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एक को भारत का डर, तो दूसरे को इजरायल से खतरा; पाक-सऊदी रक्षा समझौते की मजबूरी समझिए

संक्षेप: सऊदी तेल का राजा है, लेकिन सुरक्षा के मामले में कमजोर। सालों से ईरान उसका सबसे बड़ा दुश्मन रहा। वहीं पाकिस्तान हर तरह से भारत के सामने बौना नजर आता है। दोनों ही मुस्लिम देश एक दूसरे को ढाल की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं। 

Thu, 18 Sep 2025 03:41 PMAmit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, रियाद
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एक को भारत का डर, तो दूसरे को इजरायल से खतरा; पाक-सऊदी रक्षा समझौते की मजबूरी समझिए

बुधवार को रियाद के यमामा पैलेस में एक ऐतिहासिक डील देखने को मिली। सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने गले मिलकर 'स्ट्रेटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट' (एसएमडीए) पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता साफ कहता है: एक देश पर मतलब दोनों पर हमला। लेकिन यह सिर्फ कागजों का खेल नहीं, बल्कि दो देशों की गहरी मजबूरी का नतीजा है। एक तरफ पाकिस्तान, जो परमाणु शक्ति होने के बावजूद भारत के सामने बेबस महसूस करता है। दूसरी तरफ सऊदी अरब है, जो ईरान की पुरानी दुश्मनी से जूझता था, लेकिन अब इजरायल को सबसे बड़ा खतरा मानने लगा है। खाड़ी के देशों के लिए यह समझौता एक नई ढाल कहा जा रहा है, जो अमेरिकी सुरक्षा गारंटी पर सवाल उठाने के बाद आई। आइए, विस्तार से समझते हैं कि यह समझौता क्यों हुआ, कैसे हुआ, और इसके पीछे की सच्ची कहानी क्या है।

पाकिस्तान का भारत डर: परमाणु ताकत, लेकिन कन्वेंशनल कमजोरी

पाकिस्तान दुनिया का छठा सबसे बड़ा परमाणु हथियार संपन्न देश है। उसके पास करीब 170 परमाणु हथियार हैं, जो किसी भी हमले का जवाब देने के लिए तैयार हैं। लेकिन कन्वेंशनल यानी पारंपरिक जंग में भारत के सामने यह बौना नजर आता है। ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स 2025 के मुताबिक, भारत की मिलिट्री रैंकिंग दुनिया में चौथी है, जबकि पाकिस्तान 12वीं पर खिसक गया है।

सैनिकों की तुलना: भारत के पास 14.6 लाख एक्टिव सैनिक हैं, पाकिस्तान के सिर्फ 6.5 लाख। भारत के रिजर्व फोर्स 11.5 लाख हैं, पाकिस्तान के सिर्फ 5 लाख।

हथियारों का फर्क: भारत के पास 4,200 से ज्यादा टैंक, 2,200 से ज्यादा लड़ाकू विमान और 290 से ज्यादा नौसैनिक जहाज हैं (जिनमें 2 एयरक्राफ्ट कैरियर शामिल)। पाकिस्तान के पास 2,600 टैंक, 1,400 विमान और महज 121 जहाज।

बजट का अंतर: भारत का डिफेंस बजट 2025-26 के लिए 79 बिलियन डॉलर (करीब 6.8 लाख करोड़ रुपये) है, जो पाकिस्तान के 10 बिलियन डॉलर से 8 गुना ज्यादा।

यह फर्क सिर्फ आंकड़ों में नहीं, जमीनी हकीकत में भी दिखा। मई में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' चलाया। 7 मई को भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर और पंजाब प्रांत सहित कई इलाकों में 9 ठिकानों पर मिसाइल हमले किए। सकड़ों आतंकी मारे गए। चार दिनों तक चली इस जंग में पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की, लेकिन फिर भारत ने अपनी ब्रह्मोस मिसाइल से पाकिस्तान के अनेकों एयरबेस उड़ा दिए। मजबूरन पाकिस्तान को 10 मई को सीजफायर की गुहार लगानी पड़ी।

