ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News विदेशबड़ी टेक कंपनियों पर नकेल कसने की कवायद

बड़ी टेक कंपनियों पर नकेल कसने की कवायद

तकनीक में एकाएक आई तेजी ने महामारी के दौरान जीवन को ज्यादा आसान और ज्यादा सुरक्षित बनाया है. लेकिन नियामक संस्थाओं की ओर से ये पूछा जाने लगा है कि ऐसा आखिर किस कीमत पर?नया साल आ चुका है और महामारी के...

बड़ी टेक कंपनियों पर नकेल कसने की कवायद
डॉयचे वेले,दिल्लीFri, 31 Dec 2021 06:30 PM
ऐप पर पढ़ें

तकनीक में एकाएक आई तेजी ने महामारी के दौरान जीवन को ज्यादा आसान और ज्यादा सुरक्षित बनाया है. लेकिन नियामक संस्थाओं की ओर से ये पूछा जाने लगा है कि ऐसा आखिर किस कीमत पर?नया साल आ चुका है और महामारी के चलते नये साल की पूर्व संध्या के समारोहों की तैयारियां वीडियो कॉल और डिजिटल हेल्थ पास यानी वैक्सीन सर्टिफिकेट की मदद से की गईं. 2021 में तो यही कायदा बन गया था. यूरोप में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका को आकार देने वाले अभियान, यूरोपीय एआई फंड के निदेशक और टेक नीति विशेषज्ञ फ्रेडेरिके कलथ्युनर ने डीडब्ल्यू को बताया, "इनमें से कई प्रौद्योगिकियां शुरुआत में तब अमल में लाई गई थीं जब हम सोचते थे कि वो एक लघु आपातकाल था. मैं मानता हूं कि 2022 वो साल होगा जिसमें हमें ये अहसास हो जाएगा कि ये सब अभी जाने वाला नहीं है.” व्यावहारिक तौर पर इसका अर्थ यह है कि जब खुदरा, सेवा और उद्योग सेक्टर- लॉकडाउन और उलझी हुई सप्लाई चेनों से दबे हुए थे तो उस दौरान बड़ी टेक कंपनियां लाभ कमा रही थीं और फलफूल रही थीं. टेक हार्डवेयर से लेकर डिजिटल एडवर्टाइजिंग और स्वचालित कारों तक- महामारी के दौरान अल्फाबेट, एप्पल, अमेजन, मेटा और माइक्रोसॉफ्ट जैसे सिलिकॉन वैली के दिग्गज एक दूसरे के इलाकों में दाखिल होते रहे. ये कहना है अलेक्जेंडर फैन्टा का- वो डिजिटल स्फीयर को कवर करने वाली जर्मन समाचार संस्था, नेत्सपोलिटिक में ईयू टेक नीति के पत्रकार हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "इन कंपनियों की ताकत ये है कि वे इतनी ज्यादा बहुआयामी हैं. वे विभिन्न बाजारों को परे खिसका देती हैं और एक बाजार से हासिल ताकत के सहारे दूसरे बाजार पर अपना सिक्का जमाती हैं.” आलोचना के घेरे में फेसबुक सीधी और क्षैतिज वृद्धि की वजह से ये कंपनियां बाजार नियामकों के लिए एक ज्यादा बड़ा मुद्दा बन गई हैं. आज इस बात पर एक नजर रखना और कठिन हो गया है कि एक कंपनी क्या क्या करती है. संपत्ति में निरंतर वृद्धि और सीमित संख्या के इन खिलाड़ियों का प्रभाव, लोगों और ऑनलाइन बिजनेसों के लिए कई समस्याएं खड़ी करता है. इस वृद्धि ने इन कंपनियों को एक दूसरे के साथ ज्यादा प्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धा में भी ला खड़ा किया है.

ये बात अप्रैल में ही स्पष्ट हो गई थी जब फेसबुक कहलाने वाली कंपनी, एपल के उस सॉफ्टवेयर अपडेट पर भड़क उठी जिसमें आईफोन यूजर्स को एड ट्रैकिंग का ऑप्श्न चुनने की जरूरत थी जबकि ये सोशल मीडिया महारथी फेसबुक के बिजनेस मॉडल का एक स्तंभ है. हाल में मेटा नाम से आई फेसबुक कंपनी अपनी तीसरी तिमाही में राजस्व लक्ष्य में थोड़ा पीछे रह गई तो इसके लिए कंपनी के सीईओ मार्क जकरबर्ग ने एप्पल को जिम्मेदार ठहराया. वैसे मेटा पूरे साल ध्यान खींचने की जुगत में ही लगी रही. ये इस बात का सबसे पुख्ता उदाहरण है कि अपने समय की पसंदीदा मानी जाने वाली टेक कंपनियों के खिलाफ हवा का रुख कैसे बदला. कंपनी के बिजनेस क्रियाकलापों के प्रति जनता की बढ़ते असंतोष ने आखिरी चिंगारी को सुलगा दिया जब एक व्हिसलब्लोअर ने कंपनी के विवादास्पद बिजनेस तौरतरीकों का पर्दाफाश कर दिया. लेकिन रीब्रांडिंग से यानी नये नाम के साथ, अपना ब्रांड बचाने की रणनीति साल के आखिर में जनता का ध्यान भटकाने में सफल रही है. नवंबर में जकरबर्ग ने मेटावर्स का खाका पेश किया, जिसे कंपनी एक आकर्षक और लुभावना ऑनलाइन अनुभव बताते हुए इंटरनेट के अगले उद्भव के तौर पर सामने ला रही है. लेकिन हर कोई इससे प्रभावित नहीं है. कलथ्युनर कहते हैं कि "कोई मेटावर्स नहीं है. ये मौजूदा समस्याओं के बारे में बात करने का वाकई एक अच्छा तरीका भर है. हम घटनाओं में इसे पहले से देख ही रहे हैं, लोग इस शब्दावली का इस्तेमाल कर ही रहे हैं भले ही इसका मतलब कोई नहीं जानता. अगर मैं फेसबुक होता, मैं भी नाम बदल देता. वो ब्रांड वाकई अच्छा नहीं था.

