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सोनाक्षी को हिट-फ्लॉप से फर्क नहीं पड़ता

सोनाक्षी सिन्हा की बॉलीवुड में शुरुआत तो बड़ी अच्छी हुई थी, लेकिन उसके बाद वह खास जादू नहीं जगा पाईं। अब करियर के इस मुकाम पर पहुंचकर सोनाक्षी कुछ अलग कर दिखाना चाहती हैं। उनसे हुई एक...

सोनाक्षी को हिट-फ्लॉप से फर्क नहीं पड़ता
स्नेहा महादेवन,नई दिल्लीSun, 04 Aug 2019 02:24 PM
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सोनाक्षी सिन्हा की बॉलीवुड में शुरुआत तो बड़ी अच्छी हुई थी, लेकिन उसके बाद वह खास जादू नहीं जगा पाईं। अब करियर के इस मुकाम पर पहुंचकर सोनाक्षी कुछ अलग कर दिखाना चाहती हैं। उनसे हुई एक मुलाकात..

बॉलीवुड में काम करते हुए नौ साल बीत जाने के बाद अब सोनाक्षी सिन्हा में रूटीन से अलग हटकर काम करने की हिम्मत आ गई है। शायद यही वजह है कि अपनी ताजा रिलीज फिल्म में उन्होंने ‘फर्टिलिटी क्लीनिक’ चलाने वाली एक लड़की का किरदार निभाया है। समाज के दकियानूसी ख्यालात के चलते इस लड़की को काफी कुछ सहना पड़ता है। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश: 

जिस तरह की फिल्में आप अभी तक करती रही हैं ‘खानदानी शफाखाना’ उससे एकदम अलग है। क्या इसे साइन करते वक्त आपके मन में कुछ हिचक थी? 
जब इस फिल्म का प्रस्ताव मेरे पास आया और मैंने एक लाइन में इस फिल्म के विषय के बारे में सुना, तो मुझे लगा, यह फिल्म नहीं करनी चाहिए। पर जब मैंने पूरी स्क्रिप्ट सुनी, तो मेरे ख्यालात एकदम बदल गए। मैंने तय किया कि कुछ भी हो, मैं इसमें काम जरूर करूंगी। यह फिल्म कई अहम मुद्दों को उठाती है। सवाल यह है कि हम सब एक समाज के तौर पर यौन समस्याओं पर खुलेआम बात करने में आखिर क्यों हिचकिचाते हैं? जब एक पुरुष गाइनाकोलॉजिस्ट बनता है, तो कोई सवाल नहीं करता। पर जब एक लड़की ‘फर्टिलिटी क्लीनिक’ चलाना चाहती है, तो कई सवाल उठते हैं। उसका भाई उससे कहता है,‘तू लड़की होकर सेक्स क्लीनिक चलाएगी?’ ये दोहरा मापदंड क्यों? फिल्म बराबरी की बात करती है। साथ ही यह भी बात करती है कि हमारे समाज में आखिर अभी तक इस तरह के मुद्दों को लेकर खुलापन क्यों नहीं आ पाया है? 

आपकी पिछली फिल्म ‘कलंक’ का हश्र कुछ खास नहीं रहा। असफलताओं को कैसे लेती हैं? 
मैंने हमेशा से ही असफलताओं से सीखा है। बॉक्स ऑफिस के नतीजे कैसे भी रहें, मैं लगातार काम में लगी रहती हूं। वर्तमान में भी मेरे पास बहुत सारी फिल्में हैं। हिट या फ्लॉप से मुझे कोई खास फर्क नहीं पड़ता। बॉक्स ऑफिस के नतीजे आपके हाथ में नहीं होते। 

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इस बात में कितनी सच्चाई है कि अब आप फिल्मों के चयन को लेकर बेहद सतर्क हो गई हैं?
मुझे लगता है यह धारणा मेरी बीते कुछ सालों में रिलीज फिल्मों को देखते हुए बनी है। एक एक्टर के तौर पर हमें अपने काम को लेकर सतर्क रहना ही पड़ता है।

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