हिमाचल में पहली बार गई 6 विधायकों की विधायकी, देशभर में सियासी उठापटक का केंद्र बना प्रदेश
कांग्रेस विधायकों की संख्या पहले 40 थी। फिर छह विधायकों की सदस्यता जाने के बाद घटकर 34 रह गई थी। मगर उपचुनाव के बाद कांग्रेस का यह संख्याबल फिर से बढ़कर 40 पर पहुंच गया था।

साल 2024 हिमाचल प्रदेश में सियासी उठापटक के लिए देशभर में चर्चा का विषय रहा। प्रदेश में पहली बार छह विधायकों की विधायकी चली गई। कांग्रेस की सुक्खू सरकार के लिए यह किसी सियासी भूचाल से कम नहीं था। इसके बाद सरकार अब गई, तब गई, की चर्चा शुरू हो चुकी थी। मगर विपक्षी भाजपा की ओर से खड़े किए इस राजनीतिक संकट से सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार पार पाने में कामयाब हो गई।
कांग्रेस विधायकों की संख्या पहले 40 थी। फिर छह विधायकों की सदस्यता जाने के बाद घटकर 34 रह गई थी। मगर उपचुनाव के बाद कांग्रेस का यह संख्याबल फिर से बढ़कर 40 पर पहुंच गया था। भाजपा के विधायक पहले 25 थे और ये बढ़कर 28 हो गए। सुक्खू सरकार सत्ता में आई थी तो निर्दलियों की संख्या 3 थी और वर्तमान में विधानसभा में कोई निर्दलीय विधायक नहीं बचा है।
फरवरी में बजट सत्र के दौरान राज्य की सियासत में उस वक्त नया मोड़ आया, जब यहां पर राज्यसभा सदस्य पद के लिए चुनाव हो रहे थे। कांग्रेस के छह विधायकों और तीन निर्दलियों की क्रॉस वोटिंग से भाजपा के उम्मीदवार हर्ष महाजन राज्यसभा के लिए चुन लिए गए। उसके बाद वित्त विधेयक के समय व्हिप जारी होने के बावजूद अनुपस्थित रहने पर कांग्रेस के छहों विधायकों को अयोग्य घोषित किया गया। इनके अलावा तीन निर्दलियों ने इस्तीफे दिए, जो विधानसभा अध्यक्ष ने मंजूर कर लिए।
फरवरी में हुए बजट सत्र में जब वित्त विधेयक पारित हो रहा था तो माना जा रहा था कि इसका पारण न होने से सरकार गिर जाएगी, मगर विधानसभा अध्यक्ष से नोकझोंक करने पर नौ भाजपा विधायकों को बजट सत्र में सदन की बैठकों से निलंबित किया गया और बजट पारित हो गया। इसके बाद सियासी घमासान आगे बढ़ता गया। छह कांग्रेस विधायकों को अयोग्य घोषित किया गया और तीन निर्दलियों के इस्तीफे मंजूर किए गए। नौ सीटों पर विधानसभा उपचुनाव में छह पर कांग्रेस और तीन पर भाजपा उपचुनाव जीत गई।
इस सियासी उठापटक के बीच कांग्रेस सरकार के एक मंत्री और कुछ विधायकों की हसरतें भी सामने आईं। एक मंत्री ने अपने पद से इस्तीफा तक दे दिया, मगर बाद में हाईकमान के हस्तक्षेप पर नरम पड़ गए। कांग्रेस के विधायक रहे पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा के अलावा विधायक राजेंद्र राणा जैसे नेता वरिष्ठता की दुहाई देते हुए राज्य मंत्रिमंडल में जगह न मिलने और अपनी अनदेखी की बात कर बगावत कर गए और विधायकी जाने के बाद भाजपा के हो लिए।
अन्य कांग्रेस विधायकों में रवि ठाकुर, इंद्रदत्त लखनपाल, चौतन्य शर्मा और देवेंद्र कुमार भुट्टो ने भी राज्यसभा सदस्य के लिए भाजपा के उम्मीदवार के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की। इनमें से राजेंद्र राणा, रवि ठाकुर, चौतन्य शर्मा और देवेंद्र कुमार भुट्टो को उपचुनाव हारने के बाद घर बैठना पड़ा। इसी तरह निर्दलीय विधायकों में होशियार सिंह और केएल ठाकुर भी घर बैठ गए। वहीं, मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू की पत्नी कमलेश ठाकुर देहरा से विधायक बन गईं।
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