” मुश्किलों का बखूबी सामना करते नियामक फिर भी, ये कदम इस सवाल को उभारता है कि नियामक संस्थाओं या सरकारों के पास बड़ी टेक कंपनियों की सोच का मुकाबला करने लायक साधन हैं भी या नहीं. कई उदाहरणों से दिखता है कि उन्होंने कभी कड़ा प्रयत्न नहीं किया. इस साल यूरोपीय संघ की एंटीट्रस्ट वॉचडॉग मार्ग्रेट वेस्टागर ने इन खिलाड़ियों को नाथने के लिए अपना अभियान छेड़ा है. इसके तहत 2020 के आखिर में डिजिटल मार्केट्स एक्ट (डीएमए) और डिजिटल सर्विसेज एक्ट (डीएसए) जैसे प्रमुख कानून के मसौद पेश किए गए हैं. इस तरह उन्होंने बड़ी तेजी से कानूनी तैयारियां पूरी की हैं. डीएमए कानून, गूगल जैसी कथित गेटकीपर कंपनियों को मजबूर करने के लिए है कि वे उन प्रतिस्पर्धियों को भी और बराबरी से संचालन का मौका दें जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर निर्भर हैं. डीएसए के जरिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर मौजूद गैरकानूनी सामग्री पर और अधिक नियंत्रण लागू किया जा सकेगा. आधिकारिक वार्ताएं जनवरी 2022 में शुरू होंगी. वेस्टागेर को उम्मीद है कि 2024 में यूरोपीय संसद का जनादेश पूरा होना से पहले ये ड्राफ्ट कानूनी रूप अख्तियार कर लेंगे. नवंबर में एफटी-ईटीएनओ टेक ऐंड पॉलिटिक्स फोरम में वेस्टागेर ने कहा, "हर किसी के लिए ये समझना जरूरी है कि इस समय 80 प्रतिशत हासिल हो जाना कभी 100 प्रतिशत न हासिल हो पाने से ज्यादा अच्छा है. कहने का मतलब ये है कि ‘सर्वश्रेष्ठ' को ‘बहुत, ‘बहुत अच्छा' का दुश्मन नहीं होना चाहिए.” रफ्तार उत्साहजनक है. लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि एक द्रुत टाइमलाइन एक वास्तविक सर्वसम्मति की कीमत पर ही तैयार हुई हो सकती है. जिसका मतलब है कि आगे चलकर और विस्तृत वार्ताएं होंगी.

वैश्विक स्तर पर कड़ी कार्रवाई बड़ी टेक कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई में यूरोप अकेला नहीं है. चीन में भी प्रमुख कंपनियों को कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ा था. अमेरिका के संघीय व्यापार आयोग (एफटीसी) की नयी प्रमुख लीना खान ने इस दलील के साथ ध्यान खींचा था कि अमेजन जैसी बड़ी कंपनियों के मामले में एंटीट्रस्ट कानून को और आगे जाने की जरूरत है. लीना के एफटीसी में पद ग्रहण करने के एक महीने से भी कम समय में जेफ बेजोस, अमेजन के सीईओ पद से रिटायर हो गए थे. ट्विटर के संस्थापक जैक डोरसी ने भी पद से इस्तीफा दे दिया था. प्रमुख अमेरिकी टेक कंपनियों में जुकरबर्ग ही अकेले संस्थापक हैं जो प्रबंधन भूमिका में सक्रिय हैं. फैंटा का कहना है कि अग्रिम पंक्ति से खुद को हटाना इन दिग्जगों की घबराहट का एक संकेत है. उन्हें उम्मीद है कि अमेरिका में 2022 में एक प्रमुख कानून सामने आ सकता है क्योंकि वहां बड़ी टेक कंपनियों पर नकेल कसना दोदलीय मुद्दा भी बन चुका है. नया साल और क्या गुल खिलाएगा, कहा तो नहीं जा सकता है लेकिन न तो नियामक संस्थाएं और ना ही बड़ी टेक कंपनियां पीछे हटने का कोई संकेत दे रही है. सार्वजनिक हित में लड़ाई को लेकर टेक स्फीयर में आवाजें और ऊंची हो चली हैं, लेकिन कंपनियों की लॉबी अब भी मजबूत है. बड़ी टेक कंपनियों के बारे में फैंटा कहते हैं, "उन्हें भी चुनौती का सामना करना पड़ेगा. मैं नहीं समझता कि बाजार में अपनी विशेषाधिकारपूर्ण स्थिति को वे छोड़ देंगे.”.

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें