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मौसम के अनुसार हों यौगिक क्रियाएं

मौसम में बदलाव के साथ हमारे शरीर में भी बदलाव होते हैं। इन दोनों बदलावों में संतुलन रखने से हमारी प्रतिरोधक क्षमता ठीक रहती है तथा शरीर स्वस्थ बना रहता है। इसके विपरीत आचरण करने से शरीर अस्वस्थ हो...

मौसम के अनुसार हों यौगिक क्रियाएं
नई दिल्ली स्मार्ट टीमSat, 09 May 2020 04:40 PM
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मौसम में बदलाव के साथ हमारे शरीर में भी बदलाव होते हैं। इन दोनों बदलावों में संतुलन रखने से हमारी प्रतिरोधक क्षमता ठीक रहती है तथा शरीर स्वस्थ बना रहता है। इसके विपरीत आचरण करने से शरीर अस्वस्थ हो जाता है। यौगिक जीवनशैली अपनाने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता इतनी बढ़ जाती है कि शरीर मौसम के हिसाब से अपने को समायोजित कर लेता है। 

बदलते मौसम में खुद को स्वस्थ रखने के लिए आपको यौगिक क्रियाओं के अभ्यास में भी कुछ बदलाव करने चाहिए या कुछ नयी यौगिक क्रियाएं और अपनानी चाहिए। अशक्त, कमजोर, वृद्ध तथा प्रारम्भिक योग अभ्यासी केवल सूक्ष्म व्यायाम का प्रतिदिन प्रात:काल तथा सायंकाल दोनों समय अभ्यास करें। धीरे-धीरे क्षमता में वृद्धि के साथ अपने अभ्यास में सरल आसन जैसे ताड़ासन, त्रिकोणासन, तितली आसन, शशांकासन, उष्ट्रासन, मेरूवक्रासन, गोमुखासन, जानुशिरासन, सुप्त वज्रासन, पवनमुक्तासन तथा धनुरासन आदि को जोड़ते जाएं। दीर्घकाल से अभ्यास करने वाले साधक अपने अभ्यास में कठिन आसन जैसे नौकासन, चक्रासन, शीर्षासन, भुजंगासन, मयूरासन आदि जोड़ सकते हैं।

कैसा रखें आहार
मौसम के बदलते समय यदि हम अपने आहार को शुद्ध, सात्विक तथा प्राकृतिक कर लें तो रोग आने की आशंका लगभग 50 प्रतिशत कम हो जाती है। इस समय यदि एक-दो दिन एकाहार कर लें तो पाचनशक्ति पर भार कम हो जाता है, जिससे प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है। आहार में तरल पदार्थ अधिक लें। फल तथा हरी सब्जियों का सेवन पर्याप्त मात्रा में करें। तले, भुने, मिर्च-मसालेदार भोजन और धूम्रपान आदि से बचें।

पवनमुक्तासन 
पीठ के बल जमीन पर लेट जाएं। दो गहरी श्वास-प्रश्वास लें। इसके बाद दाएं पैर को घुटने से मोड़कर इसे दोनों हाथों की हथेलियों से पकड़कर छाती की तरफ लाने का प्रयास करें। इसके बाद सिर को ऊपर उठाकर माथा या नाक को घुटने से स्पर्श करने का प्रयास करें। किन्तु ऐसा जबरदस्ती नहीं करना है। इस अवस्था में श्वास-प्रश्वास को सामान्य रखते हुए आरामदायक अवधि तक रुकें। इसके बाद वापस पूर्व स्थिति में आएं। यही क्रिया बाएं पैर से भी करें। फिर दोनों पैरों से एक साथ करें। यह पवनमुक्तासन की एक आवृत्ति है। इसकी पांच से सात आवृत्तियों का अभ्यास करें। जिन्हें सवाईकल स्पॉन्डिलाइटिस हो, वे इस आसन के अभ्यास में सिर न उठाएं। शेष सारी क्रियाएं यथावत करें। हार्निया के रोगी इसका अभ्यास न करें। 

भस्त्रिका प्राणायाम 
ध्यान के किसी भी आसन जैसे पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन में रीढ़, गले व सिर को सीधा करके बैठ जाएं। दोनों हाथ की हथेलियों को घुटनों पर स्थिरतापूर्वक रख लें। दो-तीन गहरी श्वास-प्रश्वास लेकर चेहरे को ढीला तथा हल्का छोड़ दें। अब दोनों नासिका से लम्बी, गहरी तथा हल्के झटके से श्वास बाहर निकालें और झटके से ही अंदर भी लें। यह भस्त्रिका प्राणायाम की एक आवृत्ति है। इसके लगातार 20 से 25 आवृत्तियों का एक साथ अभ्यास करें। यह भस्त्रिका प्राणायाम का एक चक्र है। प्रारम्भ में 20 से 25 आवृत्तियों के एक चक्र का अभ्यास करें। धीरे-धीरे आवृत्तियों को 50 तक ले जाएं। इसी तरह धीरे-धीरे चक्रों की संख्या भी बढ़ाते जाएं। उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, हर्निया तथा अन्य गंभीर रोग से ग्रस्त लोगों को इसका अभ्यास योग्य मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।

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