इस संघर्ष ने पाकिस्तान को एहसास दिलाया कि कन्वेंशनल ताकत में भारत से मुकाबला मुश्किल है। परमाणु हथियार आखिरी हथियार हैं, लेकिन परमाणु जंग शुरू होते ही सब कुछ तबाह हो सकता है। इसलिए पाकिस्तान को एक मजबूत दोस्त की जरूरत थी, जो भारत के खिलाफ बैलेंस बनाए। सऊदी अरब, जो पाकिस्तान को आर्थिक और मिलिट्री मदद देता रहा है, परफेक्ट चॉइस था।

सऊदी का डर: ईरान से इजरायल तक, खतरा बढ़ा

सऊदी अरब तेल का राजा है, लेकिन सुरक्षा के मामले में कमजोर। सालों से ईरान उसका सबसे बड़ा दुश्मन रहा। यहां एक बड़ी ही दिलचस्प बात ये है कि इजरायल और ईरान एक दूसरे के सबसे बड़े दुश्मन हैं। लेकिन दोनों की सऊदी अरब से नहीं बनती। ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों ने 2019 में सऊदी के आरामको प्लांट पर ड्रोन हमला किया था। 2025 में भी इजरायल-ईरान से टेंशन बढ़ी। लेकिन असली टर्निंग पॉइंट आया 9 सितंबर 2025 को।

कतर की राजधानी दोहा के लीक्तैफिया इलाके में इजरायली एयरस्ट्राइक हुई। हमला हमास के नेताओं पर था, जो कतर सरकार के रेसिडेंशियल कॉम्प्लेक्स में सीजफायर प्रपोजल पर मीटिंग कर रहे थे। हमले में 5 हमास मेंबर, 1 कतरी सिक्योरिटी ऑफिसर और नागरिक मारे गए। कतर ने इसे 'स्टेट टेररिज्म' कहा। अमेरिका ने कतर को मेजर नॉन-नाटो एली बनाया है और दोहा में उसका अल उदेद एयरबेस है जोकि मिडिल ईस्ट का सबसे बड़ा यूएस बेस। फिर भी, इजरायल ने हमला कर दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि उन्हें पहले से खबर नहीं थी।

यह हमला खाड़ी देशों के लिए बड़ा झटका था। कतर ने इजरायल को अंतरराष्ट्रीय कानून तोड़ने का दोषी ठहराया। 15 सितंबर को दोहा में अरब-इस्लामिक समिट हुई, जहां सऊदी क्राउन प्रिंस समेत कई लीडर्स ने इजरायल की निंदा की। लेकिन कोई ठोस एक्शन नहीं हुआ। सऊदी को लगा कि अमेरिकी सुरक्षा गारंटी भरोसेमंद नहीं रही। ईरान पुराना खतरा था, लेकिन अब इजरायल ने जगह ले ली। चैथम हाउस के डायरेक्टर सनम वकील कहते हैं, "गल्फ स्टेट्स अब इजरायल को सबसे बड़ा सिक्योरिटी थ्रेट मानते हैं।"

इजरायल के हमले ने अरब देशों को भड़का दिया

यह समझौता इजरायल के प्रति एक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। इजरायल को मध्य पूर्व का एकमात्र परमाणु हथियार संपन्न देश माना जाता है। 7 अक्टूबर 2023 को हमास के इजरायल पर हमले के बाद से इजरायल ने ईरान, लेबनान, फिलिस्तीनी क्षेत्रों, कतर, सीरिया और यमन में व्यापक सैन्य कार्रवाई की है। इस महीने की शुरुआत में कतर पर इजरायल के हमले ने अरब देशों को भड़का दिया। एक वरिष्ठ सऊदी अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया, "यह समझौता किसी विशिष्ट देश या घटना के जवाब में नहीं है, बल्कि दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे गहरे सहयोग को संस्थागत रूप देने का कदम है।" हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह क्षेत्रीय तनावों के बीच सऊदी अरब की सुरक्षा चिंताओं को दर्शाता है। अमेरिका लंबे समय से खाड़ी देशों का सुरक्षा कवच रहा है, उसने भी अभी तक इस समझौते की पुष्टि नहीं की है।

लंबे समय से चली आ रही रक्षा साझेदारी

पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच रक्षा संबंध दशकों पुराने हैं, जो मुख्य रूप से इस्लामाबाद की मक्का और मदीना की रक्षा करने की इच्छा पर आधारित हैं। 1960 के दशक के अंत में पाकिस्तानी सैनिक पहली बार यमन युद्ध के दौरान सऊदी अरब गए थे। 1979 के ईरानी इस्लामी क्रांति के बाद ये संबंध और मजबूत हुए, जब सऊदी अरब को ईरान के साथ टकराव का डर सताने लगा। पाकिस्तान ने भारत के परमाणु हथियारों के जवाब में अपना परमाणु कार्यक्रम विकसित किया था। दोनों पड़ोसी देशों के बीच कई युद्ध हो चुके हैं, और अप्रैल में कश्मीर में पर्यटकों पर हमले के बाद फिर से युद्ध की कगार पर पहुंच गए थे। एटॉमिक साइंटिस्ट्स बुलेटिन के अनुसार, भारत के पास अनुमानित 172 परमाणु हथियार हैं, जबकि पाकिस्तान के पास 170।

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पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में सऊदी की रुचि

सऊदी अरब ने लंबे समय से पाकिस्तान के साथ आर्थिक, धार्मिक और सुरक्षा संबंध बनाए रखे हैं, जिसमें इस्लामाबाद के परमाणु हथियार कार्यक्रम के लिए कथित रूप से वित्तीय सहायता शामिल है। सेवानिवृत्त पाकिस्तानी ब्रिगेडियर जनरल फेरोज हसन खान की किताब "ईटिंग ग्रास: द मेकिंग ऑफ द पाकिस्तानी बम" में कहा गया है कि सऊदी अरब ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के लिए "उदार वित्तीय समर्थन" प्रदान किया। विकीलीक्स द्वारा जारी किए गए 2007 के एक अमेरिकी राजनयिक नोट में कहा गया था कि पाकिस्तानी अधिकारियों ने सऊदी अरब को इस्लामाबाद के साथ परमाणु हथियार कार्यक्रम का पीछा करने का सुझाव दिया। नोट में कहा गया, "इन अधिकारियों के अनुसार, वे समझते हैं कि (सऊदी अरब) खुद और क्षेत्र की रक्षा करना चाहता है, और चूंकि अन्य क्षेत्रीय खिलाड़ी- विशेष रूप से मिस्र वित्तीय बाधाओं के कारण ऐसे हथियार प्रणालियां विकसित करने में असमर्थ हैं, इसलिए सऊदी अरब को भौतिक 'रक्षक' के रूप में कदम रखना तार्किक है। विश्लेषकों और पाकिस्तानी राजनयिकों ने वर्षों से सुझाव दिया है कि सऊदी अरब को इस्लामाबाद के परमाणु छत्र के तहत शामिल किया जा सकता है, खासकर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर तनाव बढ़ने के साथ।

सऊदी अरब अमेरिकी सहायता से नागरिक परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। यह 2023 के हमास हमले से पहले इजरायल के साथ प्रस्तावित राजनयिक मान्यता सौदे का हिस्सा था। यानी अमेरिका ने सऊदी के सामने प्रस्ताव रखा था कि वह इजरायल को मान्यता दे तो बदले में उसे नागरिक परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में मदद मिलेगी। क्राउन प्रिंस मोहम्मद ने कहा है कि अगर ईरान के पास परमाणु हथियार हो गया, तो सऊदी अरब भी ऐसा ही करेगा। सऊदी अरब के पास पहले से ही घरेलू बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम माना जाता है, जो परमाणु हथियार के लिए वितरण प्रणाली हो सकता है। हालांकि, सऊदी अरब परमाणु अप्रसार संधि का सदस्य है और खुद से बम हासिल करने की दिशा में कदम नहीं उठाएगा।

समझौते की मजबूरी: दो कमजोरियां, एक ढाल

यह समझौता सालों की कोशिशों का नतीजा है। पाकिस्तान और सऊदी के रिश्ते कई दशक पुराने हैं- इसमें ट्रेड, मिलिट्री ट्रेनिंग और आर्थिक मदद जैसे पहलू शामिल हैं। सऊदी ने पाकिस्तान को अरबों डॉलर दिए हैं। लेकिन 17 सितंबर को हस्ताक्षर के समय पाकिस्तानी आर्मी चीफ फील्ड मार्शल आसिम मुनीर भी मौजूद थे। समझौते में साफ लिखा: दोनों देश डिफेंस कोऑपरेशन बढ़ाएंगे, और किसी भी आक्रामकता का मिलकर जवाब देंगे।

