COP26 what would the world be like at 3 degree C of warming and how would it be different from 1-5 degree c - International news in Hindi COP26: अगर वैश्विक तापमान में इजाफा तीन डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाए तो क्या होगा, ऐसे समझें, International Hindi News - Hindustan
Hindi Newsविदेश न्यूज़COP26 what would the world be like at 3 degree C of warming and how would it be different from 1-5 degree c - International news in Hindi

COP26: अगर वैश्विक तापमान में इजाफा तीन डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाए तो क्या होगा, ऐसे समझें

पेरिस जलवायु समझौते में दुनिया भर के देशों ने औद्योगिक क्रांति से पहले के वैश्विक तापमान के स्तर को 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न बढ़ने देने की प्रतिबद्धता जताई है। अगर सभी देश कार्बन उत्सर्जन घटाने...

Shankar Pandit भाषा, नई दिल्लीWed, 3 Nov 2021 01:42 PM
share Share
Follow Us on
COP26: अगर वैश्विक तापमान में इजाफा तीन डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाए तो क्या होगा, ऐसे समझें

पेरिस जलवायु समझौते में दुनिया भर के देशों ने औद्योगिक क्रांति से पहले के वैश्विक तापमान के स्तर को 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न बढ़ने देने की प्रतिबद्धता जताई है। अगर सभी देश कार्बन उत्सर्जन घटाने की अपनी मौजूदा प्रतिबद्धताएं पूरी कर भी लेते हैं तब भी हम देखेंगे कि वैश्विक तापमान में इजाफा करीब 2.7 डिग्री सेल्सियस का होगा। कोई आश्चर्य नहीं कि 'नेचर' पत्रिका के एक नए सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी समिति (आईपीसीसी) के लगभग दो तिहाई लेखकों का अनुमान है कि वृद्धि तीन डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक की होगी। तो 1.5 डिग्री सेल्सियस की तुलना में तीन डिग्री सेल्सियस वृद्धि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव कितने अलग होंगे?

शुरुआत में यह समझना जरूरी है कि भले ही तापमान के अनुरूप प्रभाव बढ़े - तीन डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर प्रभाव 1.5 डिग्री सेल्सियस की तुलना में दुगुने से अधिक होगा। ऐसा इसलिए कि वैश्विक तापमान में वृद्धि पहले से ही पूर्व-औद्योगिक स्तरों से लगभग 1 डिग्री सेल्सियस अधिक है, इसलिए तीन डिग्री सेल्सियस पर प्रभाव 1.5 डिग्री सेल्सियस के मुकाबले चार गुना अधिक होगा (0.5 डिग्री सेल्सियस की तुलना में अब से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि) । 

व्यावहारिक तौर पर तापमान के साथ प्रभाव आवश्यक रूप से रैखिक रूप से नहीं बढ़ते हैं। कुछ मामलों में तापमान बढ़ने पर वृद्धि तेज हो जाती है, इसलिए तीन डिग्री सेल्सियस पर प्रभाव 1.5 डिग्री सेल्सियस पर प्रभाव के चार गुना से अधिक हो सकता है। सबसे चरम पर, जलवायु प्रणाली कुछ टिपिंग पॉइंट (वह बिंदु जिस पर छोटे परिवर्तनों या घटनाओं की एक श्रृंखला बड़े, अधिक महत्वपूर्ण परिवर्तन का कारण बनने के लिए काफी महत्वपूर्ण हो जाती है) पार कर सकती है जिससे नीति या रुख में महत्वपूर्ण बदलाव हो सकता है।

दो साल पहले सहयोगियों और मैंने वैश्विक तापमान वृद्धि के विभिन्न स्तरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखते हुए एक अनुसंधान प्रकाशित किया था। हमने पाया कि, उदाहरण के लिए, एक बड़ी अत्यधिक गर्म हवा चलने (हीटवेव) की वैश्विक औसत वार्षिक संभावना 1981-2010 की अवधि में लगभग 5 प्रतिशत से बढ़कर 1.5 डिग्री सेल्सियस पर लगभग 30 प्रतिशत लेकिन 3 डिग्री सेल्सियस पर 80 प्रतिशत हो जाती है।

वर्तमान में वर्षों में अपेक्षित नदी बाढ़ की औसत संभावना दो प्रतिशत से 1.5 डिग्री सेल्सियस पर 2.4 प्रतिशत तक बढ़ जाती है, और 3 डिग्री सेल्सियस पर दुगुनी होकर 4 प्रतिशत हो जाती है। 1.5 डिग्री सेल्सियस पर, सूखा पड़ने के लिए समय का यह अनुपात लगभग दुगुना हो जाता है, और 3 डिग्री सेल्सियस पर यह तीन गुना से अधिक हो जाता है।

निश्चित तौर पर इन आंकड़ों में कुछ अनिश्चितताएं हैं जहां संभावित परिणामों का पैमाना तापमान वृद्धि के साथ बढ़ सकता है। दुनिया भर में परिवर्तनशीलता भी है, और यह परिवर्तनशीलता तापमान वृद्धि के साथ बढ़ती है, प्रभाव में भौगोलिक असमानताएं भी बढ़ती हैं। नदी में बाढ़ का खतरा दक्षिण एशिया में खासकर तेजी से बढ़ेगा और सूखा वैश्विक तुलना में अफ्रीका में ज्यादा पड़ेगा।

ब्रिटेन जैसी जगहों पर भी 1.5 डिग्री सेल्सियस और 3 डिग्री सेल्सियस के बीच का अंतर ज्यादा हो सकता है जहां जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अन्य जगहों की तुलना में अपेक्षाकृत कम गंभीर होंगे। लोगों के लिए वास्तविक परिणाम इस बात पर निर्भर करेंगे कि ये प्रत्यक्ष भौतिक प्रभाव - सूखा, गर्म हवाओं की लहरें, बढ़ते समुद्र तल - अर्थव्यवस्था के तत्वों के बीच आजीविका, स्वास्थ्य और परस्पर संबंध को कैसे प्रभावित करते हैं।

कोविड-19 के दौरान का हमारा अनुभव बताता है कि जो व्यवस्था के लिए अपेक्षाकृत मामूली प्रारंभिक गड़बड़ी प्रतीत होती है, वह बड़े और अप्रत्याशित प्रभाव पैदा कर सकती है, और हम जलवायु परिवर्तन के साथ भी इसकी उम्मीद कर सकते हैं। यदि तापमान बढ़ता है और भौतिक प्रभाव जैसे ग्लेशियरों का पिघलना या चरम मौसमी परिस्थितियां अक्सर गैर-रैखिक होती हैं, इसलिए तापमान बढ़ने और लोगों, समाजों और अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव के बहुत अधिक गैर-रैखिक होने की संभावना है। इसका मतलब है कि तीन डिग्री सेल्सियस वृद्धि पर दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस की दुनिया से बहुत खराब होगी।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।