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कैसे दुनिया के लिए बोझ बन गई चीन की कोरोना वैक्सीन, बेअसर साबित हो रहे ड्रैगन के टीके

जब पूरी दुनिया में कोविड-19 का प्रकोप शुरू हुआ था तब चीन ने अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन मॉडर्ना और फाइजर को लेकर खूब अफवाह फैलाई थी। चीन ने मॉडर्ना और फाइजर के इस्तेमाल को हतोत्साहित किया था।

कैसे दुनिया के लिए बोझ बन गई चीन की कोरोना वैक्सीन, बेअसर साबित हो रहे ड्रैगन के टीके
Amit Kumarएएनआई,बीजिंगWed, 07 Dec 2022 08:03 PM
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चीन की बनाई कोरोना वैक्सीन चीन ही नहीं बल्कि दुनिया के कई अन्य देशों के लिए भी बोझ बन गई है। चीन के बनाए कोरोना वैक्सीन के टीके बेअसर साबित हो रहे हैं। जब पूरी दुनिया में कोविड-19 का प्रकोप शुरू हुआ था तब चीन ने अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन मॉडर्ना और फाइजर को लेकर खूब अफवाह फैलाई थी। चीन ने मॉडर्ना और फाइजर के इस्तेमाल को हतोत्साहित किया था। इसके बजाय ड्रैगन ने अपनी बनाई वैक्सीन सिनोवैक (Sinovac) को बढ़ावा दिया था। लेकिन अब उसी की बनाई सिनोवैक वैक्सीन बेअसर साबित हो रही है। कोरोना वायरस के खिलाफ चीनी वैक्सीन के बेअसर होने से दुनिया भर के लोगों के लिए एक समस्या पैदा हुई है। 

समाचार आउटलेट सिंगापुर पोस्ट ने बताया, "हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि सिनोवैक जैसे चीनी टीके मौतों के खिलाफ केवल 61% और अस्पताल में भर्ती होने के खिलाफ केवल 55% तक प्रभावी रहे हैं। जबकि मॉडर्न और फाइजर दोनों टीके 90% सुरक्षा प्रदान करते हैं।" यानी कोरोना से होने वाली मौतों के खिलाफ चीन की सिनोवैक वैक्सीन केवल 61% सुरक्षा प्रदान करती है। जब वैश्विक निर्माता टीकों के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, तब चीन एमआरएनए टीकों की प्रभावशीलता के खिलाफ बदनाम करने और प्रचार चलाने में व्यस्त था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां पारंपरिक टीके हमारे शरीर में एक कमजोर या निष्क्रिय रोगाणु को जन्म देते करते हैं, वहीं, एमआरएनए टीके, हमारे शरीर की कोशिकाओं को सिखाते हैं कि कैसे प्रोटीन बनाना है जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करता है। लैंसेट के एक अध्ययन ने संकेत दिया कि चीनी वैक्सीन निर्माता कमजोर टी-सेल टीकों का उत्पादन कर रहे थे और घातक वायरस से सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम नहीं थे।

इस तरह की रिसर्च ने आम जनता के अंदर एक चिंता को जन्म दिया। इसके परिणामस्वरूप लोगों द्वारा चीन के टीकों को बड़े पैमाने पर खारिज किया जाने लगा। इसलिए चीनी अधिकारी अपनी बड़ी आबादी का टीकाकरण करने में सक्षम नहीं हो पाए। फिर चीन को अंततः अपनी विवादास्पद शून्य कोविड नीति लानी पड़ी। द सिंगापुर पोस्ट के अनुसार, तुर्की जैसे देश ने सिंकोवैक बायोटेक द्वारा बनाए गए चीन के टीके सिनोवैक का इस्तेमाल किया था। हालांकि बाद में जब तुर्की के लोगों को पता लगा कि चीन ने अपनी वैक्सीन को बेचने के वास्ते रिसर्च में धोखाधड़ी की और डेटा से छेड़छाड़ की तो उन्होंने भी इसके इस्तेमाल से परहेज किया।  

इंडोनेशिया ने दिसंबर 2020 में बयान दिया था कि उन्हें चीनी टीकों में 97 प्रतिशत प्रभावकारिता मिली है। यानी कोरोना के खिलाफ चीन के टीके 97 प्रतिशत तक कारगर थे। हालांकि इंडोनेशिया ने 2021 में अपना बयान बदल दिया और कहा कि इसकी प्रभावकारिता केवल 65 प्रतिशत थी। इसी तरह, ब्राजील ने पहले कहा था कि चीनी टीके 78 प्रतिशत तक कारगर थे, लेकिन बाद में इसे बदलकर 50.4 प्रतिशत कर दिया गया।

इंडोनेशिया के अलावा थाईलैंड ने भी चीनी टीकों को खारिज कर दिया। उन्होंने अपनी आम जनता के लिए बाद में एस्ट्राजेनेका के टीके का इस्तेमाल किया। हालांकि इसके हेल्थकेयर वर्कर्स के लिए मॉडर्ना टीकों का इंतजाम किया गया था, क्योंकि चीनी टीकों की डबल डोज के बाद भी लोगों की मौतें हो रही थीं। मलेशिया ने भी बाद में घोषणा की कि वह जल्द ही चीनी टीकों को फाइजर के टीकों से बदल देगा।

रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने डेटा से छेड़छाड़ की ताकि दूसरे देश उसके टीकों को अपनाएं। हालांकि मौतों को रोक पाने में चीनी टीकों की नाकामी ने उसकी इस चाल को उजागर कर दिया। लेकिन जब तक चीन की चाल सामने आई तब तक यह टीका अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहुंच गया जो अब दुनिया के लिए समस्या बन गया है। जिसके परिणामस्वरूप विश्व स्तर पर चीन की पहले से खराब हुई छवि और भी खराब हुई है।

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