हूती विद्रोहियों के चलते भी एकजुट नहीं हो पा रहे अरब देश? खूंखार संगठनों में होती है गिनती
हूती विद्रोहियों ने लाल सागर में ब्रिटेन का एक जहाज अगवा कर लिया। इस संगठन की गिनती भी खूंखार संगठनों में होती है। ईरान और सऊदी अरब के बीच हूती भी रोड़ा बने हुए हैं।
इजरायल और हमास के बीच जारी जंग के बीच मुस्लिम देश एकजुट होने का प्रयास कर रहे हैं। कई विफल प्रयासों के बाद अब फिर से चीन में मुस्लिम देशों का महाजुटान होने जा रहा है। वैश्विक राजनीति के स्तर पर यह एक बड़ी बात है। बता दें कि इजरायल के आसपास मिस्र, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, इराक, तुर्की, ईरान, मोरक्को, सऊदी अरब, कुवैत, फिलिस्तीन, सूडान और ट्यूनीशिया जैसे देश हैं। इसके अलावा यूएई कतर जैसे देश भी अरब में मायने रखते हैं। इनमें से कई देश इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी का भी हिस्सा हैं। वहीं कई की दोस्ती अमेरिका के साथ भी है। इस्लामिक देशों में आपस में जारी मतभेद अरब देशों को भी इजरायल के खिलाफ एकजुट होने से रोकते हैं।
ईरान और सऊदी अरब की अनबन
सऊदी अरब और इजरायल के बीच कभी दोस्ती नहीं रही लेकिन गौर करने वाली बात है कि ईरान दोनों का साझा दुश्मन है। हमास और हिजबुल्लाह जैसे संगठनों को ईरान से ही समर्थन मिलता है। यही हाल यमन के हूती विद्रोहियों का भी है। हूती विद्रोही सऊदी अरब के खिलाफ खड़े रहते हैं। वहीं उन्हें ईरान से समर्थन मिलता है। इस वजह से अरब देशों में सहमति बननी बहुत मुश्किल हो जाती है। बता दें कि ईरान और सऊदी अरब दोनों इस्लामिक देश हैं लेकिन ईरान में शिया मुस्लिम ज्यादा हैं और सऊदी अरब में सुन्नी बहुल। ऐसे में बात जब एकजुट होने की आती है तो कुछ देश ईरान की तरफ तो कुछ देश सऊदी अरब की तरफ नजर आने लगते हैं। चीन का कहना है कि उसने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता करके दोस्ती करा दी है। हालांकि वैश्विक मंचों पर मतभेद साफ नजर आ जाता है।
क्या है हूती विद्रोहियों की भूमिका
एक दिन पहले ही हूती विद्रोहियों ने लाल सागर में भारत आ रहे ब्रिटेने के एक कार्गो शिप को अगवा कर लिया। जानकारी के मुताबिक उन्हें लगा कि यह शिप इजरायल का है। इससे पहले 2022 में दो जनवरी को हूती विद्रोहियों ने एक कार्गो शिप को कब्जे में ले लिया था और 11 लोगों को बंधक बनाया था। इसमें भारत के सात जवान शामिल थे। दरअसल हूती विद्रोही 1980 के दशक में यमन में पैदा हुए। यह शिया मुसलमानों का आदिवासी संगठन है। साल 2011 में यमन में सुन्नी नेता अब्दुल्ला सालेह की सरकार के खिलाफ हुतियों ने विद्रोह शुरू किया। सालेह तानाशाह थे।
हूती इससे पहले भी सालेह की सेना के साथ कई बार युद्ध कर चुके थे। 2011 में सऊदी अरब, यूएई और बहरीन ने मध्यस्थता की और युद्ध शांत हो गया। इसके बाद जनता के प्रदर्शन के चलते सालेह को भी पद छोड़ना पड़ा। अब्दुरब्बू मंसूर हादी के राष्ट्रपति बनने के बाद उनसे भी जनता संतुष्ट नहीं थी। वह सालेह का समर्थन भी करते थे। उन्हें भी हूतियों ने सत्ता से हटा दिया। इस तरह जब हूतियों की ताकत बढ़ने लगी तो सऊदी अरब और यूएई को भी चिंता सताने लगी।सऊदी अरब और यूएई ने अमेरिकी का मदद से हूतियों पर हमला कर दिया। यमन में युद्ध छिड़ गया। इस तरह हूती विद्रोही आज भी सऊदी अरब और यूएई के विरोध में खड़े रहते हैं। वहीं कहा जाता है कि ईरान हूतियों का समर्थन करता है। इस तरह हूती विद्रोही भी अपनी हरकतों से कई बार सऊदी अरब और ईरान के बीच मतभेद का कारण बन जाते हैं।