सऊदी के लिए फायदा: पाकिस्तान की 6.5 लाख आर्मी, परमाणु ताकत और चाइनीज हथियार। एक सऊदी ऑफिशियल ने कहा, "यह एग्रीमेंट सभी मिलिट्री मीन्स कवर करता है।" पाकिस्तान को सऊदी का पैसा और भारत के खिलाफ कूटनीतिक बैकअप मिलेगा। लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि क्या पाकिस्तान सऊदी को न्यूक्लियर छतरी देगा? ऑफिशियल्स चुप हैं, लेकिन एक्सपर्ट्स कहते हैं कि हां, यह ऐसा हो सकता है। मजेदार बात ये है कि सऊदी अरब और पाकिस्तान, दोनों ही इजरायल को मान्यता नहीं देते हैं। X पर रिएक्शन तेज हैं। पाकिस्तानी यूजर्स इसे "उम्माह की ढाल" बता रहे, जबकि इंडियन साइड इसे "थ्रेट" कह रही। एक पोस्ट में लिखा: "इजरायल का कतर हमला ही इसका ट्रिगर था। अब खाड़ी देश पाकिस्तान की तरफ मुड़ रहे।" पाकिस्तान इकलौता मुस्लिम देश है जिसके पास परमाणु हथियार हैं।

शांति या नई जंग?

वैसे बता दें कि भारत-सऊदी के बीच रिश्ते अपने सबसे मजबूत दौर से गुजर रहे हैं। खुद सऊदी अधिकारी ने पाकिस्तान के प्रतिद्वंद्वी भारत के साथ संबंधों को संतुलित करने की आवश्यकता को स्वीकार किया। यह समझौता मिडिल ईस्ट को बदल सकता है। भारत ने कहा कि वह इसका "इंपैक्ट स्टडी" करेगा। ईरान को चिंता है कि सऊदी-पाकिस्तान एलायंस उसकी दुश्मनी बढ़ाएगा। अमेरिका की भूमिका कमजोर हुई, जो अब एशिया पर फोकस कर रहा। लेकिन रिस्क भी हैं: अगर भारत-पाकिस्तान टेंशन बढ़ी, तो सऊदी फंस सकता है। या इजरायल ने सऊदी पर निशाना साधा, तो पाकिस्तान की न्यूक्लियर धमकी काम आएगी? अंत में, यह समझौता दो देशों की मजबूरी है और यह साझा डर से उपजा गठबंधन है। पाकिस्तान को भारत से राहत, सऊदी को इजरायल-ईरान से सुरक्षा।

Amit Kumar

लेखक के बारे में

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अमित कुमार एक अनुभवी पत्रकार हैं, जिन्हें मीडिया इंडस्ट्री में नौ वर्षों से अधिक का अनुभव है। वर्तमान में वह लाइव हिन्दुस्तान में डिप्टी चीफ कंटेंट प्रोड्यूसर के रूप में कार्यरत हैं। हिन्दुस्तान डिजिटल के साथ जुड़ने से पहले अमित ने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम किया है। अमित ने अपने करियर की शुरुआत अमर उजाला (डिजिटल) से की। इसके अलावा उन्होंने वन इंडिया, इंडिया टीवी और जी न्यूज जैसे मीडिया हाउस में काम किया है, जहां उन्होंने न्यूज रिपोर्टिंग व कंटेंट क्रिएशन में अपनी स्किल्स को निखारा। अमित ने भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से हिंदी जर्नलिज्म में पीजी डिप्लोमा और गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी, हिसार से मास कम्युनिकेशन में मास्टर (MA) किया है। अपने पूरे करियर के दौरान, अमित ने डिजिटल मीडिया में विभिन्न बीट्स पर काम किया है। अमित की एक्सपर्टीज पॉलिटिक्स, इंटरनेशनल, स्पोर्ट्स जर्नलिज्म, इंटरनेट रिपोर्टिंग और मल्टीमीडिया स्टोरीटेलिंग सहित विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई है। अमित नई मीडिया तकनीकों और पत्रकारिता पर उनके प्रभाव को लेकर काफी जुनूनी हैं। और पढ़ें

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