ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News विदेशकोविड के दौरान भ्रष्टाचार बढ़ा, भारत की रैंकिंग खराब

कोविड के दौरान भ्रष्टाचार बढ़ा, भारत की रैंकिंग खराब

भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाले संगठन 'ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल' ने कहा, दुनिया भर में कोविड को भ्रष्टाचार ना रोकने के लिए बहाने की तरह इस्तेमाल किया गया. कनाडा जैसे देशों में घूसखोरी बढ़ी तो...

कोविड के दौरान भ्रष्टाचार बढ़ा, भारत की रैंकिंग खराब
डॉयचे वेले,दिल्लीTue, 25 Jan 2022 08:00 PM
ऐप पर पढ़ें

भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाले संगठन "ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल" ने कहा, दुनिया भर में कोविड को भ्रष्टाचार ना रोकने के लिए बहाने की तरह इस्तेमाल किया गया. कनाडा जैसे देशों में घूसखोरी बढ़ी तो अमेरिका में फ्रॉड के मामले.बीते एक दशक में, दुनिया भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम जस की तस बनी हुई है. ये कहना है 100 से ज्यादा देशों में भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाले संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का. साल 2021 के करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में कहा गया है कि कोविड-19 के बहाने भी बहुत से देशों में बुनियादी व्यवस्थाएं और अधिकार कमजोर किए गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, व्यवस्था में भ्रष्टाचार के मामले सिर्फ पिछड़े देशों में ही नहीं, बल्कि स्थापित लोकतंत्रों में भी सामने आ रहे हैं. इस सूची में पश्चिम यूरोपीय देशों ने कुल मिलाकर सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है. डेनमार्क, फिनलैंड और न्यूजीलैंड पहले स्थान पर हैं. भारत को 180 देशों में से 85वां स्थान मिला है. रिपोर्ट में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने कहा है कि दुनिया भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई तेज नहीं हुई, बल्कि इसके उलट मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्य खतरे में हैं.

पश्चिमी यूरोप और यूरोपीय संघ में कोविड-19 के दौरान पारदर्शिता बढ़ाने वाले कदम नजरअंदाज कर दिए गए. एशियाई देशों में कोविड-19 का इस्तेमाल आलोचना को दबाने के लिए किया गया. इसी दौर में डिजिटल निगरानी भी बढ़ाई गई. कुछ देशों में अधिनायकवादी तौर-तरीके इस्तेमाल किए गए. अंकों के आधार पर रैंकिंग रिपोर्ट में सबसे भ्रष्ट देश के लिए शून्य अंक और सबसे पारदर्शी देश के लिए अधिकतम 100 अंक रखे थे. पहले स्थान पर रहने वाले डेनमार्क, न्यूजीलैंड और फिनलैंड को 88 अंक मिले हैं. पिछले साल भी डेनमार्क और न्यूजीलैंड पहले स्थान पर थे. इनके अलावा नॉर्वे, सिंगापुर, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड्स, लक्जेमबर्ग और जर्मनी पहले दस स्थानों पर मौजूद हैं. ब्रिटेन को 11वां और अमेरिका को 27वां स्थान मिला है. यह पहला मौका है जब अमेरिका टॉप-25 की लिस्ट से बाहर हुआ है.

चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और चुनाव अभियान की फंडिंग में पारदर्शिता की कमी के कारण ऐसा हुआ है. इसके अलावा कनाडा भी इस रैंकिंग में फिसला है. पिछली रिपोर्ट में 11वें स्थान पर रहा कनाडा, इस बार 13वें स्थान पर फिसल गया है. लगातार छठे साल कनाडा को कम अंक दिए गए हैं. 2015 में कनाडा को 83 अंक मिले थे, वहीं 2021 में 74 अंक. संगठन के मुताबिक, कनाडा में घूस और कारोबार में भ्रष्टाचार के मामले बढ़ रहे हैं. इसके अलावा पैंडोरा पेपर्स में कनाडा के अवैध धन के अड्डे की तरह उभरना भी एक वजह है. इस इंडेक्स में दक्षिण सूडान को 11 अंकों के साथ आखिरी स्थान (180वां) मिला है. दक्षिण सूडान गृह युद्ध झेल रहा है. इसके अलावा सोमालिया और सीरिया आखिरी तीन देशों में शामिल हैं.

वेनेजुएला, यमन, उत्तरी कोरिया और अफगानिस्तान इस सूची के आखिरी देशों में से हैं. सार्क देशों का क्या हाल है? दक्षिण एशिया के देशों में भारत और मालदीव का स्तर सबसे बेहतर है. 25वें स्थान पर मौजूद भूटान के अलावा, कोई भी दक्षिण एशियाई देश टॉप-50 की सूची में शामिल नहीं हो पाया है. सार्क गुट में शामिल 7 देशों की रैंकिंग है- भारत- 85 मालदीव- 85 श्रीलंका- 102 नेपाल- 117 पाकिस्तान- 140 बांग्लादेश- 147 अफगानिस्तान- 174 ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने कहा कि बीते 10 सालों में सर्वे में शामिल रहे 86 प्रतिशत देशों में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के हालात जस के तस हैं. उल्टा, अमेरिका, कनाडा, हंगरी और पोलैंड जैसे कई देशों में तो हालात खराब हुए हैं. अर्मेनिया, एस्टोनिया जैसे सिर्फ 25 देश ऐसे हैं जहां भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई मजबूत हुई है. ये लिस्ट साल 1995 से बनाई जा रही है. इसमें 13 अलग-अलग मानक हैं, जिसके आधार पर भ्रष्टाचार का अनुमान लगाया जाता है. इसमें वर्ल्ड बैंक, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम जैसे संस्थानों से भी आंकड़े लिए जाते हैं..

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें