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कृत्रिम तरीके से संभव होगा याद्दाश्त को बढ़ाना

तमाम तरह के तनावों को झेलते हुए मानव मस्तिष्क अनेक उलझनों का सामना करता रहता है। इसका असर उसकी याद्दाश्त क्षमता पर भी पड़ रहा है। हाल ही में किए गए एक शोध में यह बात सामने आई है कि कृत्रिम रूप से...

कृत्रिम तरीके से संभव होगा याद्दाश्त को बढ़ाना
नई दिल्ली, स्मार्ट डेस्कSun, 15 Sep 2019 02:42 PM
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तमाम तरह के तनावों को झेलते हुए मानव मस्तिष्क अनेक उलझनों का सामना करता रहता है। इसका असर उसकी याद्दाश्त क्षमता पर भी पड़ रहा है। हाल ही में किए गए एक शोध में यह बात सामने आई है कि कृत्रिम रूप से याद्दाश्त को बढ़ाना अब जल्द ही संभव होगा। इससे अनेक मनोविकारों का उपचार भी हो सकेगा। 

मानव मस्तिष्क प्रकृति का सबसे जटिल तंत्र है। मस्तिष्क ही हमारी सारी शारीरिक और मानसिक गतिविधियों का केंद्र है। ब्रह्मांड से मिलने वाली तमाम दिव्य ऊर्जा व्यक्ति मस्तिष्क के जरिए ही प्राप्त करता है। अगर व्यक्ति यह ऊर्जा नहीं प्राप्त करे, तो उसका जीना असंभव हो जाएगा। मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का विकार होने पर हम मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार हो जाते हैं। विकार के कारण चिंता, अवसाद, आघात जैसी कई बीमारियां पैदा होती हैं। भागदौड़ वाले इस आधुनिक जमाने में इन बीमारियों का दायरा काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है। सदियों से मस्तिष्क के विभिन्न कायार्ें को लेकर दुनिया भर में अनुसंधान होते रहे हैं। मेडिकल क्षेत्र के साथ-साथ मनोविज्ञान जैसे कई क्षेत्रों में भी काफी खोज किए जा रहे हैं।  

नई खोज में याददाश्त 
मस्तिष्क पर एक ऐसा ही नवीनतम अनुसंधान विश्व के कई संगठनों ने मिलकर किया है। इस शोध का निष्कर्ष करंट बायोलॉजी नामक शोधपत्र में प्रकाशित किया गया है। इस शोध के अनुसार, व्यक्ति की सकारात्मक याद्दाश्त को बढ़ाकर या नकारात्मक याददाश्त को घटाकर चिंता, अवसाद और आघात जैसी मस्तिष्क से संबंधित बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। इससे व्यक्ति की याद्दाश्त को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है। हालांकि अभी यह अनुसंधान चूहों पर किया गया है, जो सफल हुआ है।

नई तकनीक और सफलता
आप्टोजेनेटिक्स तकनीक का इस्तेमाल कर ब्राइन चेन और रैमिरेज ने चूहों के हिप्पोकैम्पस में कोशिकाओं का अध्ययन किया। याद्दाश्त निर्माण प्रक्रिया के अंग के रूप में कोशिकाओं की पहचान करते हुए वे याद्दाश्त को कृत्रिम रूप से क्रियाशील बनाने में सक्षम हो गए। बाद में याद्दाश्त कोशिकाओं को लेजर से क्रियाशील किया गया। उनके अध्ययन उजागर करते हैं कि हिप्पोकैम्पस के निचले और ऊपरी हिस्से की भूमिका क्या होती है। हिप्पोकैम्पस के ऊपरी भाग को क्रियाशील बनाना एक्सपोजर थेरेपी जैसा काम करता है। हिप्पोकैम्पस के निचले भाग को क्रियाशील करने से दर्द और अवसाद संबंधित व्यवहार में परिवर्तन हो सकते हैं।  यदि कमजोर हो रही यादें भावनात्मक रूप से परिपूर्ण हो जाएं, तो मस्तिष्क के निचले भाग को क्रियाशील किया जा सकता है। यह इशारा करता है कि हिप्पोकैम्पस के निचले भाग में अति क्रियाशीलता को दबाकर पीटीएसडी और अवसाद विकार को ठीक किया जा सकता है।

याद्दाश्त में फेरबदल का क्षेत्र 
याद्दाश्त में हेरफेर करने का क्षेत्र अभी एकदम नया है। यह वैज्ञानिक काल्पनिक कहानियों जैसा है। रैमिरेज कहते हैं कि कृत्रिम रूप से याद्दाश्त को बढ़ाने की क्षमताओं के बारे में यह अध्ययन एक रूपरेखा प्रस्तुत करता है। इसके इस्तेमाल का अभी लम्बा रास्ता तय करना है।  

सामने ला सकते हैं याद्दाश्त 
करंट बायोलॉजी में एक नए शोध पत्र में रैमिरेज और कोलाबोरेटरों की टीम ने यह दिखाया है कि यदि आप जानते हैं कि हिप्पोकैम्पस के किस क्षेत्र को जागृत करना है, तो इनसे खास तरह की याद्दाश्त से परेशान व्यक्ति का विशेष इलाज संभव हो सकता है। कोलम्बिया विश्वविद्यालय में अवसाद पर शोध करने वाले और शोधपत्र के पहले लेखक ब्राइन चेन कहते हैं कि कई मनोवैज्ञानिक विकार खासकर पीटीएसडी-पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर इस तथ्य पर आधारित है कि हादसे के अनुभव के बाद मरीज चलने-फिरने में असहाय हो जाते हैं, क्योंकि हादसे का भय उन्हें सताता रहता है। शोधपत्र के वरिष्ठ लेखक रैमिरेज कहते हैं कि किस प्रकार हादसे की यादें, जो पीटीएसडी के मूल में होती हैं, भावनात्मक रूप से बोझिल हो जाती हैं।

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