खेलेंगे-कूदेंगे तो भी बनेंगे नवाब

Malay, Last updated: Wed, 5th Feb 2020, 1:29 PM IST
शिक्षा किसी भी बच्चे के विकास का आधार होती है। इसलिए अभिभावक इस पर जोर देते हैं। मगर खेलकूद भी बच्चों के लिए जरूरी है। खेलकूद से दूर रखकर बच्चों से सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई के लिए कहते रहना बिल्कुल सही...
प्रतीकात्मक तस्वीर

शिक्षा किसी भी बच्चे के विकास का आधार होती है। इसलिए अभिभावक इस पर जोर देते हैं। मगर खेलकूद भी बच्चों के लिए जरूरी है। खेलकूद से दूर रखकर बच्चों से सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई के लिए कहते रहना बिल्कुल सही नहीं ठहराया जा सकता। दोनों चीजों में संतुलन जरूरी है। शिक्षा के साथ-साथ खेलकूद संबंधी गतिविधियों में भी बच्चों को हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। यह उनके विकास में सहायक होगा।

पढ़ाई-लिखाई के महत्व को साबित करने के लिए अक्सर एक कहावत का सहारा लिया जाता है। वो कहावत है ‘खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब, पढ़ोगे-लिखागे तो बनोगे नवाब।’ इसमें कोई दोराय नहीं कि पढ़-लिखकर इंसान अच्छा नागरिक  बनता है। लेकिन, ऐसा करने के लिए खेलकूद से तौबा करने की जरूरत नहीं। जितनी जरूरत पढ़ाई-लिखाई की होती है, बच्चों के लिए खेलकूद भी उतना ही जरूरी है। आखिर मनोरंजन भी तो जिंदगी का हिस्सा होना चाहिए। खेलकूद बच्चे के व्यक्तित्व विकास में भी सहायक होते हैं। 

तो क्यों न हम अपने बच्चों को खेल-कूद से जोड़कर उनके शारीरिक और मानसिक विकास की सही नींव रखें। ऐसा विज्ञान का कहना है कि खेल-कूद में रुचि रखनेवाले बच्चों का विकास नवाब बनने के इच्छुक बच्चों की तुलना में कहीं ज्यादा संतुलित तरीके से होता है। आइए, बच्चों के विकास में खेलों की भूमिका के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानते हैं और यह भी पता करते हैं कि किस तरह बच्चों में खेलों के प्रति रुचि पैदा की जा सकती है। आखिर खेल ही तो हैं जो बच्चों को शारीरिक रूप से मजबूत बनाते हैं, नए दोस्त बनाने के लिए प्रेरित करते हैं, हंसी-हंसी में अनुशासन, टीम भावना सहित जूझने का जज्बा जो देते हैं। वहीं अगर बच्चे खेलों में सफल हुए तो शोहरत और दौलत भी उनका पीछा करते हुए आपके घर पहुंच जाएगी।

सीखते हैं दोस्ती का पाठ 
जो बच्चे नियमित रूप से खेलने जाते हैं वे नए दोस्त बनाना सीखते हैं। ऐसे बच्चे मोहल्ले और स्कूल के दोस्तों के बीच लोकप्रिय होते हैं। ऐसा देखा गया है कि खेलते समय बनने वाले दोस्त जिंदगी में लंबे समय तक साथ निभाते हैं। मैदानों पर होने वाली दोस्ती धर्म, जाति, रूप-रंग से परे होती है, जो कि अपने आप में किसी को बेहतर इंसान बनाने के लिए काफी है। बच्चे भेदभाव की भावना से ऊपर उठते हैं।

टीम भावना का विकास 
खेल हमें मिल-जुलकर खेलने, हार-जीत का जश्न साथ मिलकर मनाने की प्रेरणा देते हैं। बच्चों को यह बात बिना किसी भाषण के समझ में आ जाती है कि साथ रहकर हम बड़े से बड़ा काम बड़ी आसानी से कर सकते हैं। अपनी खुशी दूसरों से साझा करना और दूसरों की उपलब्धि पर खुश होना जैसी बेहद जरूरी बुनियादी बातें खेल बच्चों को सिखा देते हैं। हार-जीत को शालीनता से स्वीकार करना भी बच्चे खेल के माध्यम से सीखते हैं। सिर्फ अपनी टीम के साथियों की ही नहीं, प्रतिद्वंद्वियों का सम्मान करना भी खेल ही तो सिखाते हैं। इसलिए खेल-कूद से बच्चों को दूर न करें।

पढ़ाई में भी मिलती है मदद
चूंकि खेलों में भाग लेने वाले बच्चे अनुशासित होते हैं और उनकी एकाग्रता भी औरों से बेहतर होती है, अक्सर ऐसे बच्चे पढ़ाई में भी अच्छे होते हैं। वे चीजों को जल्दी समझते हैं। उनका दिमाग समस्या को सही तरह से सुलझाने में सक्षम होता है। 
तनाव से निपटना सीखते हैं
खेल के चलते बच्चे शारीरिक रूप से फिट होते हैं। पढ़ाई के अलावा दूसरी गतिविधि में अच्छा करने के कारण वे स्वाभिमानी होते हैं। शारीरिक और मानसिक रूप से तंदुरुस्ती उन्हें खुशमिजाज बना देती है। मैदान पर तनाव से दो-चार होते हैं, वे तनाव से निपटना सीख जाते हैं।

आती है अनुशासन की भावना
किसी न किसी खेल से जुड़े बच्चे दूसरों की तुलना में कहीं अधिक अनुशासित होते हैं। इतना ही नहीं वे नियमों का पालन करने, साथियों की इज्जत करने, छोटों की हौसलाफजाई में भी काफी आगे होते हैं। हारने के बाद जीतने के लिए वे और अधिक मेहनत करते हैं। यह बात उन्हें जीवन के दूसरे क्षेत्रों में भी काम आती है।

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