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दिन में सुस्ती और आलस्य से अल्जाइमर का खतरा

अक्सर ऐसे लोग देखने को मिलते हैं, जिन्हें दिन में काफी सुस्ती आती है, ये लोग कार्यालय या कक्षा  में कभी भी झपकी लेते रहते हैं। एक अध्ययन में कहा गया है कि ऐसे लोगों में भूलने की बीमारी अल्जाइमर...

दिन में सुस्ती और आलस्य से अल्जाइमर का खतरा
लाइव हिन्दुस्तान टीम,पटनाThu, 02 May 2019 10:20 PM
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अक्सर ऐसे लोग देखने को मिलते हैं, जिन्हें दिन में काफी सुस्ती आती है, ये लोग कार्यालय या कक्षा  में कभी भी झपकी लेते रहते हैं। एक अध्ययन में कहा गया है कि ऐसे लोगों में भूलने की बीमारी अल्जाइमर होने का खतरा अधिक रहता है। यह अध्ययन अमेरिका स्थित जॉन हॉप्किन्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है।
इस शोध में दावा किया गया है कि जो लोग दिन के समय सुस्ती और नींद महसूस करते हैं, उनमें उन लोगों के मुकाबले भूलने की बीमारी होने का तीन गुना ज्यादा खतरा होता है, जो रात को अच्छी नींद लेते हैं। इस अध्ययन से  पता चला है कि अगर आपको दिन में सुस्ती और नींद आती है, तो आप अल्जाइमर का शिकार हो सकते हैं।

तकरीबन 10 साल तक चले अध्ययन के लिए कुछ उम्रदराज लोगों का परीक्षण किया गया। इसमें पता चला कि जिन लोगों को दिन के वक्त सुस्ती या आलस्य महसूस हो रहा था, उनमें अल्जाइमर होने का खतरा तीन गुना अधिक था। ऐसे लोगों के दिमाग में बीटा अमायलॉइड नाम का एक प्रोटीन पाया गया। यह प्रोटीन अल्जाइमर की बीमारी की पहचान है। सेफ्टी एंड सिक्योरिटी फॉर जेनरेशन्स के भी एक सर्वे में पता चला है कि भूलने की यह बीमारी हार्टअटैक और कैंसर से भी ज्यादा तेजी से फैल रही है। वर्ष 2010 से 2013 के बीच ऐसे लोगों की संख्या में अच्छा खासा इजाफा हुआ है। 

अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बेरी गॉर्डन का कहना है कि यह बीमारी बड़ी तेजी से लोगों में फैल रही है। इसकी एक वजह कार्यालय में काम का अत्यधिक दबाव और जल्दी सफलता पाने का जुनून भी हो सकता है। स्लीप जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन ने उन खबरों को पुख्ता कर दिया है, जिनमें  कहा जाता रहा है कि कम नींद लेने से अल्जाइमर जैसी परेशानी हो सकती है। जॉन हॉप्किन्स के ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में एसोसिएट प्रोफेसर एडम पी. स्पाइरा ने कहा कि अगर कम नींद से अल्जाइमर होने का खतरा अधिक रहता है, तो फिर हम ऐसे मरीजों का इलाज कर सकते हैं, जिन्हें कम नींद आती है।

कैसे लोग हैं ज्यादा पीड़ित
मध्यम उम्र के व्यक्तियों में इस समस्या से ग्रस्त होने का खतरा ज्यादा रहता है। काम की अधिकता के कारण जो लोग खुद के लिए जरा सा भी वक्त नहीं निकाल पाते, उनमें यह बीमारी ज्यादा पाई जाती है। जॉन हॉप्किन्स के ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ केप्रोफेसर एडम पी. स्पाइरा के मुताबिक, अभी तक यह पता नहीं चला है कि दिन के वक्त नींद महसूस करने को बीटा अमायलॉइड प्रोटीन के जमा होने से जोड़कर क्यों देखा जा सकता है। एक संभावित कारण यह भी हो सकता है कि दिन में सुस्ती महसूस करने की वजह से ही यह प्रोटीन दिमाग में बन जाता हो। 

वहीं, एक ताजा शोध में वैज्ञानिकों ने कहा है कि उम्र के साथ शारीरिक रूप से कमजोर होने वाले लोगों के अल्जाइमर की चपेट में आने का खतरा ज्यादा होता है। कनाडा के डलहौजी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर केनेथ रॉकवुड के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने 450 से अधिक लोगों पर शोध किया है। प्रोफेसर रॉकवुड ने कहा कि शारीरिक रूप से कमजोर लोगों के दिमाग से भी कमजोर होने की आशंका अधिक होती है। उन्होंने कहा कि उम्र के साथ शारीरिक रूप से कमजोर पड़ने वाले लोग बढ़ती उम्र में मस्तिष्क में मामूली बदलाव से भी लड़ने में अक्षम होते हैं और उनके अल्जाइमर की भी चपेट में आने का ज्यादा खतरा होता है। शोध में एक तिहाई ऐसे लोगों को डिमेंशिया की चपेट में पाया गया, जिनमें मस्तिष्क की कमजोरी नहीं थी, लेकिन वे शारीरिक रूप से बेहद कमजोर थे।

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