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चीन की तरफ झुकाव पड़ गया शेख हसीना को भारी? बांग्लादेश में हुए तख्तापलट की क्या है वजह

बांग्लादेश में मची राजनीतिक उथल-पुथल के बीच वहां की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना फिलहाल भारत में हैं, जबकि बांग्लादेश में नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस अंतरिम सरकार के मुखिया के तौर पर शपथ ले चुके हैं। अब शेख हसीना के तख्तापलट को लेकर नए-नए एंगल निकल कर सामने आ रहे हैं।

चीन की तरफ झुकाव पड़ गया शेख हसीना को भारी? बांग्लादेश में हुए तख्तापलट की क्या है वजह
Upendra Thapak लाइव हिन्दुस्तानSat, 10 Aug 2024 01:56 PM
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शिशिर गुप्ता, हिन्दुस्तान टाइम्स
बांग्लादेश में अंतरिम सरकार गठित हो चुकी है और नोबेल विजेता यूनुस अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में शपथ ले चुके हैं। शेख हसीना के शासन के समय मुख्य विपक्षी पार्टी बीएनपी की नेता खालिदा जिया ने हसीना के भारत में रहने पर बयान देते हुए कहा कि अगर भारत हसीना को शरण देता है तो यहां पर अल्पसंख्यक हिंदुओं और भारतीय प्रतिष्ठानों के खिलाफ इस्लाम के कट्टरपंथी समूहों का जानलेवा रोष भारत के खिलाफ उठे गुस्से का ही रूप है।

शेख हसीना की सत्ता जाने के पीछे लोगों के अपने-अपने तर्क सामने आ रहे हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना का चीन के प्रति झुकाव और पश्चिम के प्रति नापसंदगी उनके राजनीतिक पतन का कारण बनीं। पीएम हसीना अभी कुछ दिन पहले ही चीन के दौरे पर गई थीं, जहां पर चीन और बांग्लादेश के बीच कुछ बड़े प्रोजेक्ट्स पर चर्चा हुई थी। यह बात सही है कि शेख हसीना ने कभी भारत के ऊपर चीन को तरजीह नहीं दी लेकिन इसके इतर उन्होंने चीन से कई समझौते भी कर रखे थे। जो पश्चिमी देशों के नजरिए से सही नहीं थे।

रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिमी देश भले ही बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में मुहम्मद यूनुस को सत्ता के शीर्ष पर बैठानें में सफल हो गए हो लेकिन तब भी बांग्लादेश को संभालना इतना आसान नहीं होने वाला। देश इस समय आर्थिक संकट और जमात-ए-इस्लामी और हेफाजत-ए-इस्लाम जैसी कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतों से जूझ रहा है। बांग्लादेश की पुलिस नदारद है और अब बांग्लादेश की सेना के हाथ में है कि वह कैसे इन कट्टरपंथी ताकतों का मुकाबला करती है और कैसे युवाओं को कट्टरपंथी रास्तों पर जाने से रोकती है।

भारत ने की थी पश्चिमी देश और बांग्लादेश के बीच सामंजस्य बैठाने की कोशिश

भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने भारतीय महाद्वीप में अपने सबसे खास पड़ोसी और पश्चिमी देशों के बीच सामंजस्य बैठाने की कोशिश की थी। भारत सरकार को यह पता था कि अमेरिका और बांग्लादेश की सरकारें एक दूसरे को पसंद नहीं करती है। अमेरिका, बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहुदलीय व्यवस्था को वापस लाने की जगह इस बात से ज्यादा चिंतित था कि बांग्लादेश, चीन को पेकुआ, कॉक्स बाजार में एक पनडुब्बी बेस बनाने की अनुमति दे चुका है और वह चीन से ही दो मिंग श्रेणी की पनडुब्बियां भी खरीदने का मन बना चुका है। आपको बता दें कि बांग्लादेश में चीनी कंपनी द्वारा निर्मित नौसैनिक अड्डे को बीएनएस शेख हसीना कहा जाता है।

इसके साथ-साथ भारत बांग्लादेश को क्रेडिट लाइन देता है और वह इस बात से बिल्कुल खुश नहीं था कि बांग्लादेश इस क्रेडिट लाइन का इस्तेमाल चीन और तुर्की जैसे देशों से हथियार खरीदने के लिए कर रहा था। यह वही हथियार होते थे, जिनका निर्माण भारत द्वारा भी किया जा रहा था।

मजबूत हो रहे थे शेख हसीना और चीन के रिश्ते

बांग्लादेश भले ही पाकिस्तान का विरोध करता हो लेकिन चीन के साथ उसके रिश्ते लगातार मजबूत हो रहे थे। रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश की सेना तोपखाने की बंदूकों से लेकर मुख्य युद्धक टैंकों, मिसाइलों से लेकर पनडुब्बियों और लड़ाकू विमानों तक चीनी सैन्य सामानों का ही उपयोग कर रही है। भारत और अमेरिका दोनों ही देश इस बात से नाखुश थे। बांग्लादेश की सेना तक चीन की पहुंच क्वाड की इंडो-पैसेफिक रणनीति के लिए सबसे बड़ा रोड़ा थी। क्योंकि चीन पहले से ही कंबोडिया,म्यांमार,श्रीलंका, पाकिस्तान और ईरान में अपने पैर जमा चुका है और अब अगर बांग्लादेश में भी वह मजबूत होता तो यह भारत और क्वाड दोनों के लिए ही सही नहीं रहता।

शेख हसीना का चीन समर्थक झुकाव इस बात का सबूत है कि श्रीलंका,नेपाल,पाकिस्तान और म्यांमार की तरह ही बांग्लादेश की नागरिक सैन्य अधिकारियों पर भी बीजिंग का कब्जा था। तथ्य यह है कि भारत द्वारा शेख हसीना को सूचित करने के बाद ही बांग्लादेश ने पाकिस्तानी नौसेना के लिए चीन निर्मित युद्धपोत पीएनएस तैमूर को कोलंबो के रास्ते कराची जाते समय 7-10 अगस्त तक चट्टोग्राम बंदरगाह पर खड़ा होने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। शेख हसीना को सूचित किए बिना ही उनके सैन्य अधिकारियों  ने पीएनएस तैमूर की डॉकिंग को मंजूरी दे दी थी।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत के विरोधी शेख हसीना के बाहर जाने का जश्न मना रहे हैं और इसे मोदी की कूटनीतिक हार करार दे रहे हैं लेकिन ढाका को भारत का समर्थन लेना होगा क्योंकि देश बढ़ते ऋण और बढ़ते आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। श्रीलंका और पाकिस्तान की तरह, आर्थिक संकट राजनीतिक अशांति को बढ़ावा देगा और बदले में बांग्लादेश में पैन-इस्लामिक ताकतों को बढ़त मिलेगी। चीनी की दखल अंदाजी और लोन के चक्कर को बांग्लादेश अच्छी तरह से जानता है, ऐसे में गेंद अब यूनुस और वेकर-उस-जमान के पाले में है कि वह क्या करते हैं।

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