Hindi Newsविदेश न्यूज़North Korea First King Kim Il Sung story when he died detective was alert to confirm people crying

कहानी उत्तर कोरिया के पहले तानाशाह की, जिसके मरने पर सबको 10 दिन रोना पड़ा; लोगों के आंसू देखने को लगे थे जासूस

  • उत्तर कोरिया के पहले तानाशाह किम इल किम जोंग उन के दादा थे। किम इल की जब मौत हुई तो अगले 10 दिन तक देश में मातम रहा। लोगों को रोते हुए देखा गया। कोरिया सरकार ने लोगों के असली और नकली आंसुओं का पता लगाने के लिए जासूस भी लगाए।

Gaurav Kala लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 9 Sep 2024 05:20 AM
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North Korea First King Kim Il Sung: 9 सितंबर 1948 को डेमोक्रेटिक पीपल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया की स्थापना हुई थी और किम इल सुंग को देश का नेता चुना गया। किम इल मौजूद तानाशाह किम जोंग उन के दादा थे। किम इल ने 1948 से आधिकारिक रूप से देश पर राज करना शुरू किया, हालांकि सोवियत रूस द्वारा 1945 को ही उनकी ताजपोशी हो चुकी थी। किम इल अपने समलकालीन रूसी तानाशाह स्टालिन से अधिक समय तक जीवित रहे। 8 जुलाई 1994 को जब किम इल की मौत हुई तो अगले 10 दिन तक देश में मातम पसरा रहा। लोगों के लिए रोना अनिवार्य कर दिया गया। हुकूमत ने लोगों के असली और नकली आंसुओं का पता लगाने के लिए जासूस भी लगाए।

हम आपको उत्तर कोरिया के पहले तानाशाह किम इल सुंग की कहानी बता रहे हैं। किम इल की ताजपोशी रूसी तानाशाह स्टालिन के कारण मुमकिन हो पाई। 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद क्रूर जापानियों ने हार के साथ कोरिया को आजाद घोषित कर दिया था। कोरिया का नेतृत्व करने के लिए सोवियत की पहली पसंद चो मान सिक थे लेकिन, स्टालिन ने भांपा कि चो उनकी कठपुतली की तरह कोरिया में काम नहीं करेंगे। चो के इरादों को भांपकर स्टालिन ने ऐन वक्त पर किम इल की ताजपोशी पर मुहर लगा दी।

जिंदगी के पहले भाषण में फ्लॉप रहे किम इल

उत्तर कोरिया पर करीब 49 साल राज करने वाले किम इल अपने पहले भाषण में देशवासियों को इंप्रेस करने में नाकाम रहे। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, 14 अक्टूबर 1945 को प्योंगयांग (मौजूदा राजधानी) में 33 साल के किम इल का भाषण किसी को पसंद नहीं आया। वो बेहद टाइट कपड़े पहने हुए थे और पन्ना लिए पढ़ने के बावजूद कई बार अटके। उनके चेहरे पर घबराहट देखी जा सकती थी। किम इल उस वक्त 33 साल के थे और 26 साल निर्वासन में जीने के कारण वो कोरिया भाषा सही से नहीं बोल पा रहे थे।

 

भाषण देते किम इल सुंग (फाइल तस्वीर)

खुद को भगवान की तरह पेश किया

हालांकि पहले फ्लॉप भाषण के बावजूद किम इल ने जल्द ही देश में पकड़ मजबूत कर ली और तानाशाह की तरह देश पर हुकूमत करने लगे। 1950 में यूएस कमांडर पर हमले के बाद अमेरिका ने उत्तर कोरिया पर 6 लाख से ज्यादा टन वजनी बम गिराए थे। अकेले राजधानी प्योंगयांग में दो लाख बम गिराए गए। यानी एक नागरिक पर एक बम। अमेरिका द्वारा तहस-नहस किए जाने के बावजूद किम इल अगले 10 वर्षों में उत्तर कोरिया पर पूरी तरह से हावी हो चुके थे। कभी स्टालिन के पोस्टर और चित्रों से पटे उत्तर कोरिया में अब सिर्फ किम इल की तस्वीरें और स्मारक थे। किम इल जहां भी जाते, उस स्थान को धार्मिक या पर्यटन स्थल के रूप में पूजा जाने लगा।

देशवासियों को तीन कैटेगरी में बांटा

हालत ये हो गई कि देश के लोगों को तीन कैटेगरी में बांट दिया गया। पहली कैटेगरी में आने वाले अमीर लोग किम इल को भगवान की पूजते और बदले में ढेर सारा भोजन, सुविधाएं, बच्चों के लिए शिक्षा इत्यादि पाते। दूसरी कैटेगरी में आने वाले गरीब तबके के लोगों को सुविधाएं कम दी जाती थी। जबकि, तीसरी कैटेगरी में लोगों को अलग-थलग कर दिया गया। इसमें वे लोग थे जो किम इल की तानाशाही को पसंद नहीं करते थे। इन्हें बुनियादी जरूरतों से भी वंचित कर दिया गया। इस दौरान देश पर गाने सुनने, फिल्म बनाने, प्रेम चित्रण, प्रेम आधारित फिल्म सभी पर प्रतिबंध लगा दिए गए। किम इल से मिलने के वक्त हर किसी का सिर झुका रहना चाहिए था। अगर किसी उत्तर कोरियाई शख्स का कोई रिश्तेदार दक्षिण कोरिया में रहता है या किसी दुश्मन देश से संबंध रखता था तो उसे भी कठोर सजा दी जाती थी। किम इल की तस्वीर को अनदेखा करने वालों को तीन साल तक की जेल की सजा का प्रावधान था।

 

किम इल सुंग की फाइल तस्वीर।

मरने पर 10 दिन तक रोया देश, जासूस भी लगाए

किम इल की मौत 8 जुलाई 1994 को हुई। ऐसा बताया जाता है कि किम इल की मौत से देश में बगावत न हो, इससे पूरी तरह आश्वस्त होकर ही कोरियाई सरकार ने 34 घंटे बाद किम इल की मौत की घोषणा सार्वजनिक की। कोरियाई रेडियो पर संदेश दिया गया- महान हृदय रखने वाला चला गया। इतना ही नहीं देश में अगले 10 दिनों तक शोक चलता रहा। देशवासियों को किम इल के प्रति वफादारी दिखाने के लिए सार्वजनिक स्थलों पर रोना अनिवार्य कर दिया गया। इसकी जांच के लिए बाकायदा जासूस भी लगाए गए ताकि पता लगाया जा सके कि किम इल की मौत से लोगों को वाकई में दुख पहुंचा है या वे रोने का नाटक कर रहे हैं।

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