
चीन का मुकाबला, भारत पर दबाव की रणनीति; बहुत शातिर है ट्रंप का पाकिस्तान वाला खेल
संक्षेप: ट्रंप की रणनीति को कई विश्लेषकों ने दबाव की कूटनीति करार दिया है। वह भारत को रूस और ईरान से दूरी बनाने और अमेरिका के साथ व्यापार समझौते के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहे हैं। आखिर क्या है ट्रंप का प्लान?
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ एक महत्वपूर्ण व्यापारिक सौदे की घोषणा की, जिसके तहत अमेरिका और पाकिस्तान मिलकर पाकिस्तान के "विशाल तेल भंडार" को विकसित करने पर काम करेंगे। इस घोषणा को कई विशेषज्ञ एक रणनीतिक कदम के रूप में देख रहे हैं, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान की चीन पर बढ़ती निर्भरता को कम करना और भारत पर व्यापारिक सौदे को लेकर दबाव बनाना है। इस डील की घोषणा के कुछ ही घंटों पहले ट्रंप ने भारत पर 25% टैरिफ और रूस से हथियार व तेल खरीद के लिए अतिरिक्त जुर्माना लगाने की घोषणा की थी।
क्या है पाक-अमेरिका डील?
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा, "हमने पाकिस्तान के साथ एक सौदा पूरा किया है, जिसके तहत पाकिस्तान और अमेरिका मिलकर उनके विशाल तेल भंडार को विकसित करेंगे। हम उस तेल कंपनी को चुनने की प्रक्रिया में हैं जो इस साझेदारी का नेतृत्व करेगी। कौन जानता है, शायद वे (पाकिस्तान) एक दिन भारत को तेल बेच रहे होंगे!" इतना ही नहीं, ट्रंप ने भारत (25) के मुकाबले पाकिस्तान (19) पर 6 फीसदी कम टैरिफ लगाया है। पाकिस्तान की सबसे बड़ी रिफाइनरी कंपनी Cnergyico और Vitol के बीच हुए सौदे के तहत अक्टूबर 2025 में अमेरिका से 1 मिलियन बैरल क्रूड ऑयल भी कराची पहुंचेगा।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस सौदे को "ऐतिहासिक" करार देते हुए ट्रंप को धन्यवाद दिया और उम्मीद जताई कि यह दोनों देशों के बीच सहयोग को और मजबूत करेगा। हालांकि, ट्रंप ने यह स्पष्ट नहीं किया कि वे किस "विशाल तेल भंडार" की बात कर रहे हैं, क्योंकि पाकिस्तान के तेल और गैस भंडार सीमित हैं और इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हुई है।
विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं कि क्या पाकिस्तान के पास वाकई इतने बड़े तेल भंडार हैं। 2019 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने कराची के पास समुद्र में तेल भंडार की खोज का दावा किया था, लेकिन पाकिस्तान के पेट्रोलियम मंत्रालय ने इसे खारिज कर दिया था। 2024 की एक रिपोर्ट में भी कहा गया कि ExxonMobil और अन्य कंपनियों ने 5500 मीटर तक ड्रिलिंग की, लेकिन कोई महत्वपूर्ण भंडार नहीं मिला।
भारत पर दबाव: टैरिफ और रूस-ईरान कार्ड
ट्रंप ने 1 अगस्त से भारतीय आयात पर 25% टैरिफ लागू करने की घोषणा की, जिसका मुख्य कारण भारत का रूस से तेल और रक्षा उपकरण खरीदना बताया गया। इसके अलावा, ईरान के साथ व्यापार करने वाली कई भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए गए, जो चाबहार पोर्ट और तेल आयात जैसे प्रोजेक्ट्स से जुड़ी हैं। ट्रंप का यह कदम भारत की स्वतंत्र विदेश नीति पर दबाव डालने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। भारत ने जवाब में साफ किया कि वह रूस से तेल खरीदकर वैश्विक तेल बाजार को स्थिर रखता है, जिससे कच्चे तेल की कीमतें नियंत्रित रहती हैं।
ट्रंप की यह नीति भारत को अमेरिका के साथ व्यापार समझौते के लिए मजबूर करने की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है। वह चाहते हैं कि भारत अमेरिका से डेयरी और कृषि क्षेत्रों में टैरिफ कम करे और रूस के बजाय अमेरिकी सैन्य उपकरण, जैसे F-35 फाइटर जेट, खरीदे। हालांकि, भारत ने साफ कर दिया कि वह दबाव में कोई समझौता नहीं करेगा और उसके पास सऊदी अरब, UAE, कतर जैसे अन्य तेल आपूर्तिकर्ता हैं।
चीन का मुकाबला: रेयर अर्थ और क्षेत्रीय प्रभाव
ट्रंप की नीति का एक बड़ा लक्ष्य चीन के क्षेत्रीय प्रभाव को कम करना है। दक्षिण एशिया में चीन का पाकिस्तान के साथ मजबूत आर्थिक और सैन्य रिश्ता है, खासकर CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) के जरिए। ट्रंप प्रशासन ने म्यांमार के सैन्य शासन पर टैरिफ में ढील और रेयर अर्थ डिप्लोमेसी के लिए विशेष दूत की नियुक्ति जैसे कदम उठाए हैं, ताकि चीन पर निर्भरता कम की जा सके। पाकिस्तान के साथ तेल सौदा भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिससे अमेरिका दक्षिण एशिया में अपनी पकड़ मजबूत कर सके और चीन के प्रभाव को संतुलित कर सके। विशेषज्ञों का मानना है कि यह सौदा चीन-पाकिस्तान संबंधों में दरार डाल सकता है।
क्या है ट्रंप का शातिर खेल?
ट्रंप की रणनीति को कई विश्लेषकों ने "दबाव की कूटनीति" करार दिया है। वह भारत को रूस और ईरान से दूरी बनाने और अमेरिका के साथ व्यापार समझौते के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहे हैं। पाकिस्तान के साथ तेल सौदे का दावा भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का हिस्सा हो सकता है, खासकर जब भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापारिक रिश्ते लगभग न के बराबर हैं। साथ ही, यह सौदा चीन के प्रभाव को कम करने और दक्षिण एशिया में अमेरिका की स्थिति मजबूत करने का प्रयास भी है। हालांकि, पाकिस्तान के तेल भंडार की वास्तविकता संदिग्ध है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन भंडारों को विकसित करने में वर्षों और अरबों डॉलर का निवेश लगेगा। इसके अलावा, बलूचिस्तान जैसे क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियां और स्थानीय विरोध इस प्रोजेक्ट को जटिल बना सकते हैं।

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