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लाइलाज बीमारी है स्क्लेरोडर्मा, 30 से 50 उम्र की महिलाओं को बनाती है शिकार

स्क्लेरोडर्मा एक लाइलाज बीमारी है, जो महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करती है। लोगों के बीच इस बीमारी को लेकर जागरूकता बहुत कम है।  जानें इसके बारे में-  स्क्लेरोडर्मा बीमारियों का एक समूह...

लाइलाज बीमारी है स्क्लेरोडर्मा, 30 से 50 उम्र की महिलाओं को बनाती है शिकार
नीलम शुक्ला,नई दिल्लीSun, 07 Jul 2019 12:45 PM
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स्क्लेरोडर्मा एक लाइलाज बीमारी है, जो महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करती है। लोगों के बीच इस बीमारी को लेकर जागरूकता बहुत कम है।  जानें इसके बारे में- 

स्क्लेरोडर्मा बीमारियों का एक समूह है। यह एक लाइलाज बीमारी है, जिसमें शरीर के स्वस्थ टिश्यू पर असर पड़ता है। इस वजह से त्वचा का हिस्सा कठोर होने लगता है। त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. निवेदिता दादू कहती हैं कि आमतौर पर 30 और 50 की उम्र के बीच होने वाली यह बीमारी महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करती है। चिंता की बात यह है कि अब तक इसका कारण और कोई इलाज नहीं ढूढ़ा जा सका है, पर जागरूक रहकर आप इस बीमारी का मुकाबला कर सकते हैं।

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क्या है स्क्लेरोडर्मा
इस बीमारी का नाम ग्रीक शब्द स्क्लेरो और डर्मा से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है कठोर त्वचा। स्क्लेरोडर्मा का यूनानी में अर्थ है सख्त चमड़ी। इस बीमारी में त्वचा चमकदार व सख्त हो जाती है। यह बीमारी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में 4 गुना ज्यादा होती है। इसमें शरीर के स्वस्थ टिश्यू पर असर पड़ता है और त्वचा का हिस्सा कठोर होने लगता है। यही इस बीमारी की पहली और आसान पहचान भी है।
 
क्या हैं कारण
स्क्लेरोडर्मा का कोई इलाज इसलिए नहीं है, क्योंकि अब तक इस बीमारी के सही कारणों का पता नहीं चल पाया है। अनुमान है कि यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें किसी की प्रतिरक्षा प्रणाली उसके शरीर के विरुद्ध कार्य करने लगती है। 

दो तरह की बीमारी 
स्क्लेरोडर्मा के दो प्रकार हैं। सीमित यानी लोकलाइज्ड और  फैली हुई यानी सिस्टेमिक स्क्लेरोडर्मा। सीमित स्क्लेरोडर्मा में बीमारी त्वचा व त्वचा के नीचे कोशिकाओं को प्रभावित करती है। इसमें आंख में यूवाइटिस व जोडों में गठिया रोग हो सकता है। चमड़ी का सख्त होना इस बीमारी की तरफ इंगित करता है। इसमें शुरुआत में दाग के चारों तरफ लाल या बैंगनी रंग की रेखा होती है, जो प्रज्वलन को दर्शाती है। इसकी पुष्टि चमड़ी के दाग को देख कर की जाती है। सिस्टेमिक स्क्लेरोडर्मा  में प्रक्रिया दूर तक फैली होती है और त्वचा के अतिरिक्त शरीर के अन्दरूनी अंग भी प्रभावित होते हैं। इसमें फेफड़ों पर भी असर पड़ता है।

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बीमारी का फैलाव
स्क्लेरोडर्मा एक असामान्य बीमारी है। यह एक लाख में से  3 लोगों में पायी जा सकती है। अधिकांश बच्चों में सीमित स्क्लेरोडर्मा पाया जाता है। 

क्या है इलाज
सबसे पहले यह जान लेना जरूरी है कि यह एक लाइलाज बीमारी है। जिन मरीजों में गंभीर प्रज्वलन रहता है, उन्हें सख्त दवा देनी पड़ सकती है। यह प्रक्रिया अपने आप कुछ सालों में ठीक हो सकती है और दोबारा भी उभर सकती है।

नहीं है कोई दवा
कोई भी दवा इस रोग में प्रभावशाली नहीं है। दवा के बारे में शोध चल रहा है। बहुत गंभीर मरीजों में बोन मेरो प्रत्यारोपण भी किया जा सकता है। बीमारी के दौरान जोडों और फेफड़ों की कार्यक्षमता को बनाये रखने के लिए व्यायाम की जरूरत होती है।   

ध्यान रहे
- स्क्लेरोडर्मा से प्रभावित लोग थकान महसूस करते हैं। उन्हें थोड़ी-थोड़ी देर में जगह बदलनी पड़ती है, क्योंकि इस बीमारी में खून का बहाव कम रहता है।
- समय-समय पर जांच से बीमारी की प्रक्रिया व दवाओं के फेरबदल के बारे में निर्णय लिया जा सकता है।
- कुछ दवाओं के दुष्प्रभाव को जानने के लिए भी समय-समय पर जांच की आवश्यकता पड़ती है।
- गर्भावस्था के दौरान महिला मरीज दवा ले रही हैं, तो उन्हें दवा के दुष्परिणाम के बारे में सतर्क रहना चाहिए।
- यदि जोड़ के ऊपर की चमड़ी सख्त हो गयी है, तो जोड़ को हिलाते रहें।
- क्रीम से सख्त चमड़ी की मालिश करने से चमड़ी मुलायम हो सकती है।

खानपान पर ध्यान देना जरूरी
खानपान का बीमारी पर कोई असर पड़ने का कोई प्रमाण नहीं है। मरीज अपनी पसंद के हिसाब से संतुलित खाना खा सकते हैं। संतुलित आहार में विटामिन, प्रोटीन और कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में हों। 
(फिजिशियन डॉ. डी. के. चौहान से की गई बातचीत पर आधारित) 

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