US के हटते ही NATO में इस मुस्लिम देश का होगा जलवा, हाथ मलते रह जाएंगे जर्मनी-फ्रांस
रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका के बिना भी NATO के पास पर्याप्त धन-बल और तकनीकी समर्थता है और यह अपने सदस्य देशों की रक्षा करने में सक्षम है।

डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद पूरी दुनिया में उथल-पुथल मची हुई है। ट्रंप एक तरफ व्यापार घाटे से निपटने के लिए चीन समेत कई देशों पर टैरिफ लगा रहे हैं तो दूसरी तरफ उनकी सरकार इस बात पर मंथन कर रही है कि क्या अमेरिका को NATO (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन), UN (संयुक्त राष्ट्र) और वर्ल्ड बैंक से अलग हो जाना चाहिए। जनवरी में पदभार संभालते ही ट्रंप WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) से अलग होने के कार्यकारी आदेश पर दस्तखत कर चुके हैं।
अब अरबपति कारोबारी और ट्रंप की सरकार में मंत्री एलन मस्क समेत कई रिपब्लिकन सांसद ट्रंप को NATO, UN से भी हटने की सलाह दे रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सचुमच अमेरिका NATO से अलग हो सकता है और अगर हां तो इसका NATO और NATO के सदस्य देशों पर क्या असर पड़ेगा।
NATO से हट गया US तो कितना पड़ेगा असर
दरअसल, NATO पिछले 80 सालों से अमेरिकी नेतृत्व में पूरे यूरोप महाद्वीप को एक ढाल बनकर रक्षा की गारंटी देता रहा है लेकिन बदले तकनीक और रक्षा सामर्थ्य के समय में अब यह मायने नहीं रखता क्योंकि कई यूरोपीय देश अब रूस जैसे दुश्मन का मुकाबला करने में सक्षम हो गए हैं। ऐसे में अब यह कहा जाने लगा है कि अमेरिका अगर NATO से हट जाता है, तब भी यह संगठन शक्तिविहीन नहीं होने वाला है क्योंकि इस गठबंधन में शामिल अन्य 31 देशों के 10 लाख से भी ज्यादा सैनिक और आधुनिक हथियार इसकी मजबूत दीवार बनकर खड़े रह सकते हैं।
NATO में किसकी कितनी हिस्सेदारी
रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका के बिना भी NATO के पास पर्याप्त धन-बल और तकनीकी समर्थता है और यह अपने सदस्य देशों की रक्षा करने में सक्षम है। CNN की एक रिपोर्ट के मुतीबिक, अमेरिका और जर्मनी NATO के सैन्य बजट में से सबसे बड़े योगदानकर्ता देश रहे हैं, जो करीब 16-16 फीसदी है। इसके बाद UK और फ्रांस का नंबर आता है, जो क्रमश: 11 और 10 फीसदी योगदान करते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि अगर अमेरिका हट जाता है तो यूरोपीय देश उसकी भरपाई तुरंत कर ले सकते हैं।
किस देश के कितने सैनिक?
इंटरनेशनल इन्स्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज (IISS) के यूरोप कार्यकारी निदेशक बेन श्रेयर के मुताबिक, अगर यूरोपीय देश एकजुट होकर सही उपकरण खरीदते हैं, तो यूरोप रूस के लिए एक गंभीर चुनौती पेश कर सकता है और उसके परमाणु अस्त्रों का भी संहार कर सकता है। IISS मुताबिक, 2025 के आंकड़ों के अनुसार NATO में फिलहाल अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा मुस्लिम राष्ट्र तुर्की के सैनिक कार्यरत हैं, जिनकी संख्या 3,55,200 है। इसके बाद फ्रांस का नंबर आता है, जिसके 2,02,200 सैनिक कार्यरत हैं। तीसरे नंबर पर जर्मनी (1,79,850)है, जबकि उसके बाद क्रमश: पोलैंड (164,100), इटली (161,850), यूनाइटेड किंगडम (141,100), ग्रीस (132,000) और स्पेन (122,200) का स्थान आता है। इस लिहाज से देखें तो अमेरिका के हटने के बाद NATO में तुर्की बड़ा सैनिक भागीदारी वाला देश बन सकता है।
NATO की ताकत क्या?
कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस की जुलाई 2024 की रिपोर्ट में कहा गया है कि जून 2024 तक लगभग 80,000 अमेरिकी सैनिक नाटो देशों में तैनात थे। इसके मुताबिक, अधिकांश अमेरिकी सैनिक जर्मनी (35,000), इटली (12,000) और यूके (10,000) में तैनात हैं। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि कुछ बड़े नाटो देशों के पास रूस के बराबर या उससे कई गुना बेहतर हथियार मौजूद हैं। उदाहरण के लिए विमानवाहक पोतों को ही लें। रूस के पास एक पुराना विमानवाहक पोत है, जबकि अकेले ब्रिटेन के पास दो आधुनिक विमानवाहक पोत हैं जो F-35B स्टील्थ लड़ाकू विमानों को लॉन्च करने में सक्षम हैं।
मिलिट्री बैलेंस की रिपोर्ट के अनुसार, फ्रांस, इटली और स्पेन के पास विमानवाहक पोत या उभयचर जहाज हैं जो लड़ाकू जेट विमानों को लॉन्च करने में सक्षम हैं। इससे इतर अमेरिका के अलावा, फ्रांस और ब्रिटेन के पास भी परमाणु शक्ति है तथा दोनों देशों ने बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियां तैनात कर रखी हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका के अलावा नाटो सहयोगियों के पास लगभग 2,000 लड़ाकू और जमीनी हमला करने वाले जेट विमान हैं, जिनमें दर्जनों नए एफ-35 स्टील्थ जेट भी शामिल हैं
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