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पाकिस्तान की मश्हूर शायर फहमीदा रियाज का निधन, मेरठ से रहा है गहरा नाता

भारत में जन्मीं और पिता के तबादले के बाद पाकिस्तान जा बसीं मशहूर शायर फहमीदा रियाज का लंबी बीमारी के बाद बुधवार को निधन हो गया। वह 72 वर्ष की थीं। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रही थीं। फहमीदा को...

पाकिस्तान की मश्हूर शायर फहमीदा रियाज का निधन, मेरठ से रहा है गहरा नाता
एजेंसी,नई दिल्ली Thu, 22 Nov 2018 05:01 PM
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भारत में जन्मीं और पिता के तबादले के बाद पाकिस्तान जा बसीं मशहूर शायर फहमीदा रियाज का लंबी बीमारी के बाद बुधवार को निधन हो गया। वह 72 वर्ष की थीं। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रही थीं। फहमीदा को साहित्य जगत में अपनी नारीवादी और क्रांतिकारी विचारधारा के लिए जाना जाता है। पाकिस्तान में वह मानवाधिकारों के लिए भी सक्रिय रहीं। उनके निधन से उर्दू साहित्य जगत को गहरी क्षति पहुंची है।

फहमीदा रियाज़ की पहली साहित्यिक किताब 1967 में प्रकाशित हुई थी जिसका नाम 'पत्थर की जुबान' था। उनके अन्य कविता संग्रह में धूप, पूरा चांद, आदमी की जिंदगी इत्यादि शामिल हैं। उन्होंने कई उपन्यास भी लिखे जिनमें जिंदा बहर, गोदवरी और करांची प्रमुख हैं। उनकी कविताओं में क्रांति और बगावत की झलक मिलती है। जब उनका दूसरा कविता संग्रह बदन दरीदा 1973 में प्रकाशित हुआ, तो उन पर कविता में वासना और अश्लीलता के इस्तेमाल के आरोप लगे। उस वक्त तक ऐसे विषय महिला लेखिकाओं के लिए वर्जित माने जाते थे। उनके 15 से ज्यादा फिक्शन और कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। 

फहमीदा रियाज का जन्म मेरठ में जुलाई 1946 में एक साहित्यिक परिवार में हुआ था। उन्होंने जीवन भर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। चार साल की उम्र में ही पिता की मृत्यु के बाद उनका पालन-पोषण उनकी मां ने किया। बचपन से ही साहित्य में रुचि रखने वाली फ़हमीदा ने उर्दू, सिन्धी और फारसी भाषाएं सीख ली थीं। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने रेडियो पाकिस्तान में न्यूजकास्टर के रूप में काम किया। शादी के बाद वह कुछ वर्ष ब्रिटेन में रहीं और तलाक के बाद पाकिस्तान लौट आईं उनकी दूसरी शादी जफर अली उजान से हुई। 

जनरल जिया-उल-हक के शासन काल में वो 6 साल भारत में रही। इस दौरान वह दिल्ली के जामिया विश्वविद्यालय में रहीं और उन्होंने हिन्दी पढ़ना सीखा। 

1988 में पहली पीपीपी सरकार में फहमीदा को नेशनल बुक काउंसलि ऑफ पाकिस्तान की मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया। बेनजीर भुट्टो के दूसरे कार्यकाल के दौरान वो संस्कृति मंत्रालय से भी जुड़ी रही। 2009 में उन्हें उर्दू डिक्शनरी बोर्ड का मुख्य संपादक नियुक्त किया गया था। उन्होंने अनुवाद के जरिए भी उर्दू साहित्य को समृद्ध किया है। उन्होंने अल्बेनियन लेखक इस्माइल कादरी और सूफ़ी संत रूमी की कविताओं को उर्दू में अनुवादित किया था।

फहमीदा ने अपना पब्लिकेशन आवाज के नाम से शुरू किया जिसके उदारवादी होने के कारण उसे बंद कर दिया गया। अपने राजनीतिक विचारों के कारण फहमीदा पर 10 से ज्यादा केस चलाए गए। तब अमृता प्रीतम ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से बात कर उनके लिए भारत में रहने की व्यवस्था करवाई।  

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