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दिल्ली के नाटकों ने बहुत कुछ सिखाया मुझे : जीशान अय्यूब

भले ही लोग जीशान अय्यूब को उनकी फिल्मों की वजह से जानते हैं, लेकिन उनका मानना है कि अभिनय की बारीकियां उन्होंने रंगमंच से सीखीं। उन्होंने अपना पहला नाटक 12 साल की उम्र में किया था, जो बैरी कीफ के...

दिल्ली के नाटकों ने बहुत कुछ सिखाया मुझे : जीशान अय्यूब
कविता अवस्थी । नई दिल्ली Fri, 26 Jul 2019 07:28 PM
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भले ही लोग जीशान अय्यूब को उनकी फिल्मों की वजह से जानते हैं, लेकिन उनका मानना है कि अभिनय की बारीकियां उन्होंने रंगमंच से सीखीं। उन्होंने अपना पहला नाटक 12 साल की उम्र में किया था, जो बैरी कीफ के नाटक ‘गोटचा’ र्का  ंहदी रूपांतरण था। रांझणा (2013), तनु वेड्स मनु रिटन्र्स (2015) और रईस (2017) जैसी कई और फिल्मों में अपने अभिनय के लिए सराहना पाने वाले अभिनेता जीशान कहते हैं, ‘कॉलेज के समय से ही मैं थिएटर को समझने लगा था और इसका आनंद लेना शुरू कर दिया था।’ जीशान के माता-पिता दिल्ली में स्टेज कलाकार थे। इसको लेकर वह कहते हैं, ‘चूंकि मेरे माता-पिता  थिएटर से जुड़े थे, इसलिए उसका प्रभाव मेरे करियर चुनने की राह पर भी पड़ा। जब मैं दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में विज्ञान की पढ़ाई कर रहा था, तभी मेरे पिता को लगा कि व्यक्तित्व विकास के लिए मुझे किसी रंगमंच कार्यशाला में शामिल होना चाहिए। इसके बाद से ही मैं रंगमंच की कार्यशाला में हिस्सा लेने लगा था। इससे जीवन को देखने के मेरे नजरिए में काफी बदलाव आया। रंगमंच की ताकत अद्वितीय है। हर बार जब आप एक नाटक पर काम करते हैं, तो आपको उस किरदार के लिए अपने समय और ऊर्जा के साथ खुद को भी उसमें झोंक देना पड़ता है। इसलिए हर  नाटक महत्वपूर्ण हो जाता है। मैं अपने पहले नाटक को कभी नहीं भूल सकता। तब मैं 12 साल का था, जब मैंने बैरी कीफ के नाटक ‘गोटचा’ के हिंदी रूपांतरण में काम किया।’ 

किरोड़ीमल कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद जीशान ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में दाखिला लिया। हालांकि यहां पहली बार में उनका दाखिला नहीं हो सका था, लेकिन उन्होंने अपनी कोशिश जारी रखी और दूसरी बार फिर कोशिश की। और इस बार उनका दाखिला हो गया। जीशान कहते हैं, ‘इसके बाद मैंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में आठ नाटक किए। इस दौरान यहां मुझे अभिनय की बारीकियों के बारे में बहुत कुछ सिखाया गया। हमने ओपेरा सहित कई शैलियों का प्रदर्शन किया। कई बार मेरे सीनियर्स मेरे प्रदर्शन से खुश नहीं होते थे और उन्हें लगता था कि मेरी बॉडी लैंग्वेज सहज नहीं है, लेकिन इन बातों से मेरा हौसला कभी कम नहीं हुआ। अगर कोई आपको आपकी कमी बता रहा है तो यह आप निर्भर है कि आप उसे एक सीख की तरह ले रहे हैं या अपनी नाकामी की तरह। उन्होंने मुझे मेरी कमी बताई, जिसे दूर करने के लिए मैंने बहुत मेहनत की। इससे मुझे अपने अभिनय को निखारने में काफी मदद मिली।’ 

जीशान आगे कहते हैं, ‘मुझे याद है, जब मैंने ‘रोमियो और जूलियट’ नाटक किया था और इसमें मैंने ‘मर्कुटियो’ का किरदार निभाया था। तब मुझे नहीं लगा था कि यह किरदार कितना महत्वपूर्ण है। यह पहली बार था, जब एनएसडी में लोग मुझे एक संभावित अभिनेता के रूप  में देखने लगे। ’    

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