फोटो गैलरी

Hindi Newsभूटान: बड़े दिलवालों का देश

भूटान: बड़े दिलवालों का देश

अपना ही छोटा-सा पड़ोसी देश है भूटान। लेकिन वहां की संस्कृति, लोगों का रहन-सहन, तौर-तरीकेे सब अलहदा। राजशाही है और मातृसत्तात्मक समाज। प्राकृतिक खूबसूरती ऐसी कि आप देखते ही रह  जाएं। कहने को यह...

भूटान: बड़े दिलवालों का देश
मलिक राजकुमारMon, 20 May 2019 09:00 AM
ऐप पर पढ़ें

अपना ही छोटा-सा पड़ोसी देश है भूटान। लेकिन वहां की संस्कृति, लोगों का रहन-सहन, तौर-तरीकेे सब अलहदा। राजशाही है और मातृसत्तात्मक समाज। प्राकृतिक खूबसूरती ऐसी कि आप देखते ही रह  जाएं। कहने को यह गरीब देश है, लेकिन यहां लोगों के दिल बड़े हैं

व्यक्ति प्राकृतिक रूप से ही विलासी है, इसी कारण वह निरंतर यात्रा में रहता है। इन सभी के बीच उसके अंदर कुछ ऐसा होता है जिसे दूसरों से साझा करना उसे जरूरी लगता है।

बस उसी आदत के कारण मेरी भूटान यात्रा के कुछ अनुभव यहां साझा हो रहे हैं। निरंतर बीस वर्ष भारत भ्रमण करने के बाद लगा कि भूटान यात्रा करनी चाहिए, वीसा लेना नहीं होगा। भाषा और मुद्रा की परेशानी नहीं। अलीगढ़ के देवेंद्र अरोड़ा, थिंफू में एक स्कूल अध्यापक हैं। उनकी बीवी मायके गई है। बस काफी है देवेंद्र भाई, हम तीन मित्र हैं, मैं, प्रो. सादिक और समधी रामकिशन शर्मा...अड्डा तुम्हारे घर पर रहेगा। कोई चिंता नहीं, खाना बनाना, मौज-मस्ती सब हमें आता है। बस गेदू में दो दिन गेस्ट हाउस बुक करा दो...चार दिन थिंफू घूमेंगे और बीच में ‘पारो’ की खूबसूरती भी देख लेंगे।

देवेंद्र का सीमित जवाब, ‘भायाजी आप आओ तो सही! सब हो जाएगा।’ राजधानी ने दिल्ली से अलीपुर द्वार उतार दिया। आठ सौ रुपये में टैक्सी फुंटशलिंग ले गई। जब घड़ी ने पांच बजाए,अब इनर लाइन परमिट नहीं बनेगा। कहां जाएं? अधिकारी से पूछा, तो वह बोला, “सर, यहीं फुंटशलिंग में रहिए या गेट पार जयगांव में, एक ही बात है। वाह सड़क पर द्वार और फुंटशलिंग भूटान में, जयगांव भारत में! लोग बिना रोक-टोक आ रहे हैं, टैक्सियां भी। पाकिस्तान के लिए तो शायद चूहे को भी वीजा लगवाना होगा जो उनकी ऐंबेसीवाले लगाकर नहीं देंगे। जो कल तक हमारा ही अंग था, आज दुश्मनी से भरा हुआ। मगर कहीं कोई शर्मिंदगी का अहसास तक नहीं।” लगभग हर होटल-गेस्ट हाउस कोई-न-कोई भारतीय ही चला रहा है, लीज पर ले रखा है। हमने जहां कमरा लिया उसे जैन साहब चलाते हैं। मांस-शराब सब परोसते हैं। काउंटर पर पीछे शराब की अलमारियां हैं। ऊपर राधाकृष्ण जुगल चित्र। आस्था नाम की चिड़िया शायद यहां परवाज नहीं लेती।

चलो यार घूम लिया जाए। जब तक प्रकाश है फुंटशलिंग, फिर जयगांव। सुबह तो गेदू के लिए रवानगी है। रामकिशन शर्मा मस्त हैं; प्रो. सादिक पान की दुकानों पर पैग के हिसाब से बिकती शराब देख आश्चर्यचकित हैं। मतलब यहां शराब बेरोकटोक और खूब पी जाती है। महिलाएं भी सेवन करती हैं, कोई झिझक नहीं।

रोशनी की चमक-दमक, मॉल, शोरूम, दुकानें प्राय: भूटानी कला और हैंडिक्राफ्ट से भरी हुईं, साथ ही विदेशी सामान की भरमार...,यहां सस्ता है, एक्साइज नहीं लगती। ‘यार फोन का सिम ही ले लिया जाए...लो जी, परिचय-पत्र व भुगतान और फोन चालू!’ भारतीय रुपया दो या भूटानी; कोई अंतर नहीं, कोई मना नहीं करता। आश्चर्यजनक, शाम गहरा चुकी है। सड़कों पर कहीं कचरे का नामोनिशान नहीं है। नौकरियों में लड़कियां अधिक हैं, शिक्षा दसवीं या बारहवीं तक, पर तनख्वाह तीस-पैंतीस हजार। जी हां यहां का विधान है भूटानी लोगों को इतनी ही तनख्वाह देनी होगी। फूल-पौधे, वनस्पतियां। कुल मिलाकर एक खूबसूरत शहर का नजारा।

सुबह नाश्ते के बाद गेदू के लिए टैक्सी ली। सात सौ पचास रुपये रास्ते में परमिट की चेकिंग हुई बस। साफ-सुथरा, हरा-भरा पहाड़ी रास्ता मनमोहक और शांति देनेवाला। जल्दी ही गेदू पहुंच गए। छोटा-सा कस्बा। कॉलेज के थापा गेस्ट हाउस में हमारा कमरा बुक है। कोई परेशानी नहीं, सामान रखा और निकल पड़े गेदू भ्रमण के लिए। नीचे की सड़क से अब हम मुख्य सड़क पर हैं।

सामने इंडियन ऑयल पेट्रोल पंप है। चारों ओर सिर्फ खूबसूरती ही निवास करती है। जिस ओर कदम बढ़ाओ सुंदरता से ही भेंट होगी। बाजार, सड़कें, दुकानों पर सामान देखकर आप कह ही नहीं सकते  कि आप भारत के किसी कस्बे में नहीं हैं, पर सफाई और लोगों का मृदु व्यवहार और विराजनी शांति आपको बताती हैं कि आप भूटान के एक कस्बे में हैं। दूसरे दिन दिल्ली के ही प्राध्यापक से मिलने आए उपकुलपति ने सिगरेट का धुआं महसूस करते ही पूछा...‘किसने सिगरेट पिया?’ मैं अभी-अभी बाहर सिगरेट पीकर हॉल में घुसा ही था। सहज ही कहा, “मैंने.. .,” वे मुस्कुराए, परिचय हुआ और चले गए। बाद में जब सात दिन बाद लौट रहे थे तब पता चला कि भूटान में सिगरेट पीना अवैध है। जुर्माना होता है कुल दस हजार रुपये।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें