्ट मिनट में उनकी जगह दूसरे अधिकारी की नियुक्ति हो गई थी

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Pervez Musharraf Death: पड़ोसी देश पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे परवेज मुशर्रफ का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है। वह 79 वर्ष के थे। 1999 में उन्होंने तत्कालीन नवाज शरीफ सरकार का तख्ता पलट कर पाकिस्तान की बागडोर संभाली थी। जब वह राष्ट्रपति थे तो एक भयानक बम विस्फोट में उनका मौत से सामना हुआ था।
अपनी आत्मकथा 'In the Line of Fire: A Memoir' में परवेज मुशर्रफ ने लिखा है कि 14 दिसंबर, 2003 को जब वह राष्ट्रपति थे, तब कराची से चकलाला एयरफोर्स बेस पर उनका विमान लैंड किया था। यह बेस रावलपिंडी आर्मी हाउस से चार किलोमीटर की दूरी पर था और इस्लामाबाद से 10 किलोमीटर दूर था। बेस पर उतरते ही उन्हें दो बड़े समाचार मिले थे। पहला कि पाकिस्तान ने भारत को पोलो मैच में हरा दिया है, और दूसरा कि सद्दाम हुसैन पकड़े जा चुके हैं।
मुशर्रफ ने लिखा है, "जब हम कार में इस पर अपने मिलिट्री सेक्रेटरी मेजर जनरल नदीम ताज से चर्चा कर रहे थे, जो मेरे दाहिनी तरफ बैठे थे, तभी भयानक विस्फोट की आवाज सुनाई पड़ी। हमारी कार हवा में उछल गई। उसके चारों पहिए निकल कर बिखर चुके थे। उस वक्त कार एक पुलिया पर से गुजर रही थी। मैं तुरंत समझ गया था कि बड़ा बम विस्फोट हुआ है।"
पूर्व तानाशाह ने लिखा है कि तब उनके मिलिट्री सेक्रेटरी ने बताया था कि वह एक बड़ा धमाका था, जिसमें तीन टन वजनी उनकी मर्सिडीज कार हवा में उड़ गई थी। जब थोड़ी देर बाद वह रावलपिंडी के आर्मी हाउस पहुंचे तो उनके काफिले के पीछे चल रहे डिप्टी मिलिट्री सेक्रेटरी लेफ्टिनेंट कर्नल असीम बाजवा ने बताया था कि यह हमला उनकी हत्या की एक कोशिश थी, जिसमें वह बाल-बाल बच गए थे।
घर पहुंचते ही परवेज मुशर्रफ ने अपनी पत्नी सेहबा मुशर्रफ को धमाके के बारे में बताया जो कुछ देर पहले धमाके की आवाज सुन चुकी थीं। मुशर्रफ ने बताया कि अगर एक सेकंड पहले उनकी कार ब्रिज पर आई होती तो वह जिंदा नहीं बचते और उनकी कार 25 फीट ऊपर उड़ गई होती। उन्होंने अपनी बूढ़ी मां को इस घटना के बारे में नहीं बताया था।
मुशर्रफ ने इसी किताब में लिखा है कि उन्होंने अपनी जिंदगी में कुल पांच बार इसी तरह से मौत का सामना किया है। एक बार तो आतंकियों ने उन्हें घेर लिया था लेकिन किसी तरह जान बच गई। एक बार बचपन में भी पेड़ से गिरने के बाद वो बच गए थे। मुशर्रफ ने लिखा है कि जब 17 अगस्त 1988 को जियाउल हक का विमान सी-130 क्रैश हुआ था, तब भी किस्मत से वह बच गए थे क्योंकि लास्ट मिनट में उनकी जगह दूसरे अधिकारी को ब्रिगेडियर नियुक्त कर दिया गया था।