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अफ्रीका की सेनाओं की खराब प्रतिष्ठा का मूल्यांकन

अफ्रीकी देशों की सेनाओं के पास पैसों और संसाधन की कमी तो है ही, साथ ही वे बहुत अप्रभावी भी हैं. महाद्वीप में तख्तापलट और मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक लंबा इतिहास रहा है.स्टॉकहोम स्थित इंटरनेशनल पीस...

अफ्रीका की सेनाओं की खराब प्रतिष्ठा का मूल्यांकन
डॉयचे वेले,दिल्लीSat, 22 Jan 2022 09:00 PM
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अफ्रीकी देशों की सेनाओं के पास पैसों और संसाधन की कमी तो है ही, साथ ही वे बहुत अप्रभावी भी हैं. महाद्वीप में तख्तापलट और मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक लंबा इतिहास रहा है.स्टॉकहोम स्थित इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के एक अध्ययन के मुताबिक, कुल 49 उप-सहारा अफ्रीकी देशों में से कम से कम 20 देश साल 2020 में किसी न किसी सशस्त्र संघर्ष में शामिल थे. इन घटनाओं के केंद्र में इन देशों की सेनाएं थीं और इस वजह से ये जांच के दायरे में हैं. कई अफ्रीकी देशों की सेनाएं खराब प्रतिष्ठा का दंश झेल रही हैं. वे अक्सर कम प्रशिक्षित और अप्रभावी होती हैं. इसके कई कारण हैं जिनमें कम फंडिंग भी शामिल है. ये बातें तब सामने आती हैं जब सेनाओं को विद्रोहियों का मुकाबला करने की जरूरत होती है, जैसा कि नाइजीरिया और मोजाम्बिक में देखा गया है. इसके अलावा, राजनेताओं द्वारा समर्थित सैन्य तख्तापलट के लिए सेनाओं को दोषी ठहराया जाता है, जैसा कि माली, गिनी और सूडान में हुआ था. कुछ सेनाओं पर भ्रष्टाचार और संसाधनों के दुरुपयोग के आरोप भी लगते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में सिपरी के एक वरिष्ठ शोधार्धी नान तियान कहते हैं, "हालांकि, यह एक गलत धारणा है. सामान्य तौर पर अफ्रीकी सेनाएं ऐसी नहीं होती हैं. उदाहरण के लिए रवांडा की सेना है जिसने अपने अनुशासन और प्रभावशीलता के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है.

” एक धारणा यह भी है कि अफ्रीकी सेनाएं देश के बजट का बहुत अधिक मात्रा में उपयोग करती हैं. हैम्बर्ग स्थिति गीगा इंस्टीट्यूट फॉर अफ्रीकन स्टडीज के निदेशक माथियाज बासीदू कहते हैं, "स्थानीय लोगों की संख्या और सेना के अनुपात और सैनिकों की संख्या के अनुसार सेना का बजट दोनों ही सापेक्ष रूप में अफ्रीका में बहुत कम हैं.” सेना में भ्रष्टाचार से लड़ना उदाहरण के लिए, उप-सहारा क्षेत्र में नाइजीरिया के पास दक्षिण अफ्रीका के बाद दूसरी सबसे बड़ी सेना है. लेकिन 15 करोड़ से अधिक निवासियों के सापेक्ष यहां महज दो लाख सैनिक हैं जो कि बहुत ही कम हैं. 14 करोड़ की आबादी वाले देश रूस में दस लाख से ज्यादा सैनिक हैं. अफ्रीकी सेनाएं पारदर्शिता में कमी और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से भी जूझ रही हैं. तियान कहते हैं, "इसमें से अधिकांश एक संरचनात्मक समस्या है. देश में वित्तीय संसाधनों की कमी का मतलब है कि सैन्य और राज्य की अन्य इकाइयां संसाधनों के छोटे टुकड़ों के लिए भी प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं.” अंगोला में, राष्ट्रपति जोआओ लौरेंको द्वारा शुरू किए गए भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में साल 2021 में कई उच्च स्तरीय सैन्य अधिकारियों को हिरासत में लिया गया और गबन के आरोप में मुकदमा चलाया गया. लौरेंको अंगोला में लंबे समय तक राष्ट्रपति रहे अपने पूर्ववर्ती जोस एडुआर्डो डॉस सैंटोस द्वारा लगाई गई संरक्षण की व्यवस्था को खत्म करने की भी कोशिश कर रहे हैं. सेना एक राजनीतिक भागीदार की भूमिका में अफ्रीका के औपनिवेशिक इतिहास के कारण कई देशों में सेना ने शुरू से ही एक राजनीतिक भूमिका निभाई. बासेदू कहते हैं, "एक बार जब जिन्न बोतल से निकल जाता है, तो उसे वापस अंदर डालना मुश्किल होता है.

