ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News विदेशजलवायु परिवर्तनों से जूझता हिंद महासागर

जलवायु परिवर्तनों से जूझता हिंद महासागर

हिंद महासागर सबसे तेजी से गरम होने वाला महासागर ही नहीं जलवायु परिवर्तन के नाते भी अहम है. इसलिए वैज्ञानिकों ने महासागरीय अध्ययन प्रणाली को अपग्रेड करने का प्रस्ताव दिया है. अध्ययन और प्रभाव के धुरी...

जलवायु परिवर्तनों से जूझता हिंद महासागर
डॉयचे वेले,दिल्लीThu, 08 Jul 2021 04:25 PM
ऐप पर पढ़ें

हिंद महासागर सबसे तेजी से गरम होने वाला महासागर ही नहीं जलवायु परिवर्तन के नाते भी अहम है. इसलिए वैज्ञानिकों ने महासागरीय अध्ययन प्रणाली को अपग्रेड करने का प्रस्ताव दिया है. अध्ययन और प्रभाव के धुरी देशों में भारत भी है.जलवायु और महासागरीय परिवर्तनों में बढ़ोत्तरी को देखते हुए हिंद महासागर में एक परिष्कृत निगरानी सिस्टम का प्रस्ताव दिया गया है. हिंद महासागर के बदलावों पर नजर रखने के लिए वैज्ञानिकों ने बहुराष्ट्रीय महासागरीय निगरानी तंत्र- हिंद महासागर ऑब्जर्विंग सिस्टम (आईएनडीओओएस) को भी अपग्रेड करने का सुझाव दिया है. उनके मुताबिक तेज गति से हो रहे जलवायु परिवर्तनों को देखते हुए एक ठोस, परिपक्व और समर्थ पर्यवेक्षण सिस्टम को विकसित करने की सख्त जरूरत है. अपग्रेड के जरिए खतरे की जद में आ चुके इकोसिस्टम को बचाने और मॉनसून को समझने के नये तरीके विकसित किए जाएंगें. बारिश, सूखे और लू की भविष्यवाणियों में सुधार की कोशिश भी इस अभियान का एक हिस्सा होगा. हिंद महासागरीय जलवायु और इकोसिस्टम की स्थिति और उसके भविष्य के आकलन का ज्ञान एक व्यापक सामाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय डाटा पर निर्भर है जिसका उल्लेखनीय हिस्सा इन्डूस मुहैया कराता है. जलवायु परिवर्तन पर निगरानी का केंद्र इन्डूस की स्थापना 14 साल पहले हुई थी. हिंद महासागर क्षेत्र और उससे इतर भी मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बेहतर समझ विकसित करने के लिए ये सिस्टम बनाया गया था. प्रतिष्ठित पर्यावरणीय वेब पत्रिका मोंगाबे के भारतीय संस्करण में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक 60 से अधिक वैज्ञानिकों ने तेजी से गरम होते इस भूगर्भीय और महासागरीय क्षेत्र में सिस्टम को अपग्रेड करने का सुझाव दिया है. हिंद महासागर की परिधि में आने वाले 22 देशों में भारत भी एक है. दुनिया की एक तिहाई आबादी हिंद महासागर के किनारों पर बसर करती है. और दुनिया का सबसे तेजी से गरम हो रहा महासागर भी यही है. यानी जलवायु परिवर्तन के लिहाज से सबसे ज्यादा निगाहें इसी महासागर की हलचलों पर लगी हैं. विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों में ये बात सामने आ चुकी है कि यदि तापमान में बढ़ोत्तरी की मौजूदा प्रवृत्ति जारी रहती है तो 2050 में ही हिंद महासागर में अल नीनो की परिघटना पैदा हो सकती है. वैज्ञानिक मानते है कि हिंद महासागर में जलवायु के उतार चढ़ाव की प्रबल संभावना है. भारत सहित हिंद महासागरीय तटीय देशों में चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता इस बात का प्रमाण है कि वैश्विक तापमान में वृद्धि से होने