
चीन ने पकड़ी ट्रंप की दुखती रग, F-35 विमानों की लग सकती है लंका; भारत की ओर क्यों देख रहा US?
संक्षेप: इस कदम के बाद अमेरिका ने कड़ा रुख अपनाया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आने वाले सामानों पर अतिरिक्त 100% शुल्क लगाने और महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर पर निर्यात नियंत्रण लगाने की धमकी दी है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों पर चीन ने एक बार फिर करारा प्रहार किया है। रेयर अर्थ के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की धमकी देकर बीजिंग ने वाशिंगटन की कमजोरी को निशाना बनाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अमेरिका के एडवांस हथियार कार्यक्रम, खासकर F-35 लड़ाकू विमानों की उत्पादन श्रृंखला प्रभावित हो सकती है। ऐसे में, अमेरिका अब चीन का मुकाबला करने के लिए एक बार फिर भारत का नाम ले रहा है।
ट्रंप की 'दुखती रग' - रेयर अर्थ का संकट
ट्रंप प्रशासन ने पिछले कुछ महीनों में चीन के खिलाफ नए टैरिफ लगाए है, जिसके जवाब में चीनी सरकार ने रेयर अर्थ के निर्यात पर रोक लगाने का संकेत दिया है। दुर्लभ मिट्टी 17 रासायनिक तत्वों का समूह है, जो इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक वाहनों, रिन्यूएबल एनर्जी और सैन्य उपकरणों के लिए आवश्यक है। विश्व का 80% से अधिक उत्पादन चीन के हाथों में है।बीबीसी के अनुसार, ट्रंप ने सोमवार को कहा, "चीन हमें लूट रहा है। हम दुर्लभ मिट्टी पर निर्भर नहीं रह सकते।" लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यह निर्भरता अमेरिका की रक्षा क्षमता को खतरे में डाल सकती है।
चीन ने दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर लगाई नई पाबंदियां
चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने पिछले सप्ताह “घोषणा संख्या 62, वर्ष 2025” नामक एक दस्तावेज जारी किया, जिसने ग्लोबल सप्लाई चैन में हलचल मचा दी है। इस दस्तावेज के तहत चीन ने दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर नई और कड़ी पाबंदियां लागू की हैं, जिससे बीजिंग ने इन महत्वपूर्ण संसाधनों पर अपनी पकड़ और मजबूत कर ली है।
क्या हैं नए नियम?
नई घोषणा के अनुसार अब कोई भी विदेशी कंपनी अगर ऐसे उत्पाद का निर्यात करना चाहती है जिसमें दुर्लभ खनिजों की थोड़ी-सी भी मात्रा शामिल है, तो उसे पहले चीन सरकार से मंजूरी लेनी होगी। साथ ही, कंपनियों को यह भी बताना होगा कि वे इन खनिजों का उपयोग किस उद्देश्य से करने वाली हैं।
अमेरिका की तीखी प्रतिक्रिया, भारत की ओर रुख
इस कदम के बाद अमेरिका ने कड़ा रुख अपनाया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आने वाले सामानों पर अतिरिक्त 100% शुल्क लगाने और महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर पर निर्यात नियंत्रण लगाने की धमकी दी है। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा, “यह चीन बनाम दुनिया है। उन्होंने ग्लोबल सप्लाई चैन और फ्री वर्ल्ड के औद्योगिक ढांचे पर तोप तान दी है, और हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे।”
इस हफ्ते वाशिंगटन में वैश्विक आर्थिक प्रमुखों की वार्षिक बैठक में रेयर अर्थ सप्लाई चैन पर चीन के फैसले पर चर्चा जोरदार रही। वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने एक उभरते गठबंधन का संकेत देते हुए कहा कि अमेरिकी अधिकारी "हमारे यूरोपीय सहयोगियों, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत और एशियाई लोकतंत्रों के साथ बातचीत कर रहे हैं," ताकि एक व्यापक प्रतिक्रिया तैयार की जा सके। यहां दिलचस्प बात ये है कि अमेरिका पहले से ही भारत के खिलाफ अपने ऐक्शन के संदेह के दायरे में है। ट्रंप सरकार ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाया है जो दुनिया में ब्राजील के साथ सबसे ज्यादा है।
चीन का जवाब
चीन ने कहा कि अमेरिका ने “अनावश्यक भ्रम और घबराहट” पैदा की है। वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “अगर निर्यात लाइसेंस के आवेदन नियमों के अनुसार होंगे और नागरिक उपयोग के लिए होंगे, तो उन्हें मंजूरी दी जाएगी।”
व्यापार युद्ध में फिर आग
दोनों देशों ने इस सप्ताह एक-दूसरे के जहाजों पर नए बंदरगाह शुल्क भी लगा दिए हैं। इससे मई में बनी अस्थायी टैरिफ ट्रूस यानी अस्थायी युद्धविराम समाप्त हो गया है। ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस महीने के अंत में मिलने वाले हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अब चीन की यह चाल उसे बातचीत में बढ़त दिला सकती है।
वैश्विक सप्लाई पर असर
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया की Edith Cowan यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर नॉइस मैकडोनाह का कहना है कि चीन का यह फैसला अमेरिकी सप्लाई चेन पर सीधा हमला है- “यह निर्णय सिस्टम को झकझोर देगा और अमेरिकी वार्ता की टाइमलाइन को बिगाड़ देगा।” दुर्लभ खनिजों का उपयोग सोलर पैनल, इलेक्ट्रिक वाहनों और सैन्य उपकरणों तक में होता है। उदाहरण के तौर पर, एक F-35 लड़ाकू विमान में लगभग 400 किलोग्राम दुर्लभ खनिजों का इस्तेमाल होता है।
F-35 कार्यक्रम पर संकट का साया
F-35 दुनिया का सबसे महंगा और ताकतवर लड़ाकू विमान है। यह रेयर अर्थ पर बुरी तरह निर्भर है। इसके इंजन, रडार और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम में ये तत्व इस्तेमाल होते हैं। लॉकहीड मार्टिन कंपनी, जो F-35 बनाती है, उसने स्वीकार किया है कि चीनी प्रतिबंध से उत्पादन में देरी हो सकती है। पेंटागन के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "यह हमारी वायुसेना की रीढ़ है। अगर सप्लाई चेन टूट गई, तो हमारी सैन्य ताकत कमजोर पड़ जाएगी।" अमेरिकी सेना के पास 2,000 से अधिक F-35 हैं, और 2025 तक 3,000 बनाने का लक्ष्य है। लेकिन चीन की धमकी से निवेशक चिंतित हैं।
चीन की पकड़ कितनी मजबूत है
दुनिया में दुर्लभ खनिज प्रसंस्करण के क्षेत्र में चीन की लगभग एकाधिकार जैसी स्थिति है। सलाहकार संस्था न्यूलैंड ग्लोबल ग्रुप की नताशा झा भास्कर के मुताबिक, चीन दुनिया के 70% दुर्लभ धातुओं की सप्लाई नियंत्रित करता है, जिनका उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों के मोटरों के मैग्नेट बनाने में होता है। चीन ने इस क्षेत्र में वर्षों तक निवेश कर अपना प्रभुत्व कायम किया है- उसने विशाल प्रतिभा नेटवर्क और अनुसंधान अवसंरचना विकसित की है, जो अन्य देशों से कई साल आगे है।
विकल्पों की तलाश में अमेरिका और सहयोगी देश
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देश चीन पर निर्भरता कम करने के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन सफलता अभी दूर है। ऑस्ट्रेलिया के पास अपने बड़े भंडार हैं, परंतु उसका प्रसंस्करण ढांचा अभी कमजोर है और लागत ज्यादा है। झांग कहती हैं, “अगर अमेरिका और उसके सभी सहयोगी मिलकर इसे राष्ट्रीय परियोजना बना भी लें, तो भी चीन की बराबरी करने में कम से कम पांच साल लगेंगे।”
चीन को आर्थिक नुकसान सीमित
हालांकि सितंबर में चीन के दुर्लभ खनिजों के निर्यात में 30% की गिरावट आई है, लेकिन इससे चीन की अर्थव्यवस्था पर कोई खास असर नहीं पड़ा है।
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर सोफिया कैलेंट्जाकोस के मुताबिक, इन निर्यातों का मूल्य चीन के 18.7 ट्रिलियन डॉलर के GDP का मात्र 0.1% से भी कम है। उन्होंने कहा, “आर्थिक रूप से भले ही यह छोटा क्षेत्र है, लेकिन रणनीतिक दृष्टि से इसका महत्व बहुत बड़ा है।”
विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने यह कदम ट्रंप-शी वार्ता से ठीक पहले उठाकर “बातचीत में बढ़त” हासिल कर ली है। नताशा भास्कर के अनुसार, “चीन ने अपने सभी मोहरे ठीक से सजाए हैं। दुर्लभ खनिजों पर नियंत्रण उसका सबसे प्रभावी दबाव हथियार है।” सिंगापुर मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी के जियाओ यांग के मुताबिक, हालांकि चीन फिलहाल मजबूत स्थिति में है, लेकिन अमेरिका के पास भी कुछ रणनीतिक विकल्प हैं- जैसे टैरिफ में कमी की पेशकश, जिससे बीजिंग को राहत मिल सकती है, या टेक्नोलॉजी निर्यात नियंत्रण को और सख्त बनाना।

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