” अंगोला में, कुछ शीर्ष लड़ाकों को पुर्तगाल से स्वतंत्रता की लड़ाई और आगामी दशकों के गृहयुद्ध में उनकी भागीदारी के लिए मुआवजा दिया गया था. इस तरह की व्यवस्था ने उन लोगों को जल्दी से अमीर बनने का अवसर प्रदान किया. मसलन, जनरल मैनुअल हेल्डर विएरा डायस जूनियर, जिनका उपनाम "कोपेलिपा" है, के बारे में अनुमान है कि साल 2014 में उनके पास तीन बिलियन डॉलर की संपत्ति थी. हालांकि लौरेंको की सरकार ने डॉस सैंटोस के जाने के बाद डायस को शक्तिशाली पदों से हटा दिया है, फिर भी जनरल अपनी संपत्ति को रखने में सक्षम है. हालांकि अंगोला तेल और हीरे के मामले में काफी समृद्ध है, लेकिन इसके 32 मिलियन लोगों में से अधिकांश गरीबी में रहते हैं. बासेदू कहते हैं कि अंगोला की तरह दूसरे कई देशों की सरकारों ने सेना को ‘भ्रष्ट प्रथाओं में उन्हें खुश रखने और उन्हें लाइन में रखने के लिए' शामिल किया है. यह अक्सर सेना का समर्थन हासिल करने की एक युक्ति है. सैन्य तख्तापलट फिर से बढ़ रहा है 1950 के दशक के मध्य से, अफ्रीका में प्रति वर्ष औसतन चार तख्तापलट की घटनाएं हुई हैं. "1950 से 2010 तक के तख्तापलट के वैश्विक उदाहरण: एक नया डेटासेट" नामक एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, साल 2010 से 2019 तक सफल तख्तापलट की घटनाओं की संख्या में गिरावट आई है. लेकिन साल 2021 में, उनकी संख्या अचानक बढ़कर छह हो गई जो कई विश्लेषकों के लिए चिंताजनक प्रवृत्ति थी. अफ्रीका में सुरक्षा, संघर्ष और विकास के मुद्दों पर केंद्रित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के रिसर्च फेलो बेंजामिन पेट्रिनी कहते हैं कि अफ्रीका में सैन्य तख्तापलट की घटनाओं की आशंका हमेशा बनी रहती है, खासकर पश्चिम और मध्य अफ्रीका में. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "जब हम कमजोर राज्यों का सामना करते हैं जहां अधिक जवाबदेह और कमजोर राजनीतिक संस्थान हैं, तो हम यह भी शर्त लगा सकते हैं कि उनकी सेनाएं जवाबदेह नहीं होंगी और बहुत संभव है कि विभाजित होंगी.

” पेट्रिनी कहते हैं कि अमेरिका और यूरोपीय संघ सहित लोकतांत्रिक मानदंडों का क्षरण ‘इस भावना के लिए एक प्रमुख योगदान कारक है कि एक सैन्य तख्तापलट के वही परिणाम नहीं होते हैं जो पहले हुआ करते थे.' मानवता के विरुद्ध अपराध इस प्रवृत्ति ने मानवता के खिलाफ अपराध करने के लिए कुख्यात कुछ सेनाओं में दण्ड से मुक्ति की भावना को भी बढ़ाया है. पैट्रिनी कहते हैं, "महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ यौन हिंसा और अन्य मानवाधिकारों के हनन सिर्फ घटनाएं नहीं हैं, बल्कि वास्तव में युद्ध की रणनीति हैं.” ऐसा लगता है कि यह एक विशिष्ट अफ्रीकी समस्या होने से ज्यादा कहीं बड़ा मुद्दा है. शोधकर्ता बासेदू कहते हैं, "युद्ध में मानवाधिकारों की अवहेलना एक सार्वभौमिक विशेषता है.” कोरोनो वायरस महामारी ने कई संस्थागत घाटों को कम कर दिया जिसकी वजह से तख्तापलट के खतरे और बढ़ गए हैं. पैट्रिनी कहते हैं, "कई देशों में लोकतांत्रिक राज्य की विफलता की धारणा को बढ़ावा देने के लिए सेना को कदम उठाना पड़ा.” पैट्रिनी तख्तापलट के नेताओं पर दबाव बढ़ाने का आह्वान करते हैं और माली के जुंटा पर सख्त प्रतिबंध लगाने के लिए पश्चिम अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय यानी ECOWAS की सराहना करते हैं. विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि अफ्रीका में बाहरी हस्तक्षेप दोधारी तलवार हो सकता है. चीन और रूस तेजी से पश्चिम के साथ आमने-सामने हैं और इस महाद्वीप में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन रहे हैं. बासेदू कहते हैं, "यदि आपके पास ये अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वंद्विता है और वे अफ्रीकी देशों में घरेलू संघर्षों में हस्तक्षेप करते हैं, तो निश्चित रूप से, यह एक बड़ा जोखिम है क्योंकि तब ये संघर्ष अधिक तीव्र और अधिक लंबे हो जाएंगे.” रिपोर्ट: क्रिस्टीना क्रिपपाल.

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