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क्या धरती का अंदरूनी भाग बदल रहा है, इसके क्या हैं मायने और हम पर क्या हो सकता है असर?

शोधकर्ताओं के अनुसार यह पेरियोडिक चेंज है। पहले भी पृथ्वी के कोर के घूर्णन की गति में परिवर्तन देखा गया है।उनके मुताबिक 70 साल के चक्र में ऐसा बदलाव आता रहता है,जबकि कुछ गति में तेजी का सुझाव देते हैं

क्या धरती का अंदरूनी भाग बदल रहा है, इसके क्या हैं मायने और हम पर क्या हो सकता है असर?
Pramod Kumarलाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीFri, 27 Jan 2023 10:32 AM
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मशहूर जर्नल नेचर जियोसाइंस में हाल ही में एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया गया था, जिसमें पृथ्वी के अंतरतम भाग (Earth's Core) की गति में बदलाव का वर्णन किया गया है। उस रिपोर्ट ने खूब सुर्खियां बटोरीं। कुछ भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी के कोर ने घूमना बंद कर दिया है, जबकि कुछ ने इस व्याख्या को भ्रामक बताया है। 

अमेरिका के मशहूर वैज्ञानिक डॉन लिंकन का कहना है कि पृथ्वी के कोर ने सचमुच में घूमना बंद नहीं किया है; बल्कि इसका स्वरूप बदल रहा है। डॉन लिंकन फर्मी नेशनल एलिलेरेटर लैबोरेट्री में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। वह कई विज्ञान पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें उनकी नई पुस्तक "आइंस्टीन का अधूरा सपना: प्रैक्टिकल प्रोग्रेस टुवार्ड्स ए थ्योरी ऑफ एवरीथिंग" शामिल है। 

CNN में लिए अपने आलेख में लिंकन ने कहा है कि पृथ्वी कोई ठोस गेंद नहीं है; इसमें कई परतें होती हैं। सबसे अंतरतम कोर (Core) है, जो मंगल ग्रह के आकार के लगभग एक ही आकार का एक ठोस गोला है। इसके चारों ओर बाहरी कोर है, जो तरल चट्टान (Liquid Rock) है। अगली परत मेंटल (Mental) है, जो स्थिरता में टॉफी जैसी है। अंत में पपड़ी (crust) है, जो सबसे बाहरी परत है - वह स्थान जहाँ हम रहते हैं।

उन्होंने लिखा है, "अगर पृथ्वी एक ठोस गेंद होती,तो हर परत एक साथ घूमती और प्रति दिन एक बार ही घूमती।" हालाँकि, कई स्तरों में संरचना होने के कारण पृथ्वी के कोर और अन्य  परतें अलग-अलग दर पर घूमती हैं। 1990 के दशक में, शोधकर्ताओं ने यह दिखाने के लिए पिछले कुछ दशकों में लिए गए भूगर्भीय डेटा का उपयोग किया कि पृथ्वी का कोर पृथ्वी के बाकी हिस्सों की तुलना में थोड़ी तेजी से घूम रहा है। लेकिन यह अंतर बहुत छोटा है- पृथ्वी की सतह की तुलना में कोर भाग लगभग 1 डिग्री प्रति वर्ष तेज घूमता है।

लिंकन ने आलेख में बताया कि हालिया अध्ययन में पाया गया है कि कोर का रोटेशन धीमा हो रहा है। यह रुक नहीं रहा है, बल्कि अब पृथ्वी की उसी गति से घूम रहा है। इसके अलावा, ऐसा प्रतीत होता है कि कोर धीमा हो सकता है ताकि अंततः यह पृथ्वी की तुलना में थोड़ी धीमी गति से घूम सके। यह वैज्ञानिक रूप से दिलचस्प है, लेकिन कुछ सुर्खियों की तुलना में कम नाटकीय है।

शोधकर्ताओं के अनुसार यह पेरियोडिक चेंज है। पहले भी पृथ्वी के कोर के घूर्णन की गति में परिवर्तन देखा गया है। उनके मुताबिक  70 साल के चक्र में ऐसा बदलाव आता रहता है,जबकि कुछ शोधकर्ता गति में बहुत तेजी का सुझाव देते रहे हैं।

भूवैज्ञानिकों के लिए,यह रोमांचक है। पृथ्वी का व्यास सिर्फ 4,000 मील का है। धरती पर सबसे गहरा कुआं 7.5 मील से थोड़ा अधिक गहरा है। पृथ्वी के महाद्वीपों के नीचे की पपड़ी भी लगभग 40 मील गहरी हो सकती है, हालाँकि महासागरों के नीचे की पपड़ी बहुत पतली हो सकती है। पृथ्वी की संरचना का पता लगाने के लिए अप्रत्यक्ष तरीकों की आवश्यकता होती है, जिसमें यह अध्ययन करना शामिल है कि भूकंप से तरंगें पृथ्वी के माध्यम से कितनी तेजी से यात्रा करती हैं, या परमाणु विस्फोटों के दौरान ध्वनि पृथ्वी से कैसे गुजरती हैं। तभी कुछ अपवादों को छोड़कर, 1990 के दशक के मध्य में परमाणु परीक्षण बंद कर दिया गया था।

हम पर क्या हो सकता है असर?
हालिया अध्ययन पहले के परिणामों की पुष्टि करता है, जिसमें दिखाया गया है कि आंतरिक कोर का रोटेशन समय के साथ बदलता है और भूवैज्ञानिकों को उस तंत्र का पता लगाने में मदद करता है, जिससे ये परिवर्तन होते हैं। भूवैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी के भीतर गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय बलों के बीच परस्पर क्रिया है जो कोर के घूमने की गति को तेज और धीमा करती है।

भू वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी के अंतरतम की गति में बदलाव का सीधा संबंध ज्वालामुखी विस्फोट से है। उनके मुताबिक ऐसे ज्वालामुखी जो दशकों से मृत पड़े हैं, फिर से जीवित हो सकते हैं और उनके मुखद्वार से निकले तरल लावा और मैगमा बड़े पैमाने पर तबाही मचा सकते हैं। कई इलाकों में भयानक भूकंप आ सकते हैं।

इसके अलावा और भी बहुत कुछ पृथ्वी की सतह के नीचे चल रहा है। पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र समुद्र में जहाजों का मार्गदर्शन करता है। चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन होने से कम्पास हमेशा सही तरीके से काम नहीं कर सकेगा। हालांकि, भूवैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र भी स्थिर नहीं है और हर कुछ लाख वर्षों में चुंबकीय क्षेत्र दक्षिण से उत्तर और उत्तर से दक्षिण की ओर फ्लिप होता रहता है।

लिंकन ने लिखा है कि साल 1900 की शुरुआत में चुंबकीय क्षेत्र उत्तरी कनाडा में स्थित था। हालांकि यह आर्कटिक महासागर में चला गया है और अब साइबेरिया की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने लिखा है कि अगर चुंबकीय क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं तो हमें कंपास पर निर्भर सभी उपकरणों को बदलना होगा। लिंकन के मुताबिक, हमारे पास केवल एक ग्रह है और इसके अंदर जो होता है, वह हम सभी को प्रभावित कर सकता है।

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