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वर्ल्ड पावर के तौर पर US को रिप्लेस कर देगा चीन? या फिर दिन में तारे गिन रहे शी जिनपिंग

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग यह कह चुके हैं कि पूंजीवाद नष्ट हो जाएगा और समाजवाद की जीत होगी। हालांकि, ज्यादातर साम्यवादी राज्य ध्वस्त हो चुके हैं और अगला नंबर चीन का ही बताया जाता है।

वर्ल्ड पावर के तौर पर US को रिप्लेस कर देगा चीन? या फिर दिन में तारे गिन रहे शी जिनपिंग
Niteesh Kumarलाइव हिन्दुस्तान,बीजिंगSat, 06 May 2023 08:28 PM
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वर्ल्ड पावर के तौर पर अमेरिका को चीन रिप्लेस करना चाहता है। ड्रैगन अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अपने हिसाब से बदलाव लाना चाहता है। मगर, सवाल है कि क्या वह ऐसा कर सकता है? चीनी मामलों की जानकार जेसिका चेन वीस इसका जवाब देती हैं। वह कहती हैं कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन को 'नियंत्रित, घेरने और दबाने' के अमेरिकी प्रयासों को विफल करने की कसम खाई है। जिनपिंग यह कह चुके हैं कि पूंजीवाद नष्ट हो जाएगा और समाजवाद की जीत होगी। हालांकि, ज्यादातर साम्यवादी राज्य ध्वस्त हो चुके हैं और अगला नंबर चीन का ही बताया जाता है। इसके अलावा, चीन की अर्थव्यवस्था भी तो आज मार्क्सवादी की तुलना में अधिक पूंजीवादी हो चुकी है और विश्व बाजारों तक पहुंच पर अत्यधिक निर्भर है।

चीन इस तरह की आशंकाओं को समाप्त करना चाहता है। इसके लिए वो अपनी सेना को और ज्यादा मजबूत, रूस के साथ साझेदारी, विवादित क्षेत्रीय दावों पर दबाव और बयानबाजियों का सहारा ले रहा है। हालांकि, पूंजीवाद और साम्यवाद को लेकर आने वाले बयान असुरक्षा से प्रेरित जान पड़ते हैं। चीन के दीर्घकालिक मंसूबों को समझ पाना मुश्किल है और वे बदल भी सकते हैं। इसके बावजूद, इसमें सच्चाई जान पड़ती है कि USA को ड्रैगन प्रमुख शक्ति के तौर पर रिप्लेस करना चाहता है। एक्सपर्ट के मुताबिक, राष्ट्रपति जिनपिंग और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) अमेरिका को हमेशा चीन को कमजोर रखने वाली ताकत के रूप में देखते हैं। बीजिंग को लगता है कि इंटरनेशनल सिस्टम में चीन जो कुछ भी करता है यूएस उसका विरोध करता नजर आता है।

चीन के मंसूबों को समझना आसान नहीं
रिपोर्ट के मुताबिक, चीन मौजूदा सिस्टम को रिप्लेस करने की जगह उसमें बदलाव को लेकर अधिक इच्छुक दिखाई देता है। जिनपिंग अक्सर 'चाइना ड्रीम' और 'मानव जाति के लिए साझा भविष्य' जैसे राजनीतिक नारे लगाते रहे हैं। इन नारों का हकीकत में क्या मतलब है? इसे लेकर तो चीन में भी लगातार बहस चलती रही है। सवाल यह भी है कि वैश्विक नेतृत्व की तलाश में चीन को क्या कीमत और किस तरह का जोखिम उठाना पड़ सकता है? फिलहाल, अमेरिका इस बात को लेकर चिंतित है कि चीन ताइवान पर हमला कर सकता है। चीन ताइवान पर अपने क्षेत्र के रूप में दावा करता है। ड्रैगन कहता रहा है कि अगर आवश्यक हुआ तो वह बलपूर्वक उसे अपने नियंत्रण में लेगा। ऐसे में संभावित सशस्त्र संघर्ष को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बार-बार कहा है कि अमेरिकी सेना ताइवान की सुरक्षा में मदद करेगी। हालांकि, अमेरिकी आधिकारिक नीति इस बात पर अस्पष्ट है कि क्या और कैसे सेना भेजी जाएगी।

चीन पर भारी पड़ सकती हैं अंतरराष्ट्रीय पाबंदियां  
चीन को भी इस बात का डर है कि वो युद्ध में हार सकता है। इसके चलते उस पर अंतरराष्ट्रीय पाबंदियां लग सकती हैं, जिससे सप्लाई चेन बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है। यह आर्थिक और राजनीतिक रूप से विनाशकारी होगा। यह स्थिति चीनी राष्ट्रपति के शासन सुरक्षा, घरेलू स्थिरता और राष्ट्रीय कायाकल्प के मकसद के उलट होगी। अब तो इस बात को लेकर भी संदेह बढ़ रहा है कि चीन US को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में पछाड़ सकता है। दरअसल, जिनपिंग सरकार आर्थिक रूप से विपरीत परिस्थितियों और सिकुड़ती आबादी का सामना कर रही है। एक्सपर्ट कहते हैं कि चीन में यह व्यापक मान्यता है कि उनका देश अमेरिका की तुलना में सैन्य, आर्थिक और तकनीकी रूप से कमजोर बना हुआ है। साथ ही आधुनिकीकरण स्थिर आर्थिक व्यवस्था के भीतर ग्लोबल टेक्नोलॉजी, पूंजी और बाजारों तक निरंतर पहुंच पर निर्भर करता है। ऐसे में चीन लंबे समय तक किसी भी देश में सीधी कार्रवाई से बचता नजर आ सकता है।

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