वाला जलवायु परिवर्तन अपना प्रभाव दिखाने लगा है. हिंद महासागर से जुड़ी चिंताओं के अलावा ध्रुवीय हिम के पिघलाव में आ रही तेजी चिंता का सबब बनी है. संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन कमेटी की 2013 की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस शताब्दी के अंत तक अंटार्कटिक की बर्फ के पिघलने से समुद्र का जलस्तर पांच सेंटीमीटर बढ़ेगा. हालांकि नये अध्ययनों में माना जा रहा है कि ध्रुवीय हिम के पिघलने से वर्ष 2100 तक समुद्री जलस्तर लगभग 40 सेंटीमीटर बढ़ जाएगा. यानी एक लिहाज से देखा जाए तो अविश्वसनीय और अकल्पनीय सा लगने वाला, वृद्धि का ये अनुमान तथ्य, डाटा और वस्तुस्थिति की सटीक गणनाओं और वैज्ञानिक मापन पर आधारित एक वास्तविक अनुमान है और मनुष्य के अस्तित्व के लिए चिंताजनक भी. अम्फान की बरसी और वैज्ञानिकों का सुझाव एक वृहद और सूक्ष्म निगरानी और मापन तंत्र विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों का कहना है कि हिंद महासागर के देशों को ना सिर्फ संसाधनों और क्षमताओं की जरूरत है बल्कि लक्ष्य निर्धारित करना और बेहतर प्रशासनिक ढांचा विकसित करना भी उतना ही जरूरी है. आंकड़ों की साझेदारी को भी अहम बताया गया है. बेहतर नतीजों के लिए देशों के बीच नये समझौतों और नई भागीदारियों की जरूरत भी है. अभी सिर्फ 15 देश इस नेटवर्क में शामिल हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक इन्डूस के सुझाव भारत के लिए भी खासतौर पर महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर की हलचलों को भी इस व्यापक अध्ययन के जरिए समझने में मदद मिलेगी और उन सागरों में हो रही अवांछित मौसमी परिघटनाओं और परिवर्तनों के लिए सतर्क और तैयार रहा जा सकेगा. इन्डूस से पहले हिंद महासागर का कोई टिकाऊ और व्यवस्थित पर्यवेक्षण नहीं होता था. महासागर इतना विशाल है और इसमें इतनी अधिक ताप निहित है कि इसके बदलावों पर नजर रखना जरूरी है जिससे कि जलवायु में बदलाव को समझा जा सके और तदनुसार भविष्यवाणी की जा सके. खेती, मछलीपालन, परिवहन, जलीय गतिविधियों और निर्माण आदि में भी ये जानकारियां आगे काम आती हैं. इलाकाई मॉनसून को समझने और जलवायु की बदलती स्थितियों और मौसमी आफतों के आकलन में भी इन अध्ययनों की जरूरत पड़ती है. ऐसे अध्ययनों की और इसके लिए इन्डूस के सिस्टम को अपग्रेड करने की जरूरत इसलिए भी बतायी जा रही है कि आने वाले समय में चक्रवात और समुद्री तूफान जैसे हालात से नुकसान को न्यूनतम किया जा सके और समय रहते आपना प्रबंधन और न्यूनीकरण अभियान शुरू किया जा सके. एक साल पहले इन्हीं दिनों हिंद महासागर में आए सुपर साइक्लोन अम्फान की भला किसे याद नहीं होगी जो कि संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक जान माल के नुकसान के लिहाज से बहुत महंगा साबित हुआ था. भारत और बांग्लादेश ने इसका सर्वाधिक नुकसान झेला था. अकेले भारत को 14 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा था. आंकड़े बताते हैं कि बाढ़, सूखे और साइक्लोन से पिछले पांच दशकों मे करीब एक लाख चालीस हजार लोगों की जान जा चुकी हैं.

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें