जंग हुई तो ईरान-इजरायल ही नहीं, इनकी भी होगी आर-पार की लड़ाई; मिडिल-ईस्ट में क्या मंडरा रहा विश्व युद्ध का खतरा
हमास प्रमुख की हत्या के बाद ईरान और इजरायल के बीच में युद्ध की स्थिति लगातार बनती जा रही है। अब्राहम एलायंस का उद्देश्य ईरान के खिलाफ इजरायल के साथ राजनयिक संबंधों वाले देशों को एकजुट करना है।
हमास प्रमुख की हत्या के बाद से ईरान और इजरायल के बीच में माहौल लगातार गर्म हो रहा है। इजरायल ने अभी तक इस हमले कि जिम्मेदारी तो नहीं ली है लेकिन वैश्विक जगत ने इस घटना के लिए इजरायल को जिम्मेदार मान लिया है। ईरान के सर्वोच्च लीडर खामनेई ने भी इजरायल के खिलाफ अपनी सेना को हल्ला बोलने का ऑर्डर दे दिया है। अब सवाल यह है कि इस युद्ध में इजरायल और ईरान की तरफ से कौन से देश और समूह हैं जो शामिल होंगे।
अब्राहम अलायंस की संभावना खोजता इजरायल
इसका जवाब पिछले महीने अमेरिका पहुंचे इजरायल के प्रधानमंत्री ने दिया। अमेरिका कांग्रेस में खड़े होकर नेतन्याहू ने कहा था कि वह मिडिल-ईस्ट में एक नए अब्राहम अलायंस की संभावना को देखते हैं। नेतन्याहू द्वारा सुझाया गया अब्राहम अलायंस, अब्राहम अकोर्ड का ही विस्तार है। अमेरिका की मध्यस्थता में की गई इस संधि का उद्देश्य इजरायल और अरब देशों के बीच में संबंधों को बेहतर करना था। कई अरब देशों ने इस संधि को स्वीकार भी कर लिया था और इसी के आधार पर अमेरिका ने चीन के बीआरआई का विकल्प भी खोज निकाला था। नेतन्याहू इसी संधि का सहारा लेकर इजरायल के वर्तमान और भविष्य के राजनायिक साथियों को ईरान और उसके प्रॉक्सी गुटों के खिलाफ एकजुट करना चाहते हैं।
अमेरिका ने इजरायल की सुरक्षा के लिए मिडिल ईस्ट में अपनी सेना की उपस्थिति को बढ़ाने का दावा कर दिया है वहीं और भी यूरोपीय देश इजरायल की मदद के लिए आगे बढ़ने को तैयार हैं। अमेरिकी सेना मिडिल ईस्ट में अपने विमानवाहक जहाज अब्राहम लिंकन के नेतृत्व में अतिरिक्त बैलेस्टिक मिसाइल, एंटी मिसाइल सिस्टम और एक नया लड़ाकू स्क्वाड्रन तैनात कर दिया है। इजरायल लगातार इस संभावित हमले से निपटने के लिए अपने साथी देशों से संबंधों को और भी ज्यादा मजबूत करने में लगा हुआ है। ईरान और इजरायल के बीच यह संभावित जंग ने कई सैन्य शक्तियों को एक दूसरे के सामने लाकर खड़ा कर दिया है।
ईरान का एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस भी नहीं है पीछे
ईरान में हुई इस्लामी क्रांति के बाद से ईरान का सपना इस्लाम जगत का लीडर बनने का रहा है। ईरान ने इस काम के लिए कई प्रॉक्सी समूहों को बढ़ावा दिया है। इन प्रॉक्सी समूहों के माध्यम से ईरान ने पूरे मध्य पूर्व पर अपने प्रभाव को बढ़ाया है। इन प्रॉक्सी गुटों को सामूहिक रूप से 'एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस' के नाम से जाना जाता है इस समूह में लेबनान का हिजबुल्लाह, यमन के हूती, इराक, सीरिया और गाजा के कई आतंकवादी समूह शामिल हैं। यह समूह ईरान के रणनीतिक हितों की सेवा करते है ईरान इसके बदले में इन्हें फंड मुहैया कराता है। इनकी सहायता से ईरान पूरे मिडिल ईस्ट में अपने प्रभाव को बढ़ाता है।
लेबनान का हिज्बुल्लाह
इस गुट की शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी। यह ईरान के साथ शिया इस्लामवादी विचार धारा को साझा करता है। यह मुख्य रूप से लेबनान की शिया आबादी में से भर्ती करता है और लेबनान में इजरायली सेना का मुकाबला करता है इसके पास बड़ी मात्रा में हथियारों का जखीरा मौजूद है। ईरान की इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स इसको फंड मुहैया कराती है।
गाजा में हमास है ईरान का साथी
फिलिस्तीनी क्षेत्रों में ईरान का संबंध हमास और फिलिस्तीनी आतंकवादी जिहाद जैसे आतंकवादी समूहों से है। ईरान इन समूहों को लगातार वित्तीय और सैन्य मदद देता है।
यमन के हूती विद्रोही
यमन के हूती विद्रोहियों को भी ईरान का समर्थन प्राप्त है। 1990 के दशक में बना यह आतंकवादी संगठन इस क्षेत्र में ईरान के प्रभाव को बढ़ाने का काम करता है। ईरान की इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स इन्हें फंड मुहैया कराती है।
इसके साथ ही ईरान के कई और भी आतंकवादी समूहों से बेहतर संबंध हैं। जैसे कताइब हिजबुल्लाह, असैब अहल अल-हक और बद्र संगठन। यह आतंकवादी संगठन अक्सर अमेरिकी और यूरोपीय सेनाओं को निशाना बनाते रहते हैं और तेहरान के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखते हैं।
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