नेपाली राष्ट्रपति ने दी नागरिकता कानून में संशोधन की मंजूरी, भड़केगा चीन; क्या है तिब्बत कनेक्शन?
पड़ोसी चीन के साथ एक भूमि सीमा साझा करने वाले नेपाल ने ऐतिहासिक रूप से तिब्बतियों को शरण दी है। 1950 के दशक के अंत में चीनी आक्रमण के बाद भागे लोगों ने भारत और नेपाल में शरण ली थी।
नेपाल के राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने हाल ही में नागरिकता कानून में एक विवादास्पद संशोधन को मंजूरी दे दी। राष्ट्रपति की ये मंजूरी ऐसे समय में आई है जब नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्पकमल दाहाल 'प्रचंड' अपने चार दिवसीय दौरे पर भारत आए हुए हैं। जानकारों का मानना है कि नेपाली नागरिकता कानून में संशोधन से चीन भड़क उठेगा। चीन तिब्बती लोगों को लेकर डरा हुआ है। आइए पहले जानते हैं कि कानून में संशोधन क्या है।
क्या है विवादास्पद संशोधन?
नेपाली पीएम के काठमांडू से रवाना होने से कुछ घंटे पहले, राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने नेपाल के नागरिकता कानून में एक विवादास्पद संशोधन को अपनी सहमति दी थी। इसके मुताबिक, नेपालियों से शादी करने वाली विदेशी महिलाओं को तुरंत नेपाली नागरिकता मिल जाएगी। यह कानून नेपाली नागरिकों से शादी करने वाले विदेशियों को राजनीतिक अधिकारों के साथ-साथ उन्हें तुरंत नागरिकता प्रदान करता है। यह वही संशोधन है जिसे पूर्व राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने संसद द्वारा दूसरी बार भेजे जाने के बाद भी सहमति देने से इनकार कर दिया था।
क्यों भड़क सकता है चीन? क्या है तिब्बत कनेक्शन?
नेपाल का नया नागरिकता कानून उसे दुनिया के सबसे उदार कानूनों में से एक बनाता है। संशोधन को लेकर राष्ट्रपति पौडेल की सहमति से चीन भड़क सकता है। चीन पहले ही कई बार नेपाली नागरिकता कानून में संशोधन को लेकर चेतावनी देता रहा है। यही वजह है कि यह संशोधन कई सालों से अटका हुआ था। चीन को डर है कि नेपाल का नागरिकता कानून तिब्बती शरणार्थियों के वंशजों को नागरिकता और संपत्ति का अधिकार दे सकता है। यानी तिब्बती लोग भी नेपाल के नागरिक बन सकते हैं।
नेपाल में कितने तिब्बती?
भारत के बाद, नेपाल दुनिया में सबसे ज्यादा तिब्बती शरणार्थियों का घर है। नेपाल ने कोई दस्तावेजीकरण नहीं कराया है जिससे सटीक संख्या का अनुमान लगाना मुश्किल है। 2020 यूएनएचसीआर की रिपोर्ट में आंकड़ा 12,540 था।
पड़ोसी चीन के साथ एक भूमि सीमा साझा करने वाले छोटे एशियाई देश नेपाल ने ऐतिहासिक रूप से तिब्बतियों को शरण दी है। 1950 के दशक के अंत में चीनी आक्रमण और तिब्बत पर कब्जे के बाद भागे लोगों ने भारत और नेपाल में शरण ली थी। अब नेपाल में तिब्बती शरणार्थियों के लिए कई शिविर हैं, हालांकि अधिकांश काठमांडू और आसपास के क्षेत्रों के साथ-साथ केंद्रीय शहर पोखरा में रहते हैं।
चीन तिब्बती लोगों पर नकेल कसने के लिए कई हथकंडे अपना रहा है। काठमांडू में चीनी प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। नेपाल के साथ अपने संबंधों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की सर्वोच्च प्राथमिकता तिब्बती शरणार्थी समुदाय पर कंट्रोल और दमन के आसपास केंद्रित है। बीजिंग और काठमांडू ने 1955 में राजनयिक संबंध स्थापित किए थे। अगले ही साल एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए जिसमें नेपाल ने तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता दी।
भारत दौरे पर प्रचंड
भारत की चार दिवसीय यात्रा पर आए नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्पकमल दाहाल 'प्रचंड' ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से द्विपक्षीय वार्ता के जरिए दोनों देशों के बीच सीमा मुद्दों को हल करने का आग्रह किया। समाचार एजेंसी एएनआई ने मोदी के साथ बैठक के बाद प्रचंड के हवाले से कहा, "मैं पीएम मोदी से द्विपक्षीय वार्ता के साथ सीमा मुद्दों को हल करने का आग्रह करता हूं।" दोनों देशों के प्रमुखों ने ऊर्जा, कनेक्टिविटी और व्यापार सहित कई क्षेत्रों में भारत-नेपाल सहयोग को मजबूत करने के लिए एक दूसरे के साथ बातचीत की।
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