यूके कोर्ट ने हैदराबाद के खजाने पर पाक के दावे को ठुकराया, भारत को मिलेंगे 306 करोड़
हैदराबाद के निजाम की करोड़ों की संपत्ति को लेकर भारत-पाक के बीच दशकों से चले आ रहे लंबे विवाद का बुधवार को अंत हो गया। ब्रिटेन के उच्च न्यायालय ने पाकिस्तान को झटका देते हुए फैसला सुनाया कि इस रकम पर...

हैदराबाद के निजाम की करोड़ों की संपत्ति को लेकर भारत-पाक के बीच दशकों से चले आ रहे लंबे विवाद का बुधवार को अंत हो गया। ब्रिटेन के उच्च न्यायालय ने पाकिस्तान को झटका देते हुए फैसला सुनाया कि इस रकम पर भारत और निजाम के उत्तराधिकारियों का हक है।
निजाम के वंशज प्रिंस मुकर्रम जाह और उनके छोटे भाई मुफ्फखम जाह इस लड़ाई में भारत सरकार के साथ थे। अदालत ने पाकिस्तान के दावों को खारिज कर इसे प्रक्रिया का दुरुपयोग बताया। लंदन के रॉयल कोर्ट ऑफ जस्टिस के जज मार्कस स्मिथ ने अपने फैसले में कहा कि हैदराबाद के सातवें निजाम उस्मान अली खान इस धनराशि के मालिक थे। निजाम के बाद उनके वंशज और भारत इस रकम के दावेदार हैं।
हैदराबाद के निजाम की ओर से मुकदमे की पैरवी कर रहे पॉल हेविट ने कहा कि हमें खुशी है कि अदालत ने अपने फैसले में निजाम की संपत्ति के लिए उनके वंशजों के उत्तराधिकार को स्वीकार किया है। बता दें कि हैदराबाद के तत्कालीन निजाम ने 1948 में ब्रिटेन में पाकिस्तान के उच्चायुक्त को ये रकम भेजी थी।
क्या है मामला
देश के विभाजन के दौरान हैदराबाद के सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान ने लंदन स्थित नेटवेस्ट बैंक में करीब एक मिलियन पाउंड (करीब 8.87 करोड़ रुपये) जमा कराए थे। अब यह रकम बढ़कर करीब 35 मिलियन पाउंड (करीब 306 करोड़ रुपये) हो चुकी है। इस रकम को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच करीब 70 साल से मुकदमा चल रहा था।
दावा: बिना इजाजत रकम पाक उच्चायुक्त बैंक खाते में भेजी
इस मामले में निजाम के वंशज कहना है कि वर्ष 1948 में हैदराबाद के आखिरी निजाम मीर उस्मानअली खान के वित्त मंत्रालय का काम संभालने वाले मीर वनाज जंग ने निजाम की इजाजत के बिना लंदन में पाकिस्तान के उच्चायुक्त बैंक खाते में 10 लाख पाउंड जमा करवाए थे। इसी वजह से पाकिस्तान इस रकम पर अपना अधिकार जमा रहा था।
यह थी स्थिति :-
विभाजन के वक्त हैदराबाद के निजाम पाकिस्तान के साथ शामिल होना चाहते थे। हैदराबाद एक हिंदू बहुसंख्यक राज्य था, जिसका नेतृत्व निजाम के हाथ में था। तत्कालीन गृहराज्य मंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल के सख्त रुख को देखते हुए निजाम कोई दूसरा रास्ता भी तलाश रहे थे। इसी पूरे तनाव के बीच निजाम ने अपना पैसा पाकिस्तान के उच्चायुक्त के खाते में जमा करवा दिया था। लंदन की अदालत से इस फैसले के बाद पाकिस्तान को बहुत बड़ा झटका लगा है।
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