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ना कर्ज लौटाया, ना वाजिब कीमत दी; अफगान शरणार्थियों की बदहाली पर पाकिस्तानी यूं मना रहे दिवाली

Afghan Refugee problems: हाल के सप्ताहों में 250,000 से अधिक अफगानों ने पाकिस्तान छोड़ दिया है। पाकिस्तान पुलिस बिना दस्तावेज के रह रहे प्रवासियों के खिलाफ सरकार की कार्रवाई के तहत दक्षिणी सिंध प्रांत

ना कर्ज लौटाया, ना वाजिब कीमत दी; अफगान शरणार्थियों की बदहाली पर पाकिस्तानी यूं मना रहे दिवाली
Pramod Kumarलाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीSun, 12 Nov 2023 03:00 PM
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जब से पाकिस्तान सरकार ने बिना दस्तावेज के रह रहे करीब 17 लाख अफगान शरणार्थियों को देश से बाहर जाने का आदेश दिया है और उसके जबरन निर्वासन की कार्रवाई शुरू की है, तब से अफगान शरणार्थी ना केवल अपनी संपत्ति बेचने और देश छोड़ने को मजबूर हुए हैं बल्कि उनके पाकिस्तानी 'दोस्त' और शागिर्द उनकी इन कमजोरियों और मजबूरियों का  पूरा फायदा उठाने में जुटे हैं।

40 साल के हबीब उल्लाह, उन्हीं लोगों में से एक है, जिसे आधी से ज्यादा उम्र पाकिस्तान के पेशावर में बिताने के बाद अब बेघर कर दिया गया है। हबीब उल्लाह पेशावर में सब्जी की दुकान चलाता था, जिससे न केवल उसकी पत्नी और 13 बच्चों का भरण-पोषण होता था, बल्कि उसने छोटे से व्यवसाय से कुछ पैसे भी बचाकर रखे थे। अब वो पैसे भी काम नहीं आ रहे। उसे अब औने-पौने दाम पर अपनी संपत्ति बेचनी पड़ रही है। यहां तक कि जिन लोगों को उसने तीन लाख रुपये उधार या कर्ज दिए थे, उन लोगों ने अब उधार लौटाने या कर्ज अदायगी से इनकार कर दिया है।

डॉन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान सरकार ने प्रत्येक परिवार को सीमा पार अपने साथ केवल 50,000 रुपये ले जाने की ही अनुमति दी है। हबीब उल्लाह का कहना है कि इस छोटी से राशि के सहारे वह एक अजनबी से देश में कैसे अपनी जिंदगानी शुरू कर सकता है, जहां उसके पास कुछ भी नहीं है। वह चाहता है कि पाकिस्तान छोड़ने के लिए मजबूर किए जा रहे अफगानों को अपना कमाया हुआ धन और सामान ले जाने की अनुमति दी जाए, जो उन्होंने जीवन भर कड़ी मेहनत से हासिल किया है।

हबीब उल्लाह अकेला नहीं है, जो पाकिस्तानी सरकार के फरमान और पाकिस्तानियों के व्यवहार का मारा है। शरबत खान, जो लगभग चार दशकों से पंजाब के चकवाल जिले में रह रहे हैं, ने भी शरणार्थियों को अपने मवेशियों को अफगानिस्तान ले जाने से रोकने के सरकार के फैसले पर निराशा जाहिर की है। उन्होंने दुख जाहिर करते हुए कहा, "पहले, सरकार हमें अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर करती है, जहां हम पिछले 40 वर्षों से रह रहे थे, और अब उन्होंने हमें अपने मवेशी ले जाने से भी मना कर दिया है।" नतीजतन, शरबत खान को 4,00,000 रुपये कीमत वाले मवेशी को एक लाख रुपये में ही बेचने को मजबूर होना पड़ा है।

52 वर्षीय आलमज़ेब, जो 30 वर्षों से क्वेटा में रह रहे हैं और जूते का व्यवसाय करते हैं, उन कठिनाइयों पर दुःख व्यक्त करते हैं, जिसका सामना  उन्हें करना पड़ रहा है। पिछले महीने उन्होंने अपनी अधिकांश इन्वेंट्री, जिसकी कीमत 15 लाख रुपये थी, लगभग आधी कीमत पर बेच दी है।आलमजेब ने कहा, “हमने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया और आजीविका कमाने के लिए कड़ी मेहनत की है। हालाँकि, पुलिस के लगातार दबाव ने हमें घर छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया है। शुरुआत में, वे रिश्वत में 8,000 रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक की रकम मांगते थे, लेकिन अब वह भी नहीं चलेगा।'

पाकिस्तान, खासकर सिंध प्रांत में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिसमें पाकिस्तानी आपदा में अवसर तलाशते हुए अफगान शरणार्थियों पर आई शामत का फायदा उठा रहे हैं। हाल के सप्ताहों में 250,000 से अधिक अफगानों ने पाकिस्तान छोड़ दिया है। पाकिस्तान पुलिस बिना दस्तावेज के रह रहे प्रवासियों के खिलाफ सरकार की कार्रवाई के तहत दक्षिणी सिंध प्रांत में अफगान महिलाओं और बच्चों को गिरफ्तार कर रही है।  

सरकार ने बिना दस्तावेज वाले प्रवासियों के लिए स्वेच्छा से देश छोड़ने की समय सीमा 31 अक्टूबर तय की थी। लेकिन पाकिस्तान की सरकार ने शनिवार को उन वैध अफगान शरणार्थियों को वापस भेजने के फैसले को 31 दिसंबर तक स्थगित कर दिया जिनके निवास संबंधी दस्तावेज की अवधि इस साल समाप्त हो रही है। 

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