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जब साथी बन जाए जीवनसाथी

शादी से पहले की दुनिया किसी भी लड़के-लड़की के लिए किसी हसीन ख्वाब से कम नहीं होती है। तब उनका दिल केवल सतरंगी सपने ही देखना चाहता है। उस समय तो साथी से वे जितनी बार भी मिलते हैं, वह खास ही लगता है।...

जब साथी बन जाए जीवनसाथी
नई दिल्ली, स्मार्ट डेस्कWed, 15 May 2019 06:28 PM
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शादी से पहले की दुनिया किसी भी लड़के-लड़की के लिए किसी हसीन ख्वाब से कम नहीं होती है। तब उनका दिल केवल सतरंगी सपने ही देखना चाहता है। उस समय तो साथी से वे जितनी बार भी मिलते हैं, वह खास ही लगता है। उसमें कोई कमी नजर नहीं आती है।

शादी से पहले प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे से कम समय के लिए ही मिल पाते हैं, शादी के बाद दोनों साथ में अधिक समय बिताते हैं, तो कुछ भी छिपा पाना असंभव हो जाता है और सारी परतें एक-एक करके खुल जाती हैं। इसलिए दोनों को लगता है कि शादी के बाद उनका साथी बदल गया है। एक-दूसरे को जानने-समझने का अवसर शादी के बाद ही उन्हें मिल पाता है। शादी से पहले की बेफिक्री और मौज-मस्ती पर जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ता है।

सामने आता है असली रूप
शादी होते ही उन्हें अपने इस रिश्ते को संभालने का एहसास घेर लेता है, जबकि पहले यह ख्याल तक नहीं आता कि संबंध टूट गया, तो क्या होगा, क्योंकि तब किसी तरह की वचनबद्धता से वे बंधे नहीं होते हैं। मनोचिकित्सक डॉ. अजय निहलानी के अनुसार, डेटिंग के दौरान प्रेमी-प्रेमिका को हर चीज में रोमांच व एक्साइटमेंट नजर आता है। उस समय उन्हें एक-दूसरे का व्यवहार कभी खटकता भी हो, तो भी वे प्यार में डूबे होने के कारण उसे नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन विवाह के बाद नजदीकियां उन्हें अपना असली स्वभाव सामने लाने पर विवश कर देती हैं और फिर शुरू हो जाता है, तानों-उलाहनों, एक-दूसरे को बदलने व अपनी इच्छा थोपने का दौर।

उम्मीदों पर खरा न उतरना
प्रेमी-प्रेमिका शादी होते ही एक-दूसरे को अपनी सुविधा व पसंद के अनुसार बदलने में जुट जाते हैं। डॉ. निहलानी कहते हैं कि पति बनते ही उसके अंदर पत्नी पर अधिकार जमाने की भावना जन्म ले लेती है। वह किससे बात करती है, किससे मिलती है, सब जानने की उत्सुकता उसे एक प्रहरी बनने को उकसाती है। ऐसे में जब वह उसकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती, तो मन-मुटाव होते देर नहीं लगती।

नियंत्रण की चाह
जिस प्रेमी को पहले प्रेमिका का हर अंदाज आकर्षित करता था, वही पत्नी बनने के बाद अखरने लगता है। पत्नी पर हावी होने, अपनी मनमानी जताने की कोशिश करता है। पत्नी को घर आने में देर हो जाती है, तो सवालों के साथ-साथ उस पर शक करने में भी पति को हिचकिचाहट नहीं होती।

इन बातों पर ध्यान दें
बेहतर तो यही होगा कि पति-पत्नी के रिश्ते में बंधते ही दोनों नई स्थितियों व जिम्मेदारियों को परिपक्वता से संभाल लें। इस तरह न अपेक्षाएं रहेंगी और न नियंत्रण करने की चाह।
यह सोचना कि अब उनके बीच प्यार नहीं रहा है, गलत है। प्यार उनके बीच तब भी बरकरार होता है, केवल अभिव्यक्ति के तरीके व अवसर कम हो जाते हैं
परिवार बनने के साथ सोच और माहौल में बदलाव आना स्वाभाविक ही है। यह बदलाव व्यावहारिकता का प्रतीक होता है और जो पति-पत्नी ऐसा नहीं करते, उन्हें बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है
आवश्यकता है कि प्यार को बरकरार रखते हुए अपने साथी की भावनाओं का सम्मान करें
पहले अगर वह आपकी बात मान लेता था, तो कोई वजह नहीं कि शादी के बाद न माने
पति-पत्नी के रिश्ते में ताजगी व रूमानियत बनाए रखनी हो तो जरूरी है कि दोनों अपने संबंधोंं में अहम न आने दें
पहले की तरह हफ्ते में दो दिन न सही, महीने में एक बार तो खाना बाहर खाया ही जा सकता है
यह सच है कि कोर्टशिप के दिनों की मस्ती बनी रहे, यह संभव नहीं है, लेकिन एक-दूसरे को बदलने या नियंत्रित करने की कोशिश करने की बजाय पति-पत्नी की भूमिका में भी भरपूर लगाव व रूमानियत को तो बनाए ही रखा जा सकता है 

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