मालदीव संकट: आपातकाल के बाद पुलिस ने पूर्व राष्ट्रपति गयूम को किया अरेस्ट
मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को उनके अलग हो चुके सौतेले भाई और राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन द्वारा देश में आपातकाल लगाए जाने के थोड़ी देर बाद ही गिरफ्तार कर लिया गया। गयूम की पुत्री...
मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को उनके अलग हो चुके सौतेले भाई और राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन द्वारा देश में आपातकाल लगाए जाने के थोड़ी देर बाद ही गिरफ्तार कर लिया गया। गयूम की पुत्री युम्ना मौमून ने ट्विटर पर बताया कि 80 वर्षीय पूर्व राष्ट्रपति को राजधानी माले स्थित उनके घर से ले जाया गया। गयूम 2008 में देश का पहला लोकतांत्रिक चुनाव होने से पहले 30 साल तक देश के राष्ट्रपति रहे। गयूम विपक्ष के साथ थे और अपने सौतेले भाई को अपदस्थ करने के लिये अभियान चला रहे थे।
बता दें, मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने सोमवार को देश में 15 दिन के लिये आपातकाल लगा दिया। यह कदम देश में गहराते राजनैतिक संकट के बीच उठाया गया है। यामीन के सहायक अजीमा शुकूर ने इसकी घोषणा की। यह कदम सुरक्षा बलों को संदिग्धों को गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने की असीम शक्ति प्रदान करता है। यह घोषणा उच्चतम न्यायालय और सरकार के बीच गहराते गतिरोध के बीच की गई है।
मालदीव में आपातकाल, राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने की घोषणा
बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव और चिंताओं के बावजूद राष्ट्रपति यामीन ने राजनैतिक कैदियों को रिहा करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन करने से मना कर दिया है। यामीन के न्यायाधीशों को अपना फैसला पलटने के लिये तीन पत्र भेजने के तुरंत बाद शुकूर ने सरकारी टेलीविजन पर आपातकाल लगाए जाने की घोषणा की। यह दूसरा मौका है जब यामीन ने देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की है। उन्होंने इससे पहले नवंबर 2015 में आपातकाल लगाने की घोषणा की थी, जब उनकी कथित तौर पर हत्या किये जाने का प्रयास किया गया था।
मालदीव: राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग का विरोध करेगी सरकार
अधिकारियों ने बताया कि राष्ट्रपति को दो दिन के भीतर आपातकाल लगाने की घोषणा के बारे में संसद को सूचित करने की आवश्यकता है, लेकिन अधिकारियों ने देश की संसद को अनिश्चितकाल के लिये निलंबित कर दिया है। उच्चतम न्यायालय ने गत गुरुवार को 12 सांसदों की सदस्यता बहाल कर दी थी। ये सांसद यामीन की पार्टी से अलग होकर विपक्ष में शामिल हो गए थे। इससे 85 सदस्यीय संसद में विपक्ष का बहुमत हो गया था और राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाए जाने का खतरा मंडराने लगा था।