आजमगढ़। शांति को काम की तलाश थी वह घर में बेरोजगार बैठी थी। गांव में एनआरएलएम के तहत समूह बन रहा था। समूह से जुड़ने का फायदा पता चला तो उसने भी अपने को समूह से जोड़ लिया। उनकी काबिलियत देख बैंक सखी के रूप में चयन हो गया। अब वह महिलाओं को बैंक से सबंधित जानकारी के लिए जागरूक करती हैं। लोगों को स्वरोजगार के लिए ऋण की जानकारी देती हैं। समूह के लोगों को जागरूक करती हैं। शांति ने आस पास के गांव की माहिलाओं को जागरूक कर दो दर्जन महिलाओं का संगठन खड़ा किया। महिलाओं को जागरूक कर उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया। एक दर्जन से अधिक महिलाओं को स्वरोजगार के लिए बैंक से ऋण उपलब्ध कराया। उनकी बैंक संबंधी खातों का पूरा देख रेख करती हैं। महिलाए स्वरोजगार कर आत्मनिर्भर बन गई हैं।
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