दिमागी सेहत पर असर डाल रही डिजिटल जमाखोरी, जानें क्या हैं इसके मायने
क्या आपके मोबाइल में तस्वीरों का अंबार लगा है? क्या आप के पर्सनल और कार्यालय के ई-मेल अकाउंट में हजारों मेल जमा हैं। क्या आपके पेन ड्राइव में ढेर सारे गैरजरूरी डॉक्यूमेंट सेव हैं। अगर ऐसा है तो आप भी...
क्या आपके मोबाइल में तस्वीरों का अंबार लगा है? क्या आप के पर्सनल और कार्यालय के ई-मेल अकाउंट में हजारों मेल जमा हैं। क्या आपके पेन ड्राइव में ढेर सारे गैरजरूरी डॉक्यूमेंट सेव हैं। अगर ऐसा है तो आप भी डिजिटल जमाखोरी कर रहे हैं। डिजिटल दुनिया में भी जमाखोरी हो रही है और यह बहुत खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है। डिजिटल जमाखोरी करने वाले लोगों को आने वाले समय में इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है।
डाटा के ढेर बन रहे मुसीबत
दुनिया में डिजिटल जमाखोरी इस कदर बढ़ गई है कि अब ये बकायदा शोध का विषय बन गया है। हम अपने काम के या फिर निजी इस्तेमाल के दौरान तमाम ऐसे डाटा को जमा करते जा रहे हैं, जिनकी शायद हमें कभी जरूरत ही न पड़े, लेकिन इस डिजिटल जमाखोरी के नतीजे खतरनाक हो सकते हैं। ये डिजिटल जमाखोरी हमें तनाव देती है। ये आपकी दिमागी सेहत पर असर डाल रहा है। बहुत से लोगों की आदत होती है कि काम होने के बाद भी मेल डिलीट नहीं करते। हम इस उम्मीद में डॉक्युमेंट और तस्वीरें सहेज कर रखते हैं कि कभी शायद इनकी जरूरत पड़े। दरअसल, हम खुद को डिजिटल कचरे के ढेर के नीचे दबाते जा रहे हैं।
डिजिटल जमाखोरी चौंकाने वाली
50 लाख डॉलर है प्रतिवर्ष स्टोर होने वाले औसत डाटा की लागत
83 फीसदी आईटी पेशेवर मानते हैं उनकी कंपनी डिजिटज जमाखोरी करती है
72 फीसदी पेशेवर और आईटी पेशेवर मानते हैं कि उन्होंने डिजिटल जमाखोरी की है
3.83 करोड़ पाउंड हर औसत कंपनी को खर्च करने पड़ते हैं डाटा स्टोरेज के लिए
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कैसे बनते हैं आप डिजिटल जमाखोर
54 फीसदी बनाई गई फाइलों को सेव कर के रखते हैं आईटी पेशेवर
47 फीसदी ऑफिस में काम करने वाले पेशेवर डिजिटल फाइलों को नहीं करते डिलीट
28 फीसदी पेशेवर अन्य कर्मचारियों के खराब संवादों को स्टोर कर के रखते हैं
42% पेशेवर कंपनी सीक्रेट को स्टोर कर के रखते हैं
16% पेशेवर अश्लील सामग्रियां स्टोर कर के रखते हैं
रिसर्च में हुआ खुलासा
ब्रिटेन की नॉरथम्ब्रिया यूनिवर्सिटी में डिजिटल जमाखोरी पर रिसर्च करने वाले निक नीव कहते हैं कि जैसे रोजमर्रा की जिंदगी में हम बेवजह की चीजों को हटाते नहीं, सहेज कर रखते रहते हैं, ठीक वैसा ही अब डिजिटल दुनिया में भी हो रहा है। निक नीव और उनकी टीम ने डिजिटल जमाखोरी पर रिसर्च के दौरान 45 लोगों से बात की। उनसे पूछा कि आखिर वो डिजिटल डेटा का ढेर लगाकर क्यों रखे हुए हैं। इन लोगों ने कई कारण गिनाए, जैसे आलस, भविष्य में कोई चीज काम न आ जाए।
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किन देशों में कितनी जमाखोरी
चीन 57%
जापान 53%
ब्राजील 52%
फ्रांस 50%
कनाडा 48%
ब्रिटेन 42%
भारत-अमेरिका 39%
स्टोरेज बढ़ने से बढ़ रही परेशानी
डिजिटल जमाखोरी की मुसीबत की जड़ स्टोरेज की बढ़ती उपलब्धता है। तमाम कंपनियां क्लाउड स्टोरेज की सुविधा बहुत कम कीमत पर देती हैं। इसके अलावा हमारे फोन और लैपटॉप में आंकड़े सहेजने की जगह बढ़ती जा रही है इसीलिए डिजिटल जमाखोरी भी बढ़ रही है। प्रोफेसर एन ओरावेक सलाह देती हैं कि आईटी कंपनियों को चाहिए कि वो डेटा स्टोरेज को लेकर जो सुविधाएं दे रही हैं, उन पर फिर से विचार करें। लोगों को भी चाहिए कि वो नियमित रूप से अपने सहेजे हुए डाटा को देखें और गैरजरूरी फाइलें समय-समय पर डिलीट करते रहें। सेल्फी का ढेर, अनदेखी ई-मेल और दूसरी बेवजह की फाइलों का ढेर लगाने का कोई फायदा नहीं। इनसे तनाव ही बढ़ता है।
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