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जिस कतर से पलायन कर गए थे लोग, वह कैसे बना अमीर मुल्क; सिर्फ 70 साल की है कहानी

कतर में रहने वाले लोगों में ज्यादा आबादी उन लोगों की थी जो मछुआरे थे या फिर मोती चुनते थे। इन लोगों की खानाबदोश जिंदगी थी और ये घूमंतू प्रजाति के थे। हालांकि अब कतर भी किसी भी समृद्ध मुल्क के जैसा है।

जिस कतर से पलायन कर गए थे लोग, वह कैसे बना अमीर मुल्क; सिर्फ 70 साल की है कहानी
Surya Prakashलाइव हिन्दुस्तान,दोहाMon, 21 Nov 2022 11:23 AM

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फुटबॉल विश्व कप आमतौर पर यूरोप और साउथ अमेरिका के देशों में ही होता रहा है, लेकिन इस बार कतर जैसे अरब देश में इसका आयोजन हो रहा है। यह अपने आप में बड़ी घटना इसलिए है क्योंकि कुछ साल पहले तक शायद ही किसी ने सोचा होगा कि कतर कभी वर्ल्ड कप का मेजबान होगा। 12 हजार वर्ग किमी में फैले कतर की एक सदी पहले ऐसी स्थिति थी कि इसे रहने के लिए आदर्श नहीं माना जाता था। यहां रहने वाले लोगों में ज्यादा आबादी उन लोगों की थी जो मछुआरे थे या फिर मोती चुनते थे। इन लोगों की खानाबदोश जिंदगी थी और ये घूमंतू प्रजाति के थे। हालांकि अब कतर भी किसी भी समृद्ध मुल्क के जैसा है। इस्लामिक देशों में इसकी अच्छी खासी साख है। 

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कतर में 90 या उससे अधिक आयु के लोगों को आज भी याद है कि कैसे 1930 से 40 के दशक में हालात खराब थे। यही वह टाइम था, जब जापान ने मोतियों का उत्पादन शुरू कर दिया। इससे कतर के हालात बिगड़ गए थे। इसके चलते कतर की बड़ी आबादी पलायन करके विदेश चली गई थी और यहां रहने वाले लोगों की संख्या महज 24 हजार पर ही सिमट कर रह गई। हालांकि कतर के दिन 1939 में तब बहुरे, जब यहां तेल के खजाने का पता चला। 20वीं शताब्दी के मध्य में क़तर के ख़जाने में तेज़ी से बढ़त होने लगी और वह दुनिया के सबसे समृद्ध देशों में शुमार हो गया।  

7 दशकों में कैसे कतर ने भरी उड़ान

ब्लैक गोल्ड कहे जाने वाले पेट्रोलियम की जब कतर में खोज हुई, तब वहां अंग्रेजी राज था। कई सालों की खोज के बाद पहला भंडार 1939 में देश के पश्चिमी तट पर दोहा से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर दुखान में पाया गया। हालांकि तब इसका फायदा नहीं मिल सका क्योंकि दुनिया दूसरे विश्व युद्ध में परेशान थी। 1949 में कतर ने तेल का एक्सपोर्ट शुरू किया और फिर इस खानाबदोश लोगों के देश में समृद्धि आने लगी। एक समय कतर से लोग निकले थे और तीन दशक के अंदर हालात ऐसे हो गए कि दूसरे देशों से लोग यहां आने लगे।

कैसे तेल के बाद गैसे ने भी दी कतर को रफ्तार

प्रवासियों और निवेशकों ने कतर में कतार लगा ली। इससे आबादी बढ़ी और पैसा भी खूब आया। 1950 में क़तर की आबादी 25,000 से भी कम थी, जो 1970 तक 100,000 से अधिक हो गई। यही नहीं जीडीपी भी तेजी से बढ़ते हुए 300 मिलियन डॉलर तक जा पहुंची। इसके एक साल बाद ही ब्रिटिशर्स ने देश छोड़ा और कतर एक आजाद इस्लामिक मुल्क बना। इसी दौर में यहां प्राकृतिरक गैस की भी खोज हुई और फिर तो कतर ने समृद्धि के नए आयाम छुए। यहां दुनिया के प्राकृतिक गैस का 10 फीसदी हिस्सा पाया जाता है। 

कतर के विश्व कप से क्यों दूरी बरत रहे यूरोप के देश

कतर भले ही कई दशकों से समृद्ध देश है, लेकिन वैश्विक स्तर पर उसकी कोई बड़ी राजनीतिक धमक नहीं थी। ऐसे में इस फुटबॉल वर्ल्ड कप से उसे उम्मीद है कि उसकी पहचान दुनिया भर में होगी। क़तर ने फुटबॉल विश्व कप के आयोजन के लिए 2 लाख मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक खर्च किया है, जो इतिहास में अब तक का सबसे महंगा फीफा विश्व कप है। इसमें आठ स्टेडियम, एक नया हवाई अड्डा और एक नई मेट्रो लाइन जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर बनाए गए हैं। हालांकि इसके बाद भी कतर से यूरोपीय देश दूरी बनाते दिख रहे हैं। वर्ल्ड कप के उद्घाटन के मौके पर सऊदी अरब और मिस्र जैसे देशों के नेता तो दिखे, लेकिन यूके, ब्राजील समेत तमाम अन्य देशों ने शिरकत नहीं की। इसकी वजह कतर की एलजीबीटी समुदाय को लेकर कट्टर सोच और उदारता की कमी मानी जा रही